Maryada Purushottam Sri Ram Hindi Essay मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम
भारत वर्ष के कण -कण में भगवान श्री राम का वास है. प्रस्तुत पोस्ट Maryada Purushottam Sri Ram Hindi Essay में भगवान् श्री राम के जीवन चरित के विषय कुछ लिखने का प्रयास किया गया है. कहा गया है कि हरि अनंत हरि कथा अनंता, कहई सुनहि बहु विधि सब संता. प्रस्तुत प्रसंग में महर्षि बाल्मीकि और देवर्षि नारद के बीच का संवाद है. बालकाण्ड के प्रथम सर्ग में बाल्मीकी नारद से अनेक गुणों का बखान कर ऐसे सर्वसद्गुण सम्पन्न नायक का नाम पूछते हैं- “एक ही पुरूष का लक्ष्मी ने अपने समस्त रूपों के साथ आश्रय लिया है?” नारदजी कहते हैं – “इन सभी गुणों से जो सम्पन्न हो ऐसा व्यक्ति तो देवताओं में भी नहीं; परन्तु हां, मनुष्यों में एक राम सभी सद्गुणों से सम्पन्न पुरूष हैं.” रामायण रामचन्द्र नामक नरोत्तम की कथा हैं. इसमें राम अपने सद्गुणों से देव बन गए प्रतीत होते हैं.
श्रीराम वैदिक संस्कृति और सभ्यता के आदर्श प्रतीक हैं . राम के जीवन में वैदिक संस्कृति का साकार रूप देखने को मिलता है. मानवीय मूल्यों से ओत-प्रोत जब हम विश्व के महापुरूषों के जीवन पर दृष्टिपात करते हैं तो राम का जीवन सर्वोपरि जान पड़ता है. आज हजारों वर्षों से राम का पावन चरित्र लाखों लोगों को प्रेरणा और मार्गदर्शन दे रहा है.
वाल्मीकि रामायण में (( 3/37/13 ) मारीच रावण से राम के गुणों का वर्णन करते हुए कहता है – “रामो विग्रहवान धर्म: अर्थात श्रीराम धर्म के मूर्ति मान स्वरूप हैं. राम सत्य के आधार हैं और सत्य को सर्वस्व मानते हैं. सुमित्रा कहतीहैं है- “नहि रामात परो लोके विधते सत्पथ स्थित: (वाल्मीकि 2/44/26) श्रीराम से बढकर सन्मार्ग में स्थिर रहनेवाला मनुष्य संसार में दूसरा कोई नहीं है.
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धर्मप्राण भारतीय जीवन दृष्टि, महान चरित्र और मानवीय आदर्श सबसे अधिक राम के जीवन में प्रत्यक्ष देखने को मिलता है. वाल्मीकि ने विभिन्न स्थलों पर राम को धर्मज्ञ:, धर्मस्य, परिरक्षक:, धर्मनित्य:, धर्मात्मा, धर्मवत्स्त्न:, धर्मभूतांवर: आदि शब्दों से संबोधित किया है.
श्रीराम को मर्यादा पुरूषोत्तम कहा जाता है क्योंकि बचपन से जीवन पर्यन्त राम के जीवन का कोई भी भाग देखें तो उनके जीवन में कहीं भी मर्यादा का उल्लंघन हुआ हो, ऐसा देखने को नहीं मिलता.
विद्यार्थी जीवन, गृहस्थ राजा, पिता-पुत्र ,पति-पत्नी, स्वामी-सेवक , गुरू-शिष्य अथवा भाई के रूप में सर्वत्र एक नियमित जीवन दिखाई देता है. विकारों, विचारों अथवा व्यवहार में उन्होंने कहीं भी मर्यादा नहीं छोडी.
बालकाण्ड के प्रथम सर्ग में जब वाल्मीकि नारद से पूछते हैं- “इस समय संसार में गुणवान , वीर्यवान, धर्मज्ञ , कृतज्ञ, सत्यवक्ता और दृढ प्रतिज्ञ कौन है?” नारद इसके उत्तर में राम के 64 गुण गिनाते हैं – मन को वश में रखनेवाले, महबलवान, कांतिमान, धैर्यवान, जिन्तेंद्रिय, बुद्धिमान, नीतिज्ञ , वक्ता, सत्य प्रतिज्ञ, जीवों के धर्म के रक्षक, आदि.
