तनाव बुरी बला है, आराम करना सीखिए
कहा गया है कि Tension is a bad habit. Relaxing is a good habit. आप अपनी आदतों पर ध्यान दीजिये. बुरी आदतों के कारण लोगों के जीवन में तनाव आ जाता है. लेकिन यह भी सच है कि बुरी आदतें छोड़ी जा सकती हैं. अच्छी आदतें डाली जा सकती हैं. आराम करना एक अच्छी आदत है. इस पोस्ट Live Tension Free Life Hindi Article में हम इसपर चर्चा करेंगे. आइये सबसे पहले हम तनावजन्य स्थितियों के बारे में जानते हैं.
तनाव पैदा करनेवाली स्थितियाँ
प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैंससेली के अनुसार, तनाव की प्रक्रिया को तीन अवस्थाओं में समझा जा सकता है.
(i) प्रथम अवस्था में एड्रीनल कार्टेक्स में तनाव की सूचना का संप्रेक्षण होता है.
(ii) दूसरी अवस्था में लिफेटिक तंत्र की सक्रियता द्वारा शरीर में उत्पन्न अप्रिय स्थिति के प्रति संघर्ष छेड़ा जाता है. इसमें थाइमस प्रमुख कार्य करते हैं.
(iii) तीसरी अवस्था में तनाव की अधिकता मनोकायिक तंत्र को अपने नियन्त्रण में ले लेती है. इससे शरीर तथा मन में विकार दिखाई देने लगता है.
कुछ वैज्ञानिकों ने तनाव को चार अवस्थाओं में विभक्त किया है, वे हैं –
1. साइकिक फेज:
इस फेज में व्यक्ति मानसिक रूप से परेशान रहता है तथा इस दौरान केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र ज्यादा क्रियाशील हो उठता है. इससे रक्त में ‘एसिटील कोलाइन’ की मात्र बढ़ जाती है. इससे उद्विग्नता, अतिउत्साह, उत्तेजन, व्याकुलता, चिंता व अनिद्रा जैसे विकार उत्पन्न हो सकते हैं.
2. साइकोसोमेटिक फेज:
यह अवस्था कुछ दिनों तक चलती है यदि यह स्थिति लम्बी हुई तो यह मनोकायिक बीमारी में बदल सकती है. इस काल में उच्च रक्तचाप, दमा, हृदय की धड़कन, डायबिटीज आदि मनोकायिक रोग हो सकते हैं.
3. सोमेटिक फेज:
सोमेटिक फेज में कैटाकोलामाइंस ज्यादा स्रावित होता है. कैटाकोलामाइंस में तीन हार्मोन होते है – नार एड्रेनेलीन, एड्रेनेलीन तथा डोयमीन, तनाव में इन हार्मोन्स के स्तर में बढ़ोतरी हो जाती है.
4. आग्रेनिक फेज:
यह तनाव की अगली अवस्था है. इसमें तनाव, शरीर की प्रतिरोधात्मक क्षमता समाप्त हो जाती है. तनाव इस अवस्था में आकर डायबिटीज, दमा तथा कोरोनरी रोग के रूप धारण कर लेता है. व्यक्ति में तनाव की वजह से रोगों से लड़ने की क्षमता समाप्त हो जाती है. इसे सर्दी-जुकाम बराबर बना रहता है. अन्य शारीरिक बीमारी के लक्षण सामने आते हैं. इस अवस्था में डोयमीन के बढने से व्यक्ति के व्यवहार में भी गडबडी पाई जाती है.
तनाव और मनोवैज्ञानिक समस्याएँ
व्यक्ति में लगातार तनाव से मानसिक आतंक की भावना उत्पन्न हो सकती है. इससे रोगी का सामान्य जीवन प्रभावित होता है. व्यक्ति में इसके फलस्वरूप निराशा, हताशा और आत्महत्या की प्रवृत्ति उत्पन्न होती है. आज बढती हुई आत्महत्या की प्रवृत्ति दीर्घकालीन तनाव का ही परिणाम है. तनाव से ग्रसित व्यक्ति में घबराहट, भय, बेचैनी, आशंका, त्रास आदि के लक्षण सदैव पाये जाते हैं. रोगी को लगता है कि कुछ अप्रत्याशित होने वाला है. व्यक्ति के चेहरे की मांसपेशियों में इसकी चाल और गति में जल्दबाजी झलकती है. वह कहीं स्थिर नहीं रह सकता है, उसके चित्त की चंचलता में वृद्धि हो सकती है, तनाव से पीड़ित व्यक्ति के मन में हमेशा ऋणात्मक विचार आते रहते हैं. वह शरीर और मन दोनों से थका-थका अनुभव करता है.
