बेल से होने वाले फायदे
बेल लगभग भारत के हर हिस्से में पाया जाता है. यह स्वाद से भरपूर होता है। इसमें तमाम औषधीय गुण मौजूद हैं। यही वजह है कि अब भारत के कई प्रान्तों में बेल की बागवानी की जा रही है।
बिल्व फल ही नहीं इसकी पत्ती एवं छाल भी कई बीमारियों में असरदार होता है। बेल का फल तो खाया ही जाता है। साथ ही इसका अचार एवं मुरब्बा एवं बेल की पत्तियां का रस भी निकाल कर रखा जाता है। बेल एक ऐसा गुणकारी पेड़ है जिसकी छाल, पत्ते एवं फल सभी औषधीय गुणों से भरपूर हैं। बेल का औषधि के रूप में प्रयोग तो होता ही है, साथ ही इसकी धार्मिक महत्ता भी है। इसी तरह इसके फल का गुदा detergent का काम करता है। यह चूने के प्लास्टर के साथ मिलाया जाता है जोकि जलअवरोधक का काम करता है और मकान की दीवारों को सीमेंट के रूप में जोड़ा जाता है।
चित्रकार अपने जलरंग में बेल को मिलाते हैं जोकि चित्रों पर एक सुरक्षात्मक परत लगाता है। इस तरह इसके गुणों की कोई सानी नहीं है। चूर्ण आदि औषधीय प्रयोग में बेल का कच्चा फल, मुरब्बे के लिए अधपका फल और शर्बत के लिए पका फल काम में लाया जाता है। आचार्य चरक ने बेल को उत्तम संग्राही बताया है। इसे वातशामक मानते हुए इसे ग्राही गुण के कारण पाचन संस्थान के लिए समर्थ औषधि माना गया है। आयुर्वेद के अनेक औषधीय गुणों एवं योगों में बेल का महत्त्व बताया गया है। इसका चूर्ण, मूलतत्व, पत्र, रस सभी स्वास्थ्य की दृष्टि से लाभकारी है।
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बेल भारत में होने वाला एक पेड़ है। इसमें विभिन्न रोगों को नष्ट करने की क्षमता है। इसी वजह से इसे बिल्व भी कहा गया है। इसके अलावा इसका दूसरा नाम है शांडिल्य, जिसका अर्थ होता है पीड़ा निवारक। इसका गूदा या मज्जा बल्वकर्कटी कहलाता है तथा सूखा गूदा बेलगिरी। बंगाल में बेल, कोंकण में लोहगासी, गुजरात में बीली, पंजाब में श्लेष और श्रीफल, संथाल में सिंजो, काठियावाड़ में थिलकथ नाम से भी बेल को जाना जाता है।
बिल्व फल के गीले गूदे को बिल्वपेशिका या बिल्वकर्कटी तथा सूखे गूदे को बेल सोंठ या बेल गिरी कहा जाता है। इसके वृक्ष 15 से 30 फीट ऊंचे, कंटीले होते हैं। इसके पत्ते संयुक्त विपत्रक व गंधयुक्त होते हैं तथा स्वाद में तीखे होते हैं। बेल में फल मार्च में आ जाते हैं। गर्मी बढ़ने के साथ बेल का फल पकना शुरू हो जाता है और इस दौरान पत्ते नीचे गिर जाते हैं। बेल के पत्ते गिरने के बाद जब फल पेड़ में बचता है तो ऐसा लगता है जैसे टहनियों के बीच सीधे फल ही लगा हो, जबकि ऐसा नहीं है।
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अन्य पेड़ों की तरह ही बेल में भी फूल आता है, जो छोटे से फल में तब्दील होता है और ये फल समय के साथ आकार लेते जाते हैं। तब बेल के पत्ते बेल के फूल हरी आभा लिए सफेद रंग के होते हैं व इनकी सुगंध भीनी व मनभावनी होती है। बेल के फल 5.17 सेंटीमीटर व्यास के होते हैं। इनका हल्के हरे रंग का खोल कड़ा व चिकना होता है। पकने पर हरे से सुनहरे पीले रंग का हो जाता है जिसे तोड़ने पर मीठा रेशेदार सुगंधित गूदा निकलता है। इस गूदे में छोटे, बड़े कई बीज होते हैं। हालांकि आजकल बाजार में दो प्रकार के बेल मिलते हैं। एक एकदम छोटा होता है, जिसे जंगली बेल के रूप में भी जाना जाता है, लेकिन दूसरा बेल काफी बड़ा होता है और उसमें बीज की मात्रा कम होती है।
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हालांकि जंगली और उगाए जाने वाले दोनों बेलों के गुण समान हैं। बेल का फल अलग से पहचान में आ जाता है। इसकी अनुप्रस्थ काट करने पर यह 10 से 15 खंडों में विभक्त–सा लगता है, जिनमें बीज भरे होते हैं ये बीज गाढ़े रसीले लार से सने होते हैं। भारत के हर हिस्से में बेल का पेड़ मिलता है, लेकिन बिहार, झारखंड, बंगाल में घने जंगलों में ये भरपूर रूप से पाए जाते हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान के कुछ हिस्से में बेल की बागवानी की जा रही है।
अन्य फलों की तरह ही बेल को भी तमाम किसान अब अपनी जीविका का साधन बना रहे हैं। इसके पेड़ प्राकृतिक रूप से भारत के अलावा दक्षिणी नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश, वियतनाम, लाओस, कंबोडिया एवं थाईलैंड में पाए जाते हैं। इसके अलावा इसकी खेती पूरे भारत के साथ श्रीलंका, उत्तरी मध्य प्रायद्वीप, जावा एवं फिलीपींस तथा फीजी द्वीपसमूह में की जाती है।
बेल का धार्मिक महत्व
हिंदू धर्म में बेल को पवित्र पेड़ माना गया है। धार्मिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण होने के कारण इसे मंदिरों के पास लगाया जाता है। हिन्दू धर्म में इसे भगवान शिव का रूप ही माना जाता है व मान्यता है कि इसके मूल यानी जड़ में महादेव का वास है। इसलिए इसकी पूजा भी की जाती है। तमाम धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। पूजा में बिल्व पत्र का बहुत महत्व है।
बेल में पाए जाने वाले तत्व
लबाब, पेक्टिन, शर्करा, कसायिन एवं उत्पत तेल आदि बेल के गूदे में पाए जाते हैं। बेल के फल की मज्जा में मूलतरू ग्राही पदार्थ पाए जाते हैं, जो म्युसिलेज पेक्टिन, शर्करा, टैनिन्स होते हैं। इसमें मूत्ररेचक संघटक मार्मेलोसिन नामक एक रसायन भी पाया जाता है। इसके बीजों में पाया जाने वाला एक हल्के पीले रंग का तीखा तेल करीब 12 प्रतिशत पाया जाता है। इसी तरह शक्कर करीब 4.3 प्रतिशत एवं 2 प्रतिशत भस्म भी होती है। भस्म में कई प्रकार के आवश्यक लवण होते हैं। बिल्व पत्र में एक हरा,पीला तेल जैसा तत्व पाया जाता है, जिसे इगेलिन, इगेलिनिन नामक एल्केलाइड कहा जाता है। इसके अलावा फोस्फोरस, कैल्शियम, आयरन सहित अन्य कई विशिष्ट एल्केलाइड यौगिक व खनिज लवण भी पाए जाते हैं।
यदि 100 ग्राम बेल में मौजूद पोषक तत्वों आकलन किया जाय तो इसमें विटामिन ए (55 मिलीग्राम), विटामिन सी (8- 60 मिलीग्राम), थाइमीन (0.13 मिलीग्राम), राइबोफ्लाविन (1.19 मिलीग्राम), नाइसिन (1.1 मिलीग्राम), प्रोटीन (1.8-2.62 ग्राम), फैट (0.2 ग्राम), कार्बोहायड्रेट (28-31 ग्राम और खनिज तत्व (54-61 ग्राम) पाया जाता है.
पत्ते की गुणवत्ता
बेल के पत्ते का रस घाव ठीक करने में काफी कारगर होता है। यदि किसी भी स्थान पर चोट लग जाए, चमड़ी छिल जाए तो वहां बेल के पत्ते को पीस कर लगा देने से फायदा मिलता है। दर्द एवं जलन में राहत मिलती है। बेल पत्ते का रस इसकी गुदा की तरह ही लाभकारी होता है। बिल्व चूर्ण कच्चे बेल की कचरियों को धूप में अच्छी तरह सुखा लें या पंसारी से साफ़ छाँट ले आएं। इन्हें बारीक पीस कपड़ा छान करके शीशी में भर लें। यही बिल्व चूर्ण है। बेल के फल का चूर्ण बनाना हो तो कच्चे बेल को काटने के बाद सूखा लें और फिर उसे पीस लें।
बेलपत्र का रस बेलपत्र का रस भी काफी कारगर है। इसका रस आमतौर पर आषाढ़ व श्रावण (जुलाई–अगस्त) में निकाला जाता है। दूसरी ऋतुओं में निकाला गया रस उतना लाभकारी नहीं होता। काली मिर्च के साथ दिया गया पत्र रस पीलिया तथा पुराने कब्ज में आराम पहुंचाता है।
बेल फल
खासतौर से गर्मी के दिनों में पके बेल का शर्बत स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे उत्तम माना गया है। बेल का फल कच्चा, पक्का और अर्धपका तीनों स्थितियों में अलग-अलग प्रयोग किया जाता है। एक गिलास बेल का जूस पीने से गर्मी के कारण लगने वाली प्यास दूर होती है तो शरीर की खोई हुई एनर्जी वापस आ जाती है। बेल का जूस पीते रहने से शरीर की सहनशीलता बढ़ती है। लू एवं गर्मी से होने वाली विभिन्न तरह की बीमारियों से लड़ने के लिए शरीर तैयार रहता है। इससे पेट साफ रहता है और कब्ज की समस्या दूर हो जाती है। अधिक मसालेदार चीजें खाने के बाद एक गिलास बेल का जूस पीना अतिफायदेमंद साबित होता है।
कैसे पहचानें बेल फल को
बेल का फल अलग से ही पहचाना जा सकता है। फिर भी यदि आपको किसी तरह की शंका हो तो बेल को अनुप्रस्थ काट काटें। यदि आपके हाथ में बेल का फल है तो काटने के बाद कटा हुए फल के बीच गुदा 10- 15 खंडों में विभक्त–सा दिखेगा। हर हिस्से में 6 से 10 बीज होते हैं । ये सभी बीज सफेद लुआव से परस्पर जुड़े होते हैं। आमतौर पर हर जगह उपलब्ध होने की वजह से इसमें मिलावट की संभावना न के बराबर रहती है। फिर कुछ स्थानों पर गर्मी के दिनों में इसमें गार्मीनिया मेंगोस्टना तथा कैथ के फल मिला दिए जाते हैं, लेकिन काटने के बाद यह शंका भी खत्म हो जाती है।
nice and healthy article
Very informative indeed… 🙂
Thanks for your comment!
kon konsi rog par wood apple kam karte hai?
bel ko wood apple kaha jaata hai vah aaj pata chala aabhaar