श्री हनुमान जयन्ती
Sri Hanuman Birthday Jayanti Celebrations श्री हनुमान जयन्ती चैत्र की पूर्णिमा को सेवा-धर्म के मूर्तिमान प्रतीक श्री महावीर जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है. उनका जन्म श्री राम कालीन बनचर जाति में हुआ था. उनकी माता का नाम अंजना और पिता का नाम केसरी था.

Sri Hanuman Birthday Jayanti Celebrations
कुछ लोग उन्हें बानर ही समझते हैं. परन्तु वे साक्षात् भगवान शंकर के अवतार थे. और श्री राम की सेवा में लिए ही वह रूप रखा था यही उनके जीवन का व्रत था. उनकी निष्काम सेवा और अनन्य राम भक्ति के कर्ण भारतीय संस्कृति का प्रत्येक भक्त उनकी पूजा करता है. श्री राम के पावन चरित्र के समान इनका भी चरित्र अत्यंत पवित्र और ऊँचा है. भारतीय इतिहास में उनकी महिमा का वर्णन स्वर्णाक्षरों में अंकित है. यह वीरता के स्वरूप और संसार के ज्ञानियों में अग्रगण्य मने जाते हैं.
इनकी राम भक्ति की एक कथा अत्यंत मार्मिक है. लंका जीतने के बाद श्री अवध में राम के पदार्पण करने पर उनका राज्याभिषेक हुआ. उस समय महारानी सीता ने उनकी सेवाओं से प्रसन्न होकर एक बहुमूल्य मणियों का हार पारितोषिक के रूप में उन्हें प्रदान किया. हनुमानजी उस चमकते हुए रत्नहार की मणियों के दानों को दांत से तोड़-तोड़ कर देखने लगे.
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यह बात श्री राम के अनुज लक्ष्मण को बहुत बुरी लगी. उन्होंने सोचा-बानर को मणियों का मूल्य क्या मालूम. वह उसके महत्व को क्या समझे ? इसलिए रोष में भरकर वह पूछ बैठे – “हनुमान !यह क्या कर रहे हो ?” हनुमान जी तुरंत निशंक होकर बोल उठे – “मैंने सुना है कि मेरे प्रभु राम सब में समाए हुए हैं. इसलिए जरा परीक्षा कर रहा था कि इन चमकीले पत्थरों के किस हिस्से में वह छिपे बैठे हैं ?” महावीर ने विस्वास के साथ अपने नाखूनों से अपना हृदय चीरकर दिखा दिया और उसमें बैठे हुए श्री राम-जानकी का प्रत्यक्ष दर्शन उन्हें करा दिया. उन्हीं भक्त शिरोमणि श्री महावीर का जन्मोत्सव आज के दिन प्रत्येक आस्तिक के घर में मनाया जाता है.
भारतीय संस्कृति में हनुमानजी को बल का प्रतीक माना गया है. उनमें सब प्रकार के बलों का विकास हुआ था. यथा –
मनोजवं मारूत तुल्य वेगं
जितेन्द्रियं बुद्धिमता वरिष्ठं
वातात्मजं वानरयूथ मुख्यं
श्री राम दूतं शरण प्रपद्दे |
हनुमानजी केवल शारीरिक बल में ही पुष्ट नहीं थे, वे मन की तरह चंचल भी थे. उनका वेग वायु के समान था उनका शरीर वज्र के समान कठोर और मन पुष्प की भांति कोमल था. बड़े-बड़े पर्वतों को वह अपने चरण के प्रहार से चूर्ण कर सकते थे और बड़ी –से बड़ी चट्टान को लेकर आकाश में उड़ सकते थे.
इस अपार शारीरिक शक्ति के साथ उनमें मनोबल भी अपार था. वे जितेन्द्रीय थे, संयमी थे, शीलवान, सच्चरित और व्रती थे. उन्होंने कभी भी अपनी शक्ति का अपव्यय नहीं किया. उन्होंने वासनाओं पर विजय पाई थी. वे बुद्धिमानों में वरिष्ठ अर्थात श्रेष्ठ थे.
आमतौर पर लोग यह मानते हैं कि जिसमें शारीरिक बल अधिक होता है उसमें बुद्धिबल की कमी होती है जो बुद्धिमान होता है वह शरीर की शक्ति में दुर्बल होता है. परन्तु हनुमानजी इसके अपवाद थे. शरीर, हृदय ओर बुद्धि तीनों को बलवान बनाने के बाद एक और भी जरूरी चीज बचती है, वह है – संगठन की कुशलता. हम खुद तो अच्छे हो सकते हैं, परन्तु दूसरों को बनाने की योग्यता प्राप्त करना सबसे महान गुण है. हनुमानजी में यह भी गुण था. वे बानर दल के प्रधान थे और उन्हें बड़े –बड़े कामों के करने की प्रेरणा देते थे. इसलिए समाज उनकी पूजा करता है.
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“मैंने सुना है कि मेरे प्रभु राम सब में समाए हुए हैं. इसलिए जरा परीक्षा कर रहा था कि इन चमकीले पत्थरों के किस हिस्से में वह छिपे बैठे हैं ?” बढ़िया प्रसंग ! हनुमान जयंती की अनन्त शुभकामनाएं
जय हो!
“मैंने सुना है कि मेरे प्रभु राम सब में समाए हुए हैं. इसलिए जरा परीक्षा कर रहा था कि इन चमकीले पत्थरों के किस हिस्से में वह छिपे बैठे हैं ?” बढ़िया प्रसंग ! हनुमान जयंती की अनन्त शुभकामनाएं