गोनू झा और चोरों की मजदूरी हिंदी लोक कथा/ Gonu Jha aur Choron ki Majduri Hindi folklore
एक बार की बात है. एक राजा ने दरबार में किसी विषय पर भारी शास्त्रार्थ आयोजित किया. राजा ने जीतनेवाले को सौ बीघा जमीन इनाम में देने का एलान किया था. हर गाँव से शास्त्रार्थ के लिए विद्वान लोग राजा के दरवार में पहुँच रहे थे.
गोनू झा के गाँववालों ने उनसे शास्त्रार्थ के लिए जाने का आग्रह किया. गोनू झा ने कहा, ”यह राजा शास्त्रार्थ को तीतर-बटेर की लड़ाई समझता है. मैं ऐसे शास्त्रार्थ में नहीं जाउँगा.”
पर, गाँव वाले कहाँ मानने वाले थे! उनके गाँव की प्रतिष्ठा का प्रश्न था. सबने गोनू झा को काफी मान –मनोबल के बाद शास्त्रार्थ के लिए तैयार कर लिया. उन्होंने गोनू झा को लोभ दिया, ”आप इस बार शास्त्रार्थ में जीत गये, तो बस समझिए कि आपकी गरीबी हमेशा के लिए समाप्त हो गयी. सौ बीघे की जोत तो इस पूरे इलाके में किसी के पास नहीं है.”
गोनू झा ने उस शास्त्रार्थ में सबको पराजित कर दिया. अब राजा को अपने वचन के अनुसार सौ बीघा जमीन गोनू झा को देनी थी. राजा के कुछ दरबारियों ने उसके कान भर दिये. राजा ने दरबारियों के षडयंत्र में पड़कर वर्षों से बंजर पड़ी जमीन में से सौ बीघा जमीन गोनू झा को दे दी. गोनू झा और उनके गाँववालों ने जब जमीन देखी, तब उन्हें बड़ा दुःख हुआ. उस बंजर जमीन को कोई मजदूर भी हाथ नहीं लगाता. जमीन इतनी ऊसर थी कि कहीं घास भी नजर नहीं आ रही थी. पर गोनू झा ने गाँववालों को समझाते हुए कहा, “आप चिंता मत करिए, एक-दो-दिन में ही मैं इसका कोई अच्छा उपाय कर लूँगा. बस आप लोग गाँव में यही कहिएगा कि गोनू झा भारी शास्त्रार्थ जीत कर आये हैं.” सबने गोनू झा के कहे अनुसार ही किया.
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बात जंगल के आग की तरह चोरों के टोली तक पहुँच गई. गोनू झा स्वयं भी दिन भर घूम-घूम कर अपनी विजय की कथा और राजा द्वारा किये गये मान – सम्मान की बात फैलाते रहे. रात हुई, तो गोनू झा घर पहुंचे. उनके बिछाये जाल के अनुसार ही सब कुछ होने लगा. उन्हें बाडी में कुछ हलचल लगी. वे समझ गये कि चोर आ गये हैं. तभी पत्नी ने पूछा, “चार दिन कहाँ से बेगारी कर लौटे हैं?”
“पहले लोटा दीजिए, खाना लगाइए, फिर बताता हूँ.”
“खाना कहाँ से बनाकर रखती. तेल-मसाला तो खत्म हो गया है, कहिए तो चूड़ा- दही दे दूँ.”
“कोई बात नहीं, आज भर चूड़ा – दही ही दे दो. कल से तो पूआ-पूरी, और पकवान ही खाएँगे.”
“क्यों कोई खजाना हाथ लग गया है ?” गोनू झा की पत्नी ने झल्लाते हुए पूछा.
”धीरे बोलिए, धीरे. एक खजाना नहीं सैकड़ों खजाना. राजा ने कई पुस्तों का खजाना खुश होकर मुझे दे दिया है.”
“क्या कह रहे हैं, खुलकर समझाइए.”- गोनू झा की पत्नी ने पूछा. अब तक तो चोरों के कान खुलकर सूप जैसे हो गये थे. वे गोनू झा के घर की दीवार से कान सटाए, साँस रोककर खजाने का राज सुनना चाह रहे थे.
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गोनू झा भी दीवार की तरफ पत्नी को ले जाते हुए फुसफुसाते हुए बोले, “आप तो जानती ही हैं हर बार मैं शास्त्रार्थ जीतकर आता हूँ, तो राजा- महाराजा सोना-चाँदी, अशर्फी देकर भेजते हैं और उसके बाद चोर सेंध मारने के लिए ताक लगाये रहते हैं. हमने इस बार राजा से कहा कि हमें घर ले जाने के लिए कुछ भी मत दीजिए. आप लोगों की दी हुई चीजें हमारी रात की नींद ले उडती हैं.”
“तो फिर कुछ दिया भी उन्होंने या आप बस ज्ञान ले-देकर आ गए?”- गोनू झा की पत्नी की चिंता जायज ही थी. चोरों की जिज्ञासा भी उनकी पत्नी के साथ बढ़ रही थी.
“सुनिए, राजा के पूर्वज हजारों सालों से अपने खजाने एक सुरक्षित राजकीय भूमि के अंदर छिपाते आये हैं. अब तक वह खजाना सौ बीघे में दबाया जा चुका है. चूँकि जमीन बंजर है, इसलिए भूल से भी कोई भैंस भी चराने उधर नहीं जाता. राजा ने वह सौ बीघे की पूरी जमीन मुझे दे दी. हमें जब भी जरूरत पड़ेगी एक तोला सोना खजाना खोदकर ले आएँगे. अब समझिए हमारी आनेवाली सौ पुस्त बैठकर आराम से जिन्दगी बसर कर सकती है.”
“पर, वह है कहाँ”- गोनू झा की पत्नी ने पूछा.
“वह आपको बताऊंगा. आप बहुत खर्चीली हैं और कोई बात आपके पेट में पचती भी नहीं.”- गोनू झा ने कहा.
“वह तो ठीक है, पर भगवान न करे, आपको कुछ हो गया, तो सौ पुस्त के लिए धन रहते हुए भी हम सब भूखे मर जाएँ.” – पत्नी की इस बात पर कुढ़ते हुए भी गोनू झा ने फुसफुसाते हुए वह जगह बता दी, जहाँ राजा ने गोनू झा को जमीन दी थी.
“आप सुबह ही जाकर एक तौला खजाना तो ले ही आइए “- पत्नी ने गोनू झा से कहा.
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“ठीक है, पर अब मुझे कुछ खाने के लिए दो. मैं थका हुआ हूँ. सुबह सूर्य उगने से पहले ही मैं जाकर एक तौला खजाना ले आऊंगा.”- गोनू झा की बात पूरी हुई कि सारे चोर उडन – छू हो गए. वे एक-दो तौला, नहीं सारा दवा खजाना निकाल लेना चाहते थे. उन्होंने चोरों की टोली से एक-एक चोर को बुला लिया और सब कुदाल- खंती लेकर उस बंजर खेत में कूद पड़े. पूरी ताकत लगाकर और बिजली की फुर्ती से वे खेत कोड़ने लगे.
चोरों ने सूर्य उगने से पहले ही सारा खेत कोड डाला, पर खजाना तो दूर, एक कौड़ी भी नहीं मिली. इससे पहले कि वे गोनू झा की होशियारी और अपनी बेवकूफी पर खीजते, गोनू झा खखसते हुए आते दिखाई पड़े. उनको देखते ही सारे चोर नौ दो ग्यारह हो गए. गोनू झा उन्हें आवाज देते हुए बोले, “अरे भाई रात-भर इतनी मेहनत की है, मजदूरी तो लेते जाओ. कम-से-कम जलपान ही करते जाओ.”
गोनू झा अपने साथ आठ – दस मजदूर और बीज लेकर आये थे. उन्होंने बीज डाला. उस साल और उसके बाद हर साल गोनू झा के खेत में इतनी फसल हुई कि सचमुच उनकी सारी दरिद्रता मिट गयी. गाँव वाले एक बार फिर गोनू झा की बुद्धिमत्ता के कायल हो गये.
Sankrit Singh says
Apki post kafi prenana purn rahti hai. Thanks for sharing
raghuveer Kumar says
Padhne me mazza aa gaya
kundan kumar says
good
RAKESH RAJAK says
bahut achha
Majedar Storise says
nice great story…Get More Hindi Stories