प्रस्तुत पोस्ट 10 things you should know about Khesari Dal में सभी को खेसारी दाल के बारे में ये दस बातें जरूर से जरूर जाननी चाहिए।
खेसारी दाल के बारे में आपको ये 10 बातें जाननी चाहिए
प्रस्तुत पोस्ट में हम खेसारी दाल (Lathyrus sativa) से जुड़े दस बातों पर विचार करेंगे। पिछले 5-6 दशकों से इस दाल पर ban लगा हुआ था आख़िरकार सरकार इस पर से ban हटाने जा रही है।
दशकों पहले खेसारी दाल का प्रयोग barter system में सामान के विनिमय में क्या जाता था। खेत में काम करनेवाले मजदूरों को मजदूरी के बदले खेसारी दाल दिया जाता था।

Khesari Dal Plant
किसान अपने खेत में जैसे सरसों के खेत में, मटर के खेत में बुआई के समय खेतों में बीज के साथ ही खेसारी दाल के बीज को भी डाला करते थे। क्योंकि जब यह बढता था तो मवेशी पालने वाले लोग अपने मवेशी का चारा पाने के लिये खेसारी के साथ अन्य घासों को भी निकाल देते थे, और किसान का खेत और फसल बिना मजदूरी दिए साफ़ हो जाता था जिसके लिये किसान आज हजारों रूपये खरपतवार नाशक में खर्च कर देते हैं।
इसे लखोली दाल के रूप में जाना जाता है। खेसारी के घास को मवेशियों को चारा के रूप में खिलाया जाता था, लेकिन इसका मवेशियों पर हानिकारक प्रभाव के चलते इसपर प्रतिबन्ध लगा दिया गया।
प्रतिबंधित हुआ खेसारी
खेसारी दाल पर 1970 के दशक में इतना कठोर प्रतिबन्ध लगा कि इसकी खेती करनेवाले किसानों के बैल जब्त कर लिये जाते थे। सरकारी अधिकारी खेसारी के फसल को नष्ट करवा देते थे या कटी फसल को जला देते थे।
चिकित्सा अनुसंधानों के रिपोर्ट के मुताबिक खेसारी दाल में ODAP (Beta-N-oxalyl-a,Beta-di-amino-propionic acid) पाया जाता है जो lathyrism को जन्म दे सकता है. इससे neuromuscular disorder भी होने का खतरा बना रहता है। इसे उस दौरान लकवा (paralysis) का मुख्य कारण माना जाता था। रीढ़ की हड्डी में झुनझुनी या सूनापन, शरीर के निचले हिस्से में numbness आदि इसके कुछ दुष्प्रभाव हैं।
ग्रामीण परिवेश में खेतिहर मजदूर अभी भी खेसारी का साग खाते हैं। खेसारी घास के ऊपरी भाग के हरे-हरे और नए पत्तों को तोड़कर उसका साग बनाया जाता है। इसे गरीबों का साग कहा जा सकता है।
मुनाफाखोरों की पसंद
खेसारी दाल एक विपरीत परिस्थिति में उगनेवाला दाल है। कम बारिश और अपेक्षाकृत कम उपजाऊ जमीन में भी इसकी अच्छी पैदावार हो जाती है। हालांकि, प्रतिबंध के बावजूद दाल अब भी बाजार में आसानी से उपलब्ध है, और अन्य दालों मिलावट करने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका सर्वाधिक प्रयोग मिलावट के लिये ही किया जाता है। यह मुख्य रूप से अरहर की दाल में मिलाया जाता है। यह दाल मुनाफाखोरी का एक साधन है।
कई वर्षों के लगातार अनुसन्धान के बाद खेसारी दाल की कई उन्नत प्रजातियाँ विकसित की गयी हैं। जिसमें प्रोटीन प्रचुर मात्रा में है और अन्य हानिकारक तत्त्व को नियंत्रित किया गया है।
खेसारी दाल की ये तीन प्रजातियाँ हैं : रतन, प्रतीक और महत्तरा। इन तीन किस्मों का विकास भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) ने अन्य राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के सहयोग द्वारा 1995 और 2008 के बीच किया है. इसे देश के पारंपरिक खेसारी बुआई वाले क्षेत्र के लिये विकसित किया गया है.
यदि Khesari dal की ये तीनों किस्में सभी पैमाने पर खरा उतरती है तो देश में दलहन की समस्या को बहुत हद तक नियंत्रित किया जा सकता है।
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