प्रस्तुत पोस्ट Poet Bhushan Self Respect Hindi Story में हम वीर रस के कवि भूषण के जीवन से संबन्धित एक प्रेरक घटना के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। कविवर भूषण रीतिकाल के एक बहुत प्रसिद्ध कवि थे।
भूषण कवि का आत्म- सम्मान हिन्दी प्रेरक कहानी
यदि आपको हिन्दी मे रुचि है तो आप भूषण कवि के नाम से जरूर परिचित होंगे। हिन्दी जगत में भूषण एक प्रसिद्ध कवि हुए। वे वीर रस के कवि थे। उनकी कविताओं में ओज और जोश था। बचपन मे भूषण अधिक योग्य नहीं थे। उनके बड़े भाई मतिराम और चिंतामणि बहुत ही विद्वान और श्रेष्ठ कवि भी थे।
भूषण कवि का जन्म तिकवापुर गाँव में हुआ था। यह गाँव कानपुर की घाटमपुर तहसील में पड़ता है। वे अपने भाई चिंतामणि के साथ रहते थे। बचपन में गाय चराने यमुना के किनारे चले जाते थे। दिन भर काम करने के कारण उनको बहुत भूख लग जाती थी। एक बार भूषण गायें चराकर लौटे। वे खाना खाने लगे। दाल में नमक नहीं था। भूषण ने भाभी से जब इसकी शिकायत की तो भाभी ने बहुत उनको बहुत भला बुरा सुनाया। भाभी बोली – अभी तो कमाते नहीं हो। जब कमाने लगोगे तो नमक वाली दाल खा लेना।
भाभी के कटु वचन सुनकर भूषण बिना भोजन किए घर से चले गए। वे आगरा जाकर अपने बड़े भाई मतिराम के पास रहने लगे।
गाँव में माँ काली का मंदिर था। भूषण उस मंदिर में माँ काली की पूजा करते थे। माँ काली से उन्हें कविता करने का वरदान मिल गया था।
एक दिन मतिराम भूषण को औरंगजेब के दरबार में ले गए। मतिराम ने औरंगजेब को सलाम किया, परंतु भूषण खड़े रहे। भूषण की यह अशिष्टता औरंगजेब को बुरी लगी। उसने मतिराम से भूषण के बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि वह उनका छोटा भाई है। औरंगजेब ने कहा – कवि का भाई है तो यह भी कवि होगा। इतना कहकर उसने भूषण को कविता सुनाने का आदेश दिया।
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मतिराम आदेश सुनकर स्तब्ध रह गए। वे नहीं जानते थे कि भूषण भी कविता करते हैं। दूसरी ओर भूषण को भी बादशाह का इस तरह से आदेश देना अच्छा नहीं लगा था। उन्होंने माँ काली का ध्यान किया और बादशाह से बोले – मैं आपको वीर रस की कविता सुनाऊँगा, परंतु आप मुझे वचन दीजिये कि कविता सुनकर आप क्रोध में हमें मारने का आदेश नहीं देंगे।
औरंगजेब ने कहा – मैं वचन देता हूँ। तुम दोनों भाइयों को कुछ भी नहीं कहा जाएगा।
भूषण ने वीर रस की ऐसी कविता सुनाई जिसमें औरंगजेब के प्रति विरोध का स्वर था। उसे सुनकर औरंगजेब बहुत क्रुद्ध हो गया और उन दोनों भाइयों को तत्काल आगरा से चले जाने का आदेश दिया। भूषण वहाँ से सीधे शिवाजी की सभा में गए। उनकी कवितायें सुनकर शिवाजी बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने भूषण को अपना राजकीय कवि बना लिया।
कहा जाता है कि शिवाजी ने भूषण की कविताओं से प्रसन्न होकर उन्हें बावन गाँव, बावन हाथी और बावन लाख स्वर्ण मुद्रायेँ दीं। भूषण को अपनी भाभी के कटु वचन याद थे। उन्होंने एक लाख स्वर्ण मुद्राओं का नमक खरीदा और उसे बैल गाड़ियों पर लदवाकर अपने गाँव भाभी के पास भेज दिया। इतना अधिक नमक देखकर गाँव वाले दंग रह गए। नमक के उस ढेर को गाँव में रखा गया। इतना सारा नमक मानो वहाँ पहाड़ का ढेर बन गया हो । आज भी तिकवापुर गाँव में उस नमक के पहाड़ के निशान मौजूद हैं। इसलिए कभी भी किसी के स्वाभिमान और आत्म–सम्मान को चोट नहीं पहुंचाना चाहिए। दूसरी ओर यदि कोई व्यक्ति दृढ़ संकल्प कर ले तो किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
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Hitontech says
Nice Post Admin