गोनू झा की बिल्ली मिथिला की कहानी
Gonu Jha Cat Mithilanchal Hindi Story/जिस प्रकार बीरबल और तेनालीराम अपनी चतुराई और हाजिरजबाबी के लिये प्रसिद्द हैं उसी तरह से गोनू झा भी मिथिला क्षेत्र में अपनी वाक्पटुता और चतुराई के लिये प्रसिद्द हैं.
गोनू झा के आश्रयदाता राजा बड़े दानी स्वाभाव के थे. राजा को अपने राज के दान विभाग के लिये एक अध्यक्ष की आवश्यकता थी. इसके लिये वे अपने दरबार के सबसे योग्य और ईमानदार दरबारी को नियुक्त करना चाहते थे. जो सुपात्र की पहचान कर उसे अपेक्षित दान कर सके. बहुत सोच विचार करने के बाद राजा को एक युक्ति सूझी.
राजा ने हर दरबारी को एक एक बिल्ली और एक एक भैंस दी. उन्होंने सभी दरबारियों से कहा – ‘आप सबको जो बिल्ली दी गयी है उसे एक साल तक पालना है. उसके लिये ही आपको एक एक भैंस दी जा रही है जिसका दूध बिल्ली को पिलाना है. एक साल के बाद जिसकी बिल्ली सबसे मोटी होगी उसे पुरस्कार दिया जाएगा.’
सभी दरबारी अपनी अपनी बिल्ली और भैंस लेकर चल दिए. सब अपने अपने भैंस का दूध निकाल निकाल कर बिल्ली को पूरे मनोयोग से पिलाने लगे. पुरस्कार की जो बात थी.
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गोनू झा भी भैंस को चराने ले जाते, उसका दूध निकालते और सारा दूध बिल्ली को पिला देते. लेकिन गोनू झा को यह सब करना ठीक नहीं लग रहा था. उन्होंने कभी गाय –भैंस चराने का काम नहीं किया था और अब कर रहे थे वह भी बिल्ली को दूध पिलाने के लिये.
वे तो दुखी थे ही, उनकी पत्नी भी उनसे नाखुश रहती थी, क्योकि उनको भी भैंस की सानी पानी करनी पड़ती थी और दूध उबाल उबालकर बिल्ली को पिलाना पड़ता था.
एक दिन उबकर गोनू झा की पत्नी उनसे बोली – “मैं गंगासागर जा रही हूँ. देख लिया आपको भी और आपके राजा को भी. यदि बिल्ली को दूध पिलाते ही जिन्दगी काटनी है तो उससे अच्छा तो गंगासागर में डुबकी लगाकर और बालू फांककर प्राण दे देना. कम से कम स्वर्ग में जगह तो मिलेगी.”
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“मैं खुद भी बहुत दुखी हूँ. आप दूध उबालिए. मैं बिल्ली के लिये कुछ उपाय करता हूँ. मेरे दिमाग में एक उपाय आया है.” – गोनू झा ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा.
गोनू झा का आश्वासन सुन उनकी पत्नी झुंझलाते हुए रसोई में चली गयी. वे कुछ ही देर में खौलता हुआ दूध लेकर गोनू झा के सामने रख दी. गोनू झा ने भी बिना कोई देर किये वह खौलता हुआ दूध बिल्ली को परोस दी. बिल्ली ने जैसे ही अपनी जीभ से दूध को चाटा, वह चिल्लाते हुए वह वहां से भाग गयी. उसके बाद गोनू झा जब ठंडा दूध भी देते तो बिल्ली दूध का कटोरा देखते ही भाग जाती. गोनू झा चाहते भी यही थे. अब रोज भैंस का दूध निकालते और पति पत्नी ही पीते. अब दूध का सुख पाकर उनकी पत्नी भी खुश रहने लगी. बिल्ली को थोडा बहुत जूठन और रोटी भात मिल जाता और बिल्ली का भी काम चल जाता था.
धीरे धीरे साल पूरा हो गया. सारे दरबारी अपनी अपनी बिल्ली लेकर राजा के समक्ष प्रस्तुत हुए. सबकी बिल्ली मोटी तजि दीख रही थी लेकिन गोनू झा की बिल्ली की एक एक हड्डी दिख रही थी. गोनू झा की बिल्ली को देख सभी दरबारी खुश हुए क्योंकि उनको लग रहा था कि यह सब देख राजा बहुत नाराज होंगे और गोनू झा को दरबार से निकाल बाहर करेंगे.
जब राजा ने सबकी बिल्ली देखी तो बहुत खुश हुए लेकिन जब उन्होंने गोनू झा की बिल्ली को देखा तो उन्होंने गोनू झा से पूछा – “आपकी बिल्ली मरणासन्न क्यों दिख रही है? आपने इसे दूध नहीं पिलाया क्या?”
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“मैं क्या करूँ महाराज! मुझे जो बिल्ली दी गयी उसमे कुछ षड़यंत्र लगता है. मुझे ऐसी बिल्ली दी गयी जो दूध पीना तो क्या उसे देखना भी नहीं पसंद करती. मैं क्या करता. किसी तरह दाल भात खिला कर इसे जिन्दा रखा है मैंने.’ – गोनू झा ने जबाब दिया.
“महाराज गोनू झा की बात सही नहीं लगती. बिल्ली और दूध से भागे ऐसा हो नहीं सकता. दरबार में सबके सामने इसकी परीक्षा होनी चाहिए – एक दरबारी ने गोनू झा की बात पर आश्चर्य प्रकट करते हुए यह बात कही.
राजा ने उस दरबारी की बात पर सहमती जताते हुए बिल्ली के सामने दूध परोसने का आदेश दिया. दूध जैसे ही उसके सामने रखी गयी वह बिल्ली भाग खड़ी हुई और जैसे ही दूसरी बिल्ली को दी गयी वह सारा दूध गटक गयी.
गोनू झा की बात सच साबित हुई लेकिन राजा को यह समझते देर नहीं लगी कि इसमें गोनू झा की कोई करतूत छिपी हुई है.
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राजा ने गोनू झा से कहा – आप अपनी परीक्षा में सफल हुए लेकिन दरबार यह जानना चाहता है कि आपने ऐसा क्या किया और क्यों किया जिससे कि बिल्ली दूध से इस प्रकार से विरत हो गयी.
गोनू झा ने सारी बात राजा को बता दी. राजा गोनू झा की बुद्धि के कायल हो गए. उनको दान विभाग का अध्यक्ष बना दिया गया. सारे दरबारी उनकी प्रशंसा करने लगे.
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