तीन दिहाड़ी मजदूर हिंदी कहानी
प्रस्तुत कहानी तीन दिहाड़ी मजदूरों के जीवन से सम्बंधित है. इसमें मानवीय जीवन की कठिनाइयों का वर्णन किया गया है. बेरोजगारी किस तरह से मजदूरों को पलायन करने पर मजबूर कर देता है.
तीन दिहाड़ी मजदूर थे. वे हमेशा एक साथ ही कहीं जाते-आते थे और हमेशा एक ही शहर में काम करते थे. लेकिन एक बार उन्हें कोई नौकरी नहीं मिली और धीरे-धीरे उनके पास खाने के लिए भी कुछ नहीं बचा. उन्होंने एक-दूसरे से पूछा कि अब उन्हें क्या करना चाहिए. एक मजदुर ने प्रस्ताव रखा कि अब उन्हें इस जगह पर नहीं रहना चाहिए, बल्कि अन्य जगह पर जाना चाहिए. वे एक शहर में पहुंचें. वहां काम ढूंढने के लिए वे अलग-अलग हो जाते और शाम को एक सराय पर वापस आ जाते. एक दिन उन्होंने सराय के मालिक से तय किया कि अगर वे अलग हो गए तो वे उसे चिट्ठियाँ लिखेंगे, जिससे कि हरेक को पता रहेगा कि दूसरा कहाँ पर है.
यह योजना सबको अच्छी लगी. आखिर वे सभी यात्रा पर निकल पड़े. सडक पर उन्हें अच्छे कपड़े पहने हुए एक आदमी मिला. उसने उनके बारे में जानना चाहा तो वे बोले, “हम दिहाड़ी मजदूर हैं, हम काम तलाश कर रहे हैं. अभी तक तो हम सफल रहे हैं, लेकिन जब हमें काम मिलना एकदम बंद हो जाएगा, हम अलग-अलग हो जाएँगे.”
अजनबी ने कहा, “इसकी कोई जरूरत नहीं है, मैं कहूँ यदि तुम लोग वैसा ही करो तो तुम्हें काम या पैसे की कमी नहीं होगी. तब तुम सेठ बन जाओगे और बग्घी में चलोगे.”
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एक ने कहा, “यदि इससे हमारी खुशी और अंतरात्मा को कोई हानि नहीं होती है तो हम तुम्हारे कहे अनुसार ही करेंगे.”
वह आदमी बोला, “नहीं, मैं तुम्हारा कुछ नहीं लेना चाहता, कम से कम तुम्हारी सुख-शांति तो बिलकुल नहीं.”
दूसरे ने इस बीच अजनबी के पैर देखे. उसके पैरों में से एक घोड़े का खुर था. यह देखकर पहले पहल तो वह उस अजनबी की बात सुनने से डर गया, लेकिन वह बुरा व्यक्ति बोला कि उसे उनकी आत्माओं से कोई लेना-देना नहीं है, बल्कि किसी और की आत्मा उसे चाहिए. यह आश्वासन मिलने पर तीनों ने उसे हामी भर दी. बुरे व्यक्ति ने उनसे कहा कि वह यह चाहता है कि हर सवाल के जबाब में पहला व्यक्ति ‘हम तीनों ‘ दूसरा व्यक्ति “पैसों के लिए” और तीसरा व्यक्ति “यह सही है” चिल्लाए.
यही जबाब उन्हें हर समय देना होगा और कोई दूसरा शब्द मुंह से नहीं निकालना होगा. जब तक वे उसकी बात मानेंगे, उनकी जेबें पैसों से भरी रहेंगी. शुरूआत में बुरे व्यक्ति ने उन्हें बहुत सारे रूपये दिये और एक खास शहर में जाकर एक खास सराय में रूकने के लिए कहा. वे वहां पहुंचे तो सराय के मालिक ने उनके पास आकर पूछा कि उन्हें कुछ खाने के लिए चाहिए या नहीं.
पहले आदमी ने कहा, ’हम तीनों ‘ दूसरा व्यक्ति “पैसों के लिए” और तीसरा व्यक्ति “यह सही है” सराय मालिक ने दोहराया “हाँ, यह सही है.”
जल्दी ही उनके सामने ढेर सारा खाना आ गया. जैसे ही उन्होंने खाना खत्म किया, सराय-मालिक खाने के पैसे लेने आ गया और बिल उनके सामने रख दिया.
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पहले आदमी ने कहा, ’हम तीनों’ दूसरा व्यक्ति “पैसों के लिए” और तीसरा व्यक्ति “आप लोग एकदम सही कह रहे है” “आप तीनों को भुगतान करना पड़ेगा. पैसों के बिना मैं आपकी सेवा नहीं कर सकता. सराय-मालिक के ऐसा कहने पर उन्होंने मांगे गये पैसों से भी ज्यादा पैसे निकालकर दे दिये. यह देखकर वहां बैठे मेहमान एक-दूसरे से बोले, “ये लोग एकदम पागल हैं.”
