असलियत कभी नहीं छुपती हिंदी कहानी
एक शहर में मुचकुन और बुचकुन दो आदमी थे. दोनों की आँखे कमजोर थीं. पर वे इसे मानने को तैयार नहीं होते थे. लोग कहते भी कि अरे मुचकुन, बुचकुन तुम्हारी आंखें कमजोर हो रही हैं. तुम दोनों किसी आंख के डॉक्टर से मिलो. वह तुम्हारी आंखें देखकर दवा देगा. हो सकता है कि उचित नंबर का चश्मा दे. तब तुम्हें साफ दिखाई देगा. आँखों की रोशनी बच जाएगी. तुम्हारी लापरवाही से कहीं आँखों की रोशनी न चली जाए.
पर वे दोनों इसे हँसकर टाल देते और कहते – आँखें मेरी हैं. देखना हमें है. जब हम दोनों को सब दिखाई देता है तो डॉक्टर के पास क्यों जाएँ? लोगों को क्या पता कि कमजोर आँखों का तो हम बहाना करते हैं लोगों को मूर्ख बनाने के लिए.
उन्हीं दिनों उनके घर के पास की सडक पर काम हो रहा था. सडक चौड़ीकरण का काम किया जा रहा था. उस पर कंकड़ और सीमेंट डाला जा रहा था. मुचकुन और बुचकुन रोज इसे देखने जाते. सडक को बनते देख वे दोनों बहुत खुश होते.
ऐसे ही एक दिन जब वे सडक देखने गए तब चलते हुए आगे बढ़ गए. वहाँ गड्ढा था. वहाँ लाल झंडी लगी थी कि कोई आगे न जाए. वे आगे बढ़े कि पीछे से मजदूर चिल्लाए – उधर मत जाओ, गड्ढा है. मुचकुन और बुचकुन ठिठक कर रूक गए. पीछे से ठेकेदार की आवाज आई – आप दोनों को लाल झंडी नहीं दिखाई दे रही है. लगता है कि आपको कम दिखाई देता है. झंडी का मतलब है कि उधर खतरा है.
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दोनों ने कहा – अरे हमने झंडी देख ली थी. हम तो मजाक कर रहे थे. देखना चाहते थे कि गड्ढा कितना गहरा है. धीरे – धीरे सडक नई बन गई. उसका नामकरण किया गया. सडक का नाम रखा गया वीर शिवाजी मार्ग. नामकरण के दिन सडक को खूब सजाया गया. बच्चों के कार्यक्रम हुए. मिठाईयां बांटी गई. कार्यक्रम के अंत में घोषणा की गई कि यहाँ चौराहे पर वीर शिवाजी की घोड़े पर सवार पत्थर की प्रतिमा भी लगेगी. प्रतिमा ऊँचे चबूतरे पर रखी जाएगी. इस घोषणा पर दोनों ने खूब तालियाँ बजाई.
दूसरे दिन आसमान में बादल थे. सूरज बादलों से ढक गया था. लगता था कि बारिश आने वाली है. तभी खबर आई कि प्रतिमा लगाई जाने वाली है. सभी चौराहे की ओर रहे थे. मुचकुन और बुचकुन भी चले चौराहे पर भीड़ थी, वे दोनों दूर से खड़े होकर देखने लगे.
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मुचकुन बोला – ओह हो हो ! क्या गजब प्रतिमा है! ऊँचाई पन्द्रह फीट से कम न होगी.
बुचकुन – अरे, वीर शिवाजी के हाथ की तलवार तो देखो, कितनी चमक रही है. लगता है ओस की एक बूँद भी पड़ी तो उस जंग लग जाएगी.
मुचकुन – घोड़े के गले की माला देखो ऐसा लगता है कि घंटियाँ बज उठेंगी और नीचे वाली घंटी तो हीरे जैसी चमक रही है.
बुचकुन – वीर शिवाजी के पैर की जूती तो देखो. कैसे घोड़े की पीठ पर लगी जीन की पेटी में फंसी है.
मुचकुन – वीर शिवाजी ने जूती कहाँ पहनी है? वह तो बड़ा जूता है जो टखनों को ढंके हुए है,
बुचकुन – नहीं वह तो जूती है. उसमे चमकीले तार लगे हैं.
मुचकुन – वह बड़ा जूता है जिसमें फीता लगा है.
बुचकुन – वह जूती है ——.
मुचकुन – वह जूता है—–
‘जूती है’
‘जूता है ‘
दोनों झगड़ने लगे. वे अपनी- अपनी बात पर अड़े हुए थे. तभी उन्हें अपने पडोस का लड़का टिल्लू दिखाई दिया. वह दस वर्ष का था. उन्होंने उसे रोका. टिल्लू, रूको, रूको. जरा बताओ कि उस वीर शिवाजी की प्रतिमा ने पैरों में क्या पहना है ? छोटी जूती या – बड़ा जूता – दोनों एक साथ बोले.
टिल्लू अचरज से उन्हें देखने लगा. उसने अपने सिर पर हाथ मारा और बोला – प्रतिमा! कैसी प्रतिमा? वहाँ तो कुछ भी नहीं है. प्रतिमा तो अभी तक रखी नहीं गई है. वहाँ तो मजदूर अभी चबूतरा बना रहे हैं, उफ! अब तो आप लोग मान लें कि आपकी आँखें कमजोर हो गई हैं.
अचानक अपनी पोल खुलती देख वे दोनों शरमा गए.
दूसरे दिन मोहल्ले के लोगों ने देखा कि वे दोनों आँख के डॉक्टर के यहाँ जा रहे थे. असलियत कभी नहीं छुपती. बनावटीपन और झूठ- मुठ का ढोंग ज्यादा दिन तक नहीं चलता.
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