प्रस्तुत पोस्ट Congo Hemorrhagic Fever in Hindi में हम एक बुखार से मिलती -जुलती परन्तु एक बहुत ही खतरनाक बीमारी पर चर्चा करेंगे. सबसे दुखद बात यह है कि यह भारत देश के कुछ प्रान्तों में भी अपना पाँव पसार चुका है, इसलिए इस बीमारी के बारे में लोगों को जानकारी देकर उन्हें जागरूक करना अति आवश्यक है ।
कांगो फीवर का कहर, रखें सावधानी हर पहर
कांगो फीवर हमारे देश के कुछ राज्यों जैसे राजस्थान, गुजरात में अपनी दस्तक दे चुका है। इसने कई लोगों को अपना शिकार भी बनाया है। राजस्थान में इस बीमारी से कई लोगों की मौत भी हो गई है। कई लोग इस बुखार की चपेट में हैं और नाक या मुंह से खून आ रहा है जो बहुत खतरे वाली बात हो सकती है। ये गुजरात और राजस्थान में फैल रहे कांगो फीवर के लक्षण हो सकते हैं। इसमें समय से इलाज नहीं मिलने पर जान भी जा सकती है। आइये जानते हैं कांगो बुखार के बारे में।
क्या है कांगो बुखार
कांगो बुखार एक विषाणुजनित रोग है। यह वायरस पूर्वी एवं पश्चिमी अफ्रीका में बहुत पाया जाता है। यह वायरस सबसे पहले 1944 में क्रीमिया नामक देश में पहचाना गया। 1969 में अफ्रीकी देश कॉन्गो में इस वायरस ने काफी नुकसान पहुंचाया था। तभी इसका नाम सीसीएचएफ (Crimean–Congo Hemorrhagic fever) पड़ा। वर्ष 2001 में ईरान और पाकिस्तान समेत अफ्रीका में इस वायरस के काफी मामले सामने आए।
कैसे फैलता है संक्रमण?
इसके बारे में डॉक्टरों की मानें तो यह वायरस सबसे पहले जानवरों को चपेट में लेता हैं। ये रोग पशुओं के साथ रहने वालों को आसानी से हो जाता है, हिमोरल नामक परजीवी इस रोग का वाहक हैं। इसलिए इसकी चपेट में आने का खतरा उन लोगों को ज्यादा होता है जो गाय, भैंस, बकरी, भेड़ एवं कुत्ता आदि जानवरों को पालते हैं या उनके संपर्क में रहते हैं। इस वायरस की चपेट में आने वाले व्यक्ति की मौत की आशंका काफी अधिक होती है। एक बार चपेट में आने पर यह वायरस 3 से 9 दिन में पूरे शरीर में फैल जाता हैं जो बहुत घातक साबित हो सकता हैं। इसके विशेष सावधानी बरतनी चाहिए और समय पर इलाज लेना जरूरी हैं।
क्या हैं इसके लक्षण?
कांगो वायरस की चपेट में आने पर सबसे पहले बुखार, मांसपेशियों व सिर में दर्द, चक्कर आना, आंखों मे जलन, रोशनी से डर लगना, पीठ में दर्द और उल्टी लगने जैसी दिक्कतें सामने आती हैं। रोगी का गला पूरी तरह बैठ जाता है। मुंह व नाक से खून आने जैसी होती है। कई अंग भी फेल हो सकते हैं।
इलाज, रोकथाम और बचाव
कांगो बुखार का इलाज सामान्य फ्लू की तरह किया जाता हैं। इसे ठीक होने में थोड़ा समय लगता हैं। किसी सरकारी या निजी अस्पताल में इसका इलाज किया जाता हैं। साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखकर इससे बचा जा सकता है। पशुपालन वाली जगह पर सफाई रखें। साथ ही पशुओं की सफाई का भी ध्यान रखें।
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जब रोगियों के अस्पताल में भर्ती होने से निसो कोमियल संक्रमणों और कर्मचारियों के निजी प्रफैलेक्सिस की रोकथाम के लिए आवश्यकताओं की सख्ती से पालन करना चाहिए, तो इनवेसिव प्रक्रियाओं का पