प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्यालय की स्थापना सन 1937 में हुई थी. इसके संस्थापक एक सेवा निवृत व्यवसायी दादा लेखराज कृपलानी थे, जिनका आध्यात्मिक नाम प्रजापति ब्रह्मा रखा गया. लोग उन्हें श्रध्दा पूर्वक ब्रह्मा बाबा के नाम से भी बुलाते हैं। यह संस्था संयुक्त राष्ट्र से एक गैर-सरकारी संस्था के तौर पर जुडी हुई है. ब्रह्मा कुमारीज का उद्देश्य मानव जीवन में दिव्य गुणों एवं शुद्ध विचारों का प्रसार करना है. संस्था के राजयोग रिसर्च फाउन्डेशन में 19 विंग्स हैं, जो विभिन्न प्रकार के कार्यों में जुटे हुए हैं. दादी जानकी जी, दादी हृदयमोहिनी जी और दादी रतनमोहिनी जी इसके वर्तमान प्रशासक हैं. यह संस्था बहुत अच्छा कार्य कर रही है. यह संस्था दुनिया के 100 देशों में फैला है और इसके लगभग 8500 पूरी दुनिया में कार्य रत हैं. प्रस्तुत हैं Brahma Kumaris Quotes in Hindi ब्रह्मा कुमारीज के दिव्य विचार.
Brahma Kumaris Quotes in Hindi ब्रह्मा कुमारीज के दिव्य विचार
1. राज योग अंतर जगत की ओर एक यात्रा है। यह स्वयं को जानने या फिर से पहचानने की यात्रा है। अपनी भागदौड भरी जिन्दगी से थोड़ा वक्त निकालकर शांति पूर्वक बैठकर आत्म निरीक्षण करना ही राज योग है.
2. इच्छाओं और अपेक्षाओं को परिवर्तन कर शुभता में बदल दें.
3. हम विकारों के कारण अशुद्ध हो गए, इसलिए हमें शुद्धि आकर्षित करती है.
4. हमारा अंतर्मन शरीर की स्वचालित क्रियाओं को स्वत: नियंत्रित करता रहता है.
5. क्रोध का आवेग चाहे मंद हो या तीव्र-तीव्रतम हो, वह अपना विषाक्त प्रभाव शरीर पर और जीवन व्यवहार पर छोड़ता ही है परिणाम से हम सब परिचित हैं कि संघर्ष, कलह, मारपीट का एक नारकीय वातावरण बन जाता है. यह मानसिक प्रदूषण बड़ा भयंकर होता है.
6. हमारा भोजन सात्विक और संतुलित होना चाहिए. भोजन के विषय में कभी भी लापरवाही न बरतें.
7. क्या शांति प्राप्त करने के लिए हम अपनी बुराइयां जैसे क्रोध, तनाव एवं प्रदूषण का त्याग करने के लिए तैयार हैं. यदि ‘हाँ’ तभी हम सदभाव ला सकते हैं.
8. मानसिक विक्षिप्तता के कारण निर्णय शक्ति नष्ट हो जाती है.
9. अपनी इच्छा के अनुसार ही सब कार्य हों. अपेक्षाएँ भी सदा पूरी नहीं होती.
10. स्वयं की अस्वस्थता की जाँच करा कर प्रकृति के अनुसार आहार-विहार रख स्वयं को स्वस्थ कर लें. काल-देश को देखते हुए स्वयं को सतर्क रखें.
11. हम जीवन में शांति तभी प्राप्त प्राप्त कर सकते हैं, जब हम अपने मन में शांति का अनुभव करेंगे, यही सदभावना लाएगी. सदभाव चिन्तन, कर्म और बोल में समान होना चाहिए.
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12. तनाव रहित रहने का एकमात्र उपाय शांति स्वरूप होना है. हमें अहसास करना होगा कि शांति हमारा स्वधर्म है.
13. नकारात्मक में भी सकारात्मक सोचने की आदत डालें.
14. शरीर के सभी अंग प्राण उर्जा द्वारा संचालित होते हैं.
15. हम प्रेम, शांति आदि की अनुभूति के लिए विभिन्न तरीके अपनाते हैं. सुख-शांति बाहर नहीं अंदर है.
16. जब मनुष्य के पास सोचने के लिए कुछ नहीं होता, तब वह बीती हुई बातोँ को याद करने लगता है. बीती बातों से सीख लें तो अच्छा है वरना बीती बातों को उगलने से कुछ नहीं मिलता केवल समय नष्ट होता है.
17. इस युग को तनाव का युग कहा गया है. इस युग में ज्यादा विचार फालतू और नकारात्मक चलते हैं. जैसे हम सोचेंगे वैसा ही बनेंगे.
18. जो करो सोच-समझ कर करो.
19.` मानसिक अस्त-व्यस्तता होने से सही -गलत का विवेक ही नहीं रहता. कोई भले की बात हो तो वह भी गलत लगती है.
20. कई लोग मानते हैं कि भौतिक संपत्ति द्वारा ही खुशी हासिल की जाती है। यह भी सच है कि यह खुशी अस्थायी ही होता है.
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