सराय- मालिक बोला, “हाँ, इनकी दिमागी हालत एकदम ठीक नहीं लगती.” फिर भी वे उसकी सराय में रहे और ‘हम तीनों’ ‘पैसों के लिए’ और ‘यह सही है’ के अलावा एक भी शब्द नहीं बोले, इसके अलावा वे वहाँ की एक-एक गतिविधि को भी देखते-जानते थे.
एक दिन वहाँ एक बड़ा व्यापारी आया, जो अपने साथ बहुत सारे पैसे लेकर आया था. उसने सराय-मालिक से कहा, “मेरे सोने की देखभाल करो नहीं तो ये तीनों बेवकूफ इसे चुरा लेंगे.” सराय-मालिक ने थैले अपने कमरे में लाकर रख दिये. उसने महसूस भी किया कि वे थैले सोने से भरे हुए हैं. उसने तीनों दिहाड़ी मजदूरों को नीचे के कमरों में रख दिया और व्यापारी को सबसे अच्छे कमरे में रखा.
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आधी रात में जब सराय-मालिक को लगा कि सभी सो गये हैं तो वह अपनी पत्नी को साथ लेकर धनी व्यापारी के कमरे में गया और उसे कुल्हाडी के वार से मार डाला. उसकी हत्या करके वे फिर सोने चले गये. जब सूरज उगा तो हंगामा शुरू हो गया, क्योंकि व्यापारी मरा हुआ पाया गया था. सराय में ठहरे हुए सभी लोगों को बुलाया गया. सराय-मालिक ने कहा कि व्यापारी की हत्या इन तीनों दिहाड़ी मजदूरों ने की है.
इस बात से अन्य लोगों ने भी सहमती व्यक्त की और कहा कि कोई और व्यक्ति यह काम नहीं कर सकता. उन तीनों से जब पूछा गया कि यह काम उन्होंने किया है या नहीं, तो पहले ने जबाब दिया, ’हम तीनों ‘ दूसरा व्यक्ति “पैसों के लिए “ और तीसरा व्यक्ति “यह सही है.”
सराय-मालिक बोला, “इनकी बात सुनो, वे अपने आप ही स्वीकार कर रहे हैं.” तीनो को कैद में डाल दिया गया और उन्हें समझ में आया कि यह तो बड़ी कठिन परिस्थिति आ गयी है. शाम तक बुरा व्यक्ति वहाँ आया और उनसे बोला,”एक दिन और हौसला रखो और बेचैन मत होओ तुम्हारा बाल भी बांका नहीं होगा.”
अगली सुबह उन्हें न्यायधीश के सामने ले जाया गया. उसने उनसे पूछा, ”क्या तुमने खून किया है?” पहला बोला, ’हम तीनों ‘न्यायधीश ने पूछा, ”क्यों?” दूसरा बोला, “पैसों के लिए “न्यायधीश चिल्लाया, “दुष्ट व्यक्तिओं, तुम्हें अपने किये का अफसोस नहीं है?” तो तीसरे ने कहा, “यह सही है.” न्यायधीश ने उन्हें मृत्युदंड दिया, क्योंकि उन्होंने अपना अपराध स्वीकार कर लिया था और उस पर दृढ़ता से टिके थे.
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तीनों साथियों को ले जाया गया और सराय-मालिक को उनके साथ आरोपी के रूप में जाना पड़ा. जैसे ही उन्हें जल्लाद ने पकड़ा और उस तख्ते पर खड़ा किया, जहाँ एक व्यक्ति तेज तलवार लेकर खड़ा था. अचानक चार लाल लोमड़ियों से जुती गाड़ी वहाँ तेजी से उडती हुई आयी और उसकी खिड़की से एक सफेद रूमाल दिखाई दिया. जल्लाद ने कहा,” यह तो माफी का संकेत है.” गाडी में से आवाज भी आ रही थी, ’क्षमा ! क्षमा !’ गाड़ी से बुरा व्यक्ति उतरा. उसने एक राजा की तरह कपड़े पहने थे. उसने तीनों कैदियों से कहा, ”तुम निर्दोष हो, तुम अब बता सकते हो कि तुमने क्या देखा और क्या सुना.”
इस पर पहले मजदूर ने कहा, “हमने व्यापारी को नहीं मारा, खूनी वहाँ खड़ा है, ”उन्होंने सराय-मालिक की और इशारा किया, ”इसका सबूत इसके कमरे में है, जहाँ इसके द्वारा मारे गये और दूसरे लोगों की लाशें भी पड़ी होंगी.”
न्यायाधीश ने अपने सिपाहियों को भेजा. वहाँ वैसा ही था. सराय-मालिक को पकडकर उसका सर धड़ से उड़ा दिया गया. बुरी आत्मा ने फिर तीनों से कहा, ”तुम मुक्त हो, तुम्हें जिन्दगी भर के लिए पैसे भी मिलेंगे, क्योंकि मुझे जो चाहिए था, वह मुझे मिल गया है.”
कभी-कभी दृढ़ता से किसी बात पर अडिग रहना सही होता है. अगर वे मजदूर बीच में ही कुछ और बोल पड़ते तो शायद अंजाम कुछ और होता.
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