तनाव और थकान
वह अपने को कभी ताजगी या खुशी का अनुभव नहीं करता है. यहाँ तक कि विश्राम कर लेने या नींद से जगाने के पश्चात भी वह अपने मन को किसी वस्तु या कार्य में एकाग्र नहीं कर पता है. वह अधीर और व्याकुल रहता है. तनाव के कारण व्यक्ति सिर में भारीपन या चारों ओर से जकड़ा हुआ महसूस करता है. उसके सर, कंधा, गर्दन और कमर-पीठ में लगातार दर्द बना रहता है. यह सभी लक्ष्ण लम्बी समय से व्याप्त तनाव का परिणाम हो सकते हैं. प्रसिद्द ग्रन्थ योगवशिष्ठ में वर्णन है कि चित में उत्पन्न हुए विकास से ही शरीर में दोष उत्पन्न होती है. इस तथ्य की पुष्टि अब वैज्ञानिक खोजों से भी हो गयी है.
क्या कहता है रिसर्च
प्रसिद्ध चिकित्सा शास्त्री बी. डब्लू. रिचर्डसन ने अपनी कृति ‘दि फील्ड आफ डिजीजेज’ में लिखा है कि –“मानसिक तनाव और चिंताओं के कारण त्वचा की एलर्जी और फुंसियों का प्रकोप होता है.” इनका कहना है कि लोगों की थकावट का कारण शारीरिक परिश्रम नहीं होता, वरन घबराहट, उतावलापन, चिंता एवं विषम परिस्थितियों में तनाव होता है. संवेगात्मक तनाव से भी रोगी में थकान पैदा होती है. हीनभावना से भी शरीर टूटता है. थकान से बचने के लिए यह जरूरी है कि मन को तनाव मुक्त रखा जाये. मन में हमेशा प्रसन्नता तथा आशावादी विचारों का समावेश किया जाये.
तनाव और नकारात्मक विचार
व्यक्ति में तनाव के कारण नकारात्मक विचार आते हैं. यह नकारात्मक विचार रक्त में विकार उत्पन्न करते हैं और शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता को कम करते हैं. विदेशी वैज्ञानिकों ने इस विषय पर अनेक शोध कार्य किये हैं. ’इंफ्लुएंस आफ दि माइंड अपान दि बाडी’ नामक शोधग्रंथ में लेखक ने लिखा है कि मूढ़ता, लकवा, अधिक पसीना आना, बालों का शीघ्र सफेद होना और गिरना, रक्तहीनता, गर्भाशय में बच्चों की विकृति, घबराहट, चर्मरोग, गर्भपात, फोड़े-फुंसियाँ, एग्जिमा आदि अनेक बीमारियाँ मानसिक तनाव से ही उत्पन्न होती हैं. इसकी पुष्टि अमेरिका के मनोवैज्ञानिक चिकित्सकों के एक दल ने अपने गहन अनुसन्धान से की है. इसके अनुसार अपचन के 70%, गर्दन के 75%, सिरदर्द और 80%, गले के दर्द के 90 और पेट में वायु विकार के 99% रोगी केवल भावात्मक तनाव के दुष्परिणाम से पीड़ित थे. तनाव से अनेक प्रकार के रोगों का जन्म होता है.
तनाव कई रोगों का कारण
अमेरिका के प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डा. राबर्ट डी. राय ने शोध के बाद लिखा है कि – कैंसर, हृदयरोग और क्षय जैसे रोगों को उत्पन्न करने में तनाव ही प्रमुख है. ‘दि फिलासफी आफ लांग लाइफ’ नामक अपनी पुस्तक में जीन पाएनोल ने लिखा है कि जल्दी मृत्यु का एक काफी बड़ा कारण मृत्युभय का तनाव है. बुढ़ापा आने के साथ-साथ अथवा छुट-पुट बीमारियाँ उत्पन्न होते ही मृत्यु की आशंका से लोग तनाव ग्रस्त रहने लगते हैं और यह डर उनके मस्तिष्क की बाहरी पतों में इस कदर धसता जाता है कि वह शीघ्र मृत्यु के ग्रास में चला जाता है. जैसा रूप भावात्मक तनाव का होता हैं उसी के अनुरूप व्यक्ति के मन, मष्तिष्क, नाडी संस्थान और अवयवों के क्रिया-कलाप का ढाँचा बनता है. मानसिक तनाव से ग्रस्त किसी भी व्यक्ति का स्वास्थ्य संतुलित नहीं रह सकता है. इसका प्रभाव शारीरिक तथा मानसिक रूप से निश्चित रूप से पड़ता है.
मानसिक तनाव Mental Tension
हृदय रोग में ‘एंजाइना का दर्द’ धमनी की ऐंठन के कारण होता है. इस ऐंठन का कारण है – मानसिक तनाव. आटोनामिक नर्व-तंतु धमनियों से जुड़े होते हैं. मानसिक तनाव. आटोनोमिक नर्व-तंतु धमनियों से संबंध होते हैं. मानसिक तनाव इन्हीं तन्तुओं से धमनियों में ऐंठन उत्पन्न कर देते हैं. डा. पटेल ने शोध में बताया है कि प्राणायाम और ध्यान से ‘एंजाइना का दर्द’ और हृदय की कमजोरी दूर होती है.
मानसिक घुटन और तनाव का सबसे बुरा प्रभाव हृदय पर पड़ता है. इसलिए अधिक भावुक और तनाव भरी परिस्थितियों में रहने वाले व्यक्ति ज्यादा मात्रा में हृदय रोग से ग्रसित होते हैं. व्यक्ति मानसिक आवेगों, उद्देगों से बचकर विचारों में लचीलापन तथा जीवन के उतार-चढ़ाव से निबटने की कला सीखने से वह तनाव से दूर हो सकते हैं. शरीर को स्वस्थ रखने के लिए जिस प्रकार आहार-विहार का ध्यान रखा जाता है, उसी प्रकार मानसिक संतुलन को ठीक रखने की आवश्यकता पडती है. आधुनिक शोध से यह निष्कर्ष निकला जा रहा है कि ज्यादा रोग की जड मानसिक तनाव है.
मॉडर्न लाइफस्टाइल
आधुनिक समाज में जहाँ जीवन में संघर्ष बढ़ रहा है, व्यक्ति के जीवन में मानसिक तनाव की वृद्धि हो रही है. यह तनाव मनोविकारों के कारण पैदा होता है. नैतिक तथा सामाजिक मूल्यों के प्रति अनास्था भी इसका कारण होती है. इसका प्रभाव मष्तिष्क के माध्यम से सम्पूर्ण शरीर पर पड़ता है. आटोनोमिक नर्वस सिस्टम की इसमें विशेष भूमिका होती है, जो मष्तिष्क के भाग ‘हाइपोथेलेमस’ से प्रभावित होता है. इसको सिम्पेथेटिक तथा पैरासिम्पेथेटिक दोनों भागों में विभाजित किया गया है. इनके द्वारा हृदय, पाचन प्रक्रिया, अंत:स्रावी ग्रन्थियाँ संतुलन की अवस्था में क्रियाशील रहती हैं.
मनोभाव सेरेब्रल कारऐक्स में पैदा होते हैं जिनका प्रभाव हाइपोथेलेमस के माध्यम से पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम द्वारा शारीरिक परिवर्तन के माध्यम से हृदय, रक्तनलिकाओं, अंत:स्रावी ग्रन्थियो पर होता है. इसी प्रकार मनो-शारीरिक रोगों का प्रभाव हमारे शरीर पर होता है. मनोभावों का उत्तेजनात्मक प्रभाव, हृदयगति, रक्तचाप, रक्त नलिकाओं के व्यास में परिवर्तन, रक्त के रासायनिक परिवर्तन के रूप में होता है जिसकी परिणति हृदयाघात के रूप में होती है.
तनाव पैदा करनेवाले कारक Live Tension Free Life Hindi Article
तनाव के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
1. निराशाजनक दृष्टि बनाना
मानसिक तनाव का कारण जीवन जीने के प्रति गलत धारणाएँ है. यदि व्यक्ति अपना जीवन संतुलित तथा ल्क्ष्ययुक्त नहीं रखता है तो विषम परिस्थितियों में वह तनावग्रस्त हो सकता है. वह व्यक्ति जो आत्म अभिव्यक्ति के लिए भुत आतुर रहता है, वह शीघ्र ही तनाव ग्रस्त हो जाता है, यदि व्यक्ति उच्च महत्वाकांक्षी है, उसकी आकांक्षाएँ अपेक्षा से ज्यादा हैं तो प्रतिस्पर्धा में सफल नहीं होने से उसमें ‘हीनताग्रन्थि’ उत्पन्न हो जाती है; परिणामस्वरूप वह तनावग्रस्त हो जाता है. महत्वाकांक्षा व्यक्ति को परिश्रम करने के लिए मजबूत करती है, लेकिन व्यक्ति लापरवाह व आलसी है तो वह सदैव तनावग्रस्त रहेगा. व्यक्ति में उच्चतर मूल्य व मान्यताएँ भी असंतुलन बना देती है इससे वह तनावग्रस्त हो सकता है. अत: व्यक्तित्व सम्बन्धित विकास भी व्यक्ति को तनावग्रस्त कर सकते हैं.
2. शारीरिक और व्यक्तित्व दोष स्तर
व्यक्ति के जन्मजात अथवा बाद में उत्पन्न शारीरिक दोष तनाव कर सकती है. (लंगड़ापन, बहरापन, टेढ़ापन, अंधापन, कुरूपता आदि) समायोजन में बाधा डालते हैं. ऐसे अनेक अध्ययन हुए हैं जिनमें अधिकांशत: तनावग्रस्तता अधिक पायी गयी है. प्रो. कोलमैन के अनुसार विभिन्न शारीरिक दोष सीधे तनाव की वजह नहीं होते हैं. वास्तव में तनाव उस व्यक्ति के, अपने दोष के प्रति अपनाये गये नजरिया तथा दूसरे व्यक्तिओं द्वारा उसके प्रति प्रदर्शित व्यवहार पर आधारित होता है. यदि माता-पिता या समाज ऐसे लोगों को आवश्यकता से ज्यादा देखभाल या उन्हें हीन समझते हैं, तो ऐसे व्यक्ति में हीनता, आत्मधिक्कार, वास्तविकता से पलायन भी, सेल्फ सेंटर्ड, अधीनता आदि उत्पन्न हो जाती है जिसके परिणामस्वरूप तनाव उत्पन्न हो सकता है. वास्तव में व्यक्ति अपने शारीरिक दोषों के कारण नहीं बल्कि इनसे उत्पन्न दोषपूर्ण मानसिक अनुभूतियां ही तनाव की जननी है.
3. व्यक्तित्व विकास में बाधक
जीवन के प्रारंभिक वर्षों के बाद के व्यक्तित्व विकास में महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है. बालक एक उगता हुआ अंकुर है. यदि यह अंकुरण ही दोषपूर्ण है तो उसका भावी विकास ठीक ढंग से नहीं होगा. ऐसे व्यक्ति भविष्य में किसी भी विषम परिस्थिति में तनावग्रस्त हो सकते है. शिशु को शैशवकाल में यदि माँ के प्रेम से वंचित रखा जाये, उसे प्रेम और सुरक्षा न मिले तो इसका कुप्रभाव उसके भावी व्यक्तित्व विकास पर पड़ता है. अत: यदि माँ को शिशु का आगमन पसंद नहीं होता अथवा वह शिशु का ठीक प्रकार से देखभाल नहीं करती तो भी मातृ प्रेम की कमी से बच्चे में अनेक विकृतियाँ उत्पन्न हो सकती हैं. जो माताएँ शिशु को अत्यधिक तिरस्कृत तथा दंडित करती हैं, उसके बच्चे भविष्य में असंतोषी, जिद्दी और तनाव ग्रस्त हो जाते हैं.
4. पारिवारिक दोषपूर्ण स्थितियाँ
यदि परिवार में स्थिति सामान्य न हो तो भी यह तनाव को जन्म देता है. यदि एक घर में माँ – बाप आपस में झगड़ते रहते हैं तो उसका असर बच्चे पर पड़ता है. बच्चे का स्वाभाव चिडचिडा हो जाता है.
आराम की आदत डालिए
यदि तनाव को दूर भगाना है तो हमें कई चीजों पर विचार करना होगा. यदि आप तनाव महसूस करते हैं तो रिलैक्स करने की आदत डालिए. योग और प्राणायाम कीजिये. तनाव की वजह को जानने का प्रयास कीजिये. तनाव और थकान दोनों एक साथ आते हैं. इसको हराने का एक ही उपाय है कि आप ठीक तरह से आराम करें और अपने जीवन को व्यवस्थित करें. Positive बने रहें, सब अच्छा होगा. आपको यह पोस्ट Live Tension Free Life Hindi Article कैसा लगा, अपना विचार कमेंट द्वारा दें. धन्यवाद!
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