कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास महान ग्रन्थ महाभारत के रचनाकार थे. इन्होंने वेदों के निर्णय को समझने के लिए ब्रह्मसूत्रों की रचना की. महाभारत और पुराणों की सरल भाषा में रचना कर सामान्य जनों के लिए सुलभ बना दिया. कृष्ण द्वैपयान का शाब्दिक अर्थ वर्ण और काल से सम्बंधित है.वेद्ब्यास जी ने अठारह पुराणों की रचना करके उपाख्यानों द्वारा वेदों को समझाने की चेष्टा की. इस प्रकार कर्म उपासना और ज्ञान का विस्तार करने के लिए जो कुछ करना था वह सब किया. महर्षि वेदव्यास के मनुष्य जाति पर अनंत उपकार हैं. यह जगत उनका चिर आभारी रहेगा. उनकी गिनती सात चिरंजीवियों में होती है.
Krishna Dvaipayana Ved Vyas Quotes in Hindi कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास के अनमोल विचार
1. अपने पूर्वजों का सम्मान करना चाहिए. हमेशा उनके बताए हुए मार्ग पर चलना चाहिए.
2. जुआ खेलना अत्यंत निष्कृष्ट कर्म है. यह मनुष्य को समाज से गिरा देता है.
3. चतुर मित्र सबसे श्रेष्ठ और बढ़िया मार्ग प्रदर्शक होता है.
4. एकमात्र विद्या ही तृप्ति देने वाली होती है.
5. झूठे पर विश्वास और विश्वस्त पर भी अविश्वास नहीं करना चाहिए.
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6. दूसरों से घृणा करने वाले, दूसरों से ईर्ष्या करने वाले, असंतोषी, क्रोधी, सभी बातों में शंका करने वाले और दूसरे के धन से जीविका निर्वाह करने वाले – ये छहों सदा दुखी रहते हैं.
7. अपने कार्य को छोड़ कर जो विरोधी के कार्य को करने लगता है और जो मित्र के कार्य में मिथ्या व्यवहार करता है, वह मूढ़ कहलाता है.
8. पराए धनों का छीनना, पराई स्त्री से व्यभिचार करना तथा मित्र का परित्याग करना; ये तीन दोष विनाशकारक हैं.
9. सत्य, दान, अनालस्य-फुरती, अनसूया क्षमा तथा धृति – ये छहों गुण मनुष्य को कभी नहीं त्यागने चाहिए.
10. आरोग्य, ऋण न होना, प्रवास न होना, सज्जन के साथ मेल, स्वाधीन आजीविका तथा निर्भय निवास करना – ये छह इस संसार के सुख हैं.
11. ईर्ष्यालु, घृणा करने वाला, असंतोषी, क्रोधी, नित्य शंका करने वाला, दूसरे के भाग्य पर जीने वाला- ये छह नित्य दुखी रहते हैं.
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12. जो मनुष्य परिवार से निरर्थक प्रवास, पापियों से मेल-जोल, पर स्त्री गमन, दम्भचोरी, पैशुन्य-चुगली, मद्दपान का सेवन नहीं करता है, वह सदैव सुखी रहता है.
13. सत्य से बढकर कोई धर्म नहीं है और झूठ से बढकर कोई पाप नहीं है. अतः असत्य को छोडकर सत्य को ग्रहण करो.
14. वाणों से विंधा हुआ तथा फरसे से कटा हुआ वह भी अंकुरित हो जाता है, किन्तु कटु वचन कहकर वाणी से किया हुआ भयानक घाव नहीं भरता.
15. न कोई किसी का मित्र है और न कोई किसी का शत्रु. स्वार्थ से ही मित्र और शत्रु एक दूसरे से बंधे हुए हैं.
16. यदि हृदय का काषाय (राग आदि दोष) दूर नहीं हुआ हो काषाय (गेरूआ) वस्त्र धारण करना स्वार्थ साधन की चेष्टा को समझना चाहिए. मेरा तो ऐसा विश्वास है कि धर्म का ढोंग रखने वाले गुंडों के लिए यह जीविका चलाने का एक धंधा मात्र है.
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17. जिस सभा में बड़े-बूढ़े नहीं, वह सभा नहीं, जो धर्म की बात न कहे, वह बूढ़े नहीं, जिसमें सत्य नहीं वह धर्म नहीं और जो कपटपूर्ण हो, वह सत्य नहीं.
18. मनुष्य जिस कामना को छोड़ देता है, उसकी ओर से वह सुखी हो जाता है कामना के वशीभूत होकर तो यह सर्वदा दुःख ही पाता है.
19. राग के समान कोई दुःख नहीं है और त्याग के समान कोई सुख नहीं है.
20. निरोगी रहना, ऋणी न होना, परदेश में नहीं रहना, अच्छे लोगों के साथ मेल होना, अपनी वृत्ति से जीविका चलाना और निर्भय होकर रहना- ये छह मनुष्य लोक के सुख हैं.
21. विकार को मिटाने के लिए ही तो लोग तीर्थ यात्रा करते हैं.
22. पापी मनुष्य मृदु वचन बोलने वाले को शक्तिहीन समझता है.
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