डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुख़र्जी एक परिचय:
नाम: श्यामा प्रसाद मुख़र्जी
जन्म तिथि : 6 जुलाई 1901
जन्म स्थान: कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत
मृत्यु तिथि : 23 जून 1953 (आयु 51 वर्ष )
मृत्यु स्थल : जम्मू-कश्मीर, भारत
राष्ट्रीयता: भारतीय
पद: कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति, पंडित जवाहरलाल नेहरु के मंत्रिमंडल में मंत्री, भारतीय जनसंघ के संस्थापक
राजनीतिक दल: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, भारतीय जनसंघ (अब भारतीय जनता पार्टी)
अन्य राजनीतिक संबद्धता: हिंदू महासभा
पत्नी: सुधा देवी
बच्चे: 5
पिता: आशुतोष मुखर्जी
माता: जोगमाया देवी मुखर्जी
अल्मा मेटर: प्रेसीडेंसी कॉलेज
व्यवसाय: शिक्षाविद, बैरिस्टर, विचारक, कार्यकर्ता
डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुख़र्जी के अनमोल विचार Dr Shyama Prasad Mukherjee Quotes in Hindi
1. भारत का यश उसकी राजनीतिक संस्थाओं और सैनिक शक्ति से नहीं बल्कि उसकी आध्यात्मिक महानता, सत्य और आत्म के विचारों दुखी मानवता की सेवा में, अभिव्यक्त सर्वोच्च शक्ति की विराटता में उसके विश्वास पर आधारित है.
2. किसी राष्ट्र का नैतिकता के सिद्धांत प्रतिपादित करने एवं उसकी रक्षा हेतु कदम बढ़ाने से पहले भौतिक रूप से शक्तिशाली बनना चाहिए और पर्याप्त सैन्य शक्ति तैयार करनी चाहिए. वही राष्ट्र वास्तव में महान है जिसके पास सैनिक शक्ति एवं ताकत है किन्तु जो स्वार्थ हेतु उसका दुरूपयोग नहीं करता.
3. हम उन्नति करेंगे. हम एक होंगे. हम ऐसे देश में रहेंगे जिसका भाग्य केवल उसके बच्चों के हाथ में होगा जहाँ एक स्वतंत्र और हिंदुस्तान का झंडा हमेशा शांति और प्रगति की, सहनशीलता और आज़ादी की प्रतिष्ठा की घोषणा करेगा.
4. कश्मीर का भारत में विलय कैसे होगा? क्या कश्मीर एक गणतंत्र के अन्दर दूसरा गणतंत्र बनने जा रहा है? क्या हम इस प्रभुत्व संपन्न संसद के अतिरिक्त भारत की सीमा के अन्दर एक और प्रभुत्व संपन्न संसद बनाने की सोच रहे हैं? उन्होंने चेतावनी दी कि आप अगर तूफ़ान से खेलना चाहते हैं और यह कहना चाहते हैं कि हम असमर्थ और शेख अब्दुल्ला को उसकी मनमर्जी करने दें तब कश्मीर को हम खो देंगे. मैं इस बात को जोर देकर कहना चाहता हूँ कि हम कश्मीर को खो देंगे.
5. प्रधानमंत्री को साफ़ साफ़ कहना चाहिए कि हम इस प्रकार की कश्मीरी राष्ट्रीयता नहीं चाहते हैं. हम इस प्रभुत्व संपन्न कश्मीर के विचार को नहीं चाहते हैं. अगर आप कश्मीर के बारे में ऐसा करते हैं तो अन्य रियासतें भी ऐसी मांग करेंगी.
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6. जम्मू और कश्मीर राज्य का भारत में विलय के मुद्दे को ऐसे अधर में नहीं छोड़ा जाना चाहिए. इस राज्य का शेष भारत में विलय और जम्मू और लद्दाख क्षेत्रों को कश्मीर घाटी में विलय के प्रश्न पर शीघ्रातिशीघ्र अंतिम निर्णय लिया जाना चाहिए.
7. हमारा एकमेव अस्त्र जनमत है जिसे अपनी बात समझाने का हमने प्रयत्न किया है. मैं केवल यही आशा करता हूँ कि लोकमत अपना असर डालेगा और श्री नेहरु को अपनी वर्तमान नीति को बदलने के लिए बाध्य करेगा जिससे वह पाकिस्तान स्वीकारने जैसी भयंकर भूल की पुनरावृति न कर सकें.
8. उन लोगों के प्रति कुछ सहनशीलता दिखाएँ जो कश्मीर संबंधी आपकी नीति के विरोधी हैं.एक दूसरे पर पत्थर फेंकने का कोई लाभ नहीं है. एक दुसरे को साम्प्रदायिक और प्रतिक्रियावादी कहने का कोई लाभ नहीं है. उनको यह समझ लेना चाहिए कि कुछ ऐसी बातें हैं जिनपर उनके दृष्टिकोण तथा उस दृष्टिकोण के बीच मुलभुत अंतर है जिसे हम राष्ट्रीय दृष्टिकोण मानते हैं.
9. आप जो भी काम करते हैं, इसे गंभीरता से, अच्छी तरह से और पूर्णता से करें; इसे कभी भी आधा – अधूरा नहीं करें, तबतक स्वयं को संतुष्ट न समझें जब तक कि आप इसे अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे दें. अनुशासन और गतिशीलता की आदतों को विकसित करें। अपने दृढ़ विश्वास को टूटने न दें दोस्त, लेकिन अपने विरोधियों के दृष्टिकोण की भी सराहना करना सीखें।
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10. राजनीतिक और सामाजिक न्याय को किसी देश के विघटन और एक वर्ग के विनाश या अपमान, जो पहल, बुद्धि और ड्राइव दिखाता है, की जरुरत नहीं होती बल्कि सभी पुरुष, जाति के बावजूद सबों के लिए अवसर की समानता, आत्म पूर्ति के लिए वास्तविक स्वतंत्रता को साझा कर सकते हैं।
11. इस देश में 175 साल के ब्रिटिश शासन के बाद भी भारतीय आबादी का 90 प्रतिशत से अधिक अशिक्षित हैं, जो एक असहिष्णु स्थिति है जो त्वरित कार्रवाई की मांग करता है।
12. जो हम अफ़सोस करते हैं वह यह नहीं है कि पश्चिमी ज्ञान भारतीयों पर थोपा गया था, बल्कि यह ज्ञान भारत को अपनी सांस्कृतिक विरासत के बलिदान पर आयात किया गया था। इसकी उपेक्षा न कर दोनों प्रणालियों के बीच उचित संश्लेषण की आवश्यकता थी और भारतीय आधार को बहुत कम क्षति पहुँचती।
13. आम तौर पर, एक भारतीय विश्वविद्यालय को स्वयं को राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के जीवित अंगों में से एक मानना चाहिए। इसे जीवन के आध्यात्मिक और भौतिक पहलुओं दोनों को साथ लेकर मिश्रित करने का सबसे अच्छा माध्यम खोजना चाहिए। इसे अपने पूर्व छात्रों को जाति, पंथ या लिंग के इतर अपनी मातृभूमि की प्रगति और समृद्धि को आगे बढ़ाने और उच्चतम परंपराओं को कायम रखने हेतु तैयार करना चाहिए।
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