सेठ गुणीचंद के पास अथाह संपत्ति थी. उनके कई कल कारखाने थे. नौकरों-चाकरों की कोई कमी नहीं थी. यूँ तो उनकी हवेली किसी महल से कम नहीं था, लेकिन पता नहीं सेठ को क्या सुझा. उन्होंने अपने उसी महलनुमा हवेली के पास ही एक और भव्य हवेली का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया. उसमे दिन रात मजदुर लगे रहते. उसे बनाने के लिये नामी वास्तुकारों की सलाह ली गयी. उसमें बहुमूल्य पत्थर और इमारती लकड़ी लगाईं गयी. उस हवेली में कुल मिलाकर सौ कमरे थे.

Moral Story
जिस दिन उस भव्य हवेली में प्रवेश के लिये पूजा किया जा रहा था तो उस समय आस पास के बड़े बड़े सेठों को बुलाया गया था. सेठ ने आगंतुकों से अपने इस नवनिर्मित हवेली के बारे में पूछा- कि सच सच बतलाना आपको मेरी यह नयी हवेली कैसी लगी?
Read this moral story : तीन प्रेरणादायक हिंदी कहानियां
सभी लोगों ने सेठ से कहा – अत्यंत सुन्दर! कारीगरों ने इसे बनाने में कमाल कर दिया है. सारी सुविधाएं हैं इस हवेली में. सेठ प्रशंसा सुनकर बहुत खुश हुआ. उसने सभी मेहमानों को अच्छे अच्छे पकवान और सुस्वादु भोजन कराया. सबको उपहार देकर विदा किया.
एक दिन उस नगर में एक परम विरक्त और पहुंचे हुए संत बाबा शांतानंद का आगमन हुआ. सेठ अपनी पत्नी के साथ उनसे मिलने गए और उनका खूब आदर सत्कार किया. सतसंग किया और अपनी नयी हवेली में आने का न्योता भी दे दिया.
बाबा शांतानंद अपने शिष्यों के साथ अगले ही दिन उनकी हवेली में गए. सेठ ने अपनी हवेली में संत का बहुत आदर- सत्कार किया. अंत में सेठ ने संत से पूछा – बाबा! आपको मेरी यह हवेली कैसी लगी? संत ने सेठ से पूछा – इस हवेली का उपयोग क्या आपके परिवार के अलावा कोई और भी कर सकेगा? सेठ ने कहा – नहीं ! ऐसा तो नहीं हो पायेगा.
Read this moral story : मैं कहाँ जा रहा हूँ …
बाबा शांतानंद ने कहा – सेठ जी! आपका पहले वाली हवेली ही बहुत बड़ा और भव्य है. यदि आप इसे दूसरों के उपयोग के लिये बनबाते तो उसका सदुपयोग हो पाता.
संत की बातों से सेठ का विवेक जाग उठा. उन्होंने सौ कमरों वालों उस हवेली को धर्मशाला में परिवर्तित करवा दिया. उसके एक भाग में एक हॉस्पिटल खुलवा दिया. आते- जाते लोगों को रुकने का एक सुन्दर स्थान मिल गया और आस –पास के गाँव के लोग आकर उस हवेली में चल रहे हॉस्पिटल में अपना इलाज करवाते. उन सबको देख सेठ को आत्मिक आनंद मिलता और मन ही मन वह बाबा शांतानंद जी को स्मरण कर प्रफुल्लित हो उठता.
Read this moral story : मेंढक और TV Tower
साथियो! आज भी हमारे आस पास बहुत ऐसे लोग हैं जो सेठ गुणीचंद की तरह कई घरों और मकानों के स्वामी हैं,. वर्षों से वह घर बंद पड़ा होता है. उसका कोई उपयोग नहीं होता है. यदि ऐसे लोग सेठ की भांति कुछ लोक कल्याण का कार्य करें तो कितना अच्छा हो. हमें इस moral story से सीख लेने की आवश्यकता है.
आपको यह Moral Story हवेली नहीं हॉस्पिटल बनाओ कैसी लगी, अपने विचार जरुर व्यक्त करें.
आज भी हमारे आस पास बहुत ऐसे लोग हैं जो सेठ गुणीचंद की तरह कई घरों और मकानों के स्वामी हैं,. वर्षों से वह घर बंद पड़ा होता है. उसका कोई उपयोग नहीं होता है. यदि ऐसे लोग सेठ की भांति कुछ लोक कल्याण का कार्य करें तो कितना अच्छा हो.इसका विपरीत ज्यादा प्रचलित है , जिसके पास ज्यादा हैं वो और भी ज्यादा की तमन्ना करते हैं और छोटे छोटे घरो को बिगाड़कर , तोड़कर अपना बना लेने की सोच रहती है !!
आपका कमेंट हमारे लिए बहुमूल्य है. धन्यवाद!