राम तेरे कितने नाम
फादर कामिक बुल्के ने राम के अवतारी होने का खंडन किया है और राम एक ऐतिहासिक पुरूष थे यह जोर देकर प्रमाणित किया है. वाल्मीकि और उनके बाद के सैकड़ों कवियों ने रामकथा को अलग-अलग प्रकार से लोगों के हृदय में इतनी गहराई में उतार दिया है और उसे इतना सत्यव्रत बना दिया है कि सच्ची वास्तविकताएँ भी संभवतः इससे अधिक यथार्थ नहीं लगतीं.
राम काल्पनिक पात्र होते तो हजारों वर्ष बाद भी उनका यशोगान न गाया जाता. सम्पूर्ण भारतीय समाज के समान आदर्श के रूप में राम का उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम के सभी भागों में स्वीकार हुआ है. भारत की हर एक भाषा की अपनी रामकथाएं हैं. इसके उपरांत भारत के बाहर के देशों- फिलीपाईन्स, थाईलैंड, लाओस, मंगोलिया, साईबीरिया, मलेशिया, बर्मा अब म्यांमार , स्याम, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा, कम्बोडिया, चीन, कपान, श्रीलंका, वियतनाम आदि में भी रामकथा प्रचलित है.
बौद्ध,जैन और इस्लामी रामायण भी हैं. मैक्समूलर, जोन्स, कीथ, ग्रीफिथ, बारान्निकोव जैसे विद्वान राम के त्यागमय, सत्यानिष्ठ जीवन से आकर्षित थे. किसी भी काल्पनिक पात्र का अन्य देशों, अन्य धर्मों में हजारों वर्षों से ऐसे प्रभाव का टिका रहना संभव नहीं. भारतीय मानस को तो राम कभी काल्पनिक लगे ही नहीं. वे घर -घर में इष्ट की तरह पूजे जाते हैं.
राम ने अपने युग में एकता का महान कार्य किया था.आर्य, निषाद, भील, वानर, राक्षस आदि भिन्न संस्कृतियों के बीच सुमेल साधने का काम राम ने किया. रावण की मृत्यु के बाद राम के मन में रावण के प्रति कोई द्वेष नहीं.
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वाल्मीकि के राम मनुष्य हैं, नरश्रेष्ठ हैं. राम स्वयं कहते हैं- “मैं मनुष्य हूँ, दशरथ का पुत्र हूँ. राम में दोष, आसक्तियां और मानव- सहज दुर्बलताएँ भी हैं. राम रोते हैं, हिम्मत हार जाते हैं, निंदा कर बैठते हैं, क्रोध करते हैं और लोगों में अपनी अपकीर्ति और निंदा होने का डर भी है.
भारतीय संस्कृति की आधारशिला परिवार-व्यवस्था है. परिवार टूटता है तो संस्कृति टूटती है. राम ने पारिवारिक संबंधों में आदर्श आचरण का उदाहरण प्रस्तुत किया है.
सुशासन, सुव्यवस्था, धर्मपरायणता, शांति, सदाचार, व्यक्ति की उन्नति आदि की पूर्णता के रूप में आज भी हमारे पास ‘रामराज्य’ से अधिक सुंदर कोई अन्य शब्द नहीं है. रामराज्य का वर्णन महर्षि बाल्मीकि ने युद्धकाण्ड के 128 वें सर्ग में किया है.
हिन्दू संस्कृति की पूर्ण प्रतिष्ठा राम में चरितार्थ हुई है. जीवन के सभी क्षेत्रों में राम का जीवन आदर्श प्रस्तुत करता है. हिन्दू संस्कृति का स्वरूप रामचरित्र के दर्पण में पूर्णत: प्रतिबिंबित हुआ है. भारत का यह आदर्श यदि विश्व मानव का आदर्श बने तो मानव जाति सुसंस्कृत हो जाएगी. भगवान श्री राम का उदात्त चरित्र आज भी जनमानस के लिए पूजनीय और अनुकरणीय है.
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श्री राम हमारे आराध्य ही नहीं हैं उन्होंने लोक जीवन में आदर्श स्थापित करने के लिए बहुत से कष्ट सहे | श्री राम के ऊपर आप की यह पोस्ट बहुत सुरुचि पूर्ण है |