चीनी दार्शनिक लिन युटांग के अनुसार अनिष्ट को स्वीकार करने पर मन को शांति मिलती है. हम चिंता से मुक्त तो नहीं हो पाते, लेकिन उसका असर कम जरुर हो जाता है. प्रस्तुत पोस्ट Anti Worry Technique in Hindi में हम चिंता के निरोध यानी उसे रोकने की तकनीक के बारे में जानेंगें. इस विधि के जन्मदाता का नाम विलिस एस केरियर है. ये वही केरियर हैं जिन्होंने एयर कंडीशनर बनाया था. एक बार उनके गैस प्लान्ट में अचानक खराबी आ गयी. उन्होंने चिंता से सर पकड़ लिया. रात भर बैचैन रहे. लेकिन उनके विवेक ने उनका साथ दिया और उन्होंने सोचा कि चिंता से कोई हल नहीं निकलेगा. चिंता छोड़कर समस्या को सुलझाने का प्रयास करना चाहिए. उन्होंने उसका हल निकाल लिया आर लगातार तीस वर्षों तक उसी तकनीक का इस्तेमाल करते रहे.
Anti Worry Technique in Hindi चिंता-निरोधक तकनीक
चिंता निरोधक तकनीक की तीन अवस्थाएँ इस प्रकार हैं :
पहली अवस्था Anti Worry Technique in Hindi
पहली अवस्था में समस्या क्या है? अपनी समस्या का विश्लेषण करिए. ईमानदारी और निर्भयपूर्वक विश्लेषण कीजिए कि असफलता का क्या कारण है ? कौन-सा अनिष्ट सम्भव है? इसका बुरा परिणाम क्या हो सकता है? इस समस्या के कारण मुझ पर क्या असर होगा या जिस आर्गेनाईजेशन में काम कर रहा हूँ उसपर क्या असर होगा.
दूसरी अवस्था Anti Worry Technique in Hindi
क्या अनिष्ट हो सकता है? (what is the worst that could possibly happen) इसके बाद अनिष्ट को स्वीकार करने का दृष्टिकोण अपनाना होता है. विलिच एस केरियर जब समस्या में फंस गए तब उन्होंने अपने मन में सोचा –
“असफलता मिलने पर मेरी प्रतिष्ठा को धक्का लग सकता है. सम्भवतः मुझे नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है. यदि नौकरी छूट जाती है, तो देखा जाएगा. अन्य काम कर लेंगे. दुनिया में योग्य व्यक्ति के लिए काम की क्या कमी है? हो सकता है कि मालिक इस घाटे को बर्दाश्त कर जाए”
“सम्भावित अनिष्ट को स्वीकार करने के बाद मैं बुरे-से बुरे परिणाम को भुगतने के लिए तैयार था. इससे मेरे में परिवर्तन आया. मेरी चिंता कम हो गई, मस्तिष्क का भार उतर गया. मैं शांति अनुभव करने लगा.” इस प्रकार की सोच आपकी आधी चिंता समाप्त कर देती है.
तीसरी अवस्था Anti Worry Technique in Hindi
अनिष्ट को स्वीकार करके समस्या को शांति से सुलझाने का मार्ग ढूँढना चाहिए. (Accept it mentally and concentrate to solve the problem)
विलिस एस केरियर कहते हैं कि जैसे ही मेरे मन में शांति आई. मैंने अपने समय और शक्ति को अनिष्ट सुधारने में लगाया.
“अब मैं उन उपायों पर विचार करने लगा जिससे मालिक का घाटा कम हो. अंत में मुझे उपाय सूझा कि पाँच हजार के औजार मंगवाकर इस मशीनरी को सुधारा जा सकता है. शांति से समस्या सुलझ गई.”
“यदि मैं चिंता में ही घुलता रहता, तो इतना नहीं कर पाता. चिंता हमारी एकाग्रता को नष्ट कर देती है. जब हम चिंताग्रस्त होते हैं, तो हमारे विचार इधर-उधर भटकते रहते हैं. हममें निर्णय करने की क्षमता नहीं रहती है. जब हम अनिष्ट को स्वीकार कर लेते हैं, तो बेतुकी और अस्पष्ट कल्पनाओं को खत्म कर देते हैं. तब एकाग्रता के साथ अपनी समस्या को सुलझा सकते हैं.”
यह घटना कई वर्षों पहले घटी थी. अनिष्ट स्वीकार करने वाली युक्ति कारगर सिद्ध हुई. इसे क्रियान्वित करने से मेरा जीवन चिंता-मुक्त हो गया.
विलिस एच. केरियर का यह फार्मूला मनोवैज्ञानिक और व्यावहारिक है. इसका कारण यह है कि चिंता के कारण हम विवेकहीन हो जाते हैं. यह फार्मूला हमें चिंता के कोहरे से बाहर निकालता है. यह हमारे कदमों को धरती पर दृढ़ता से टिकाता है. हमारे कदमों के तले ठोस धरती होने से हमारे अंदर क्षमता आ जाती है.
यदि आप चिंताग्रस्त हैं तो इस फार्मूला को अपनाइए और उम्मीद है कि आपकी चिंता कम होगी और चैन की सांस लेंगें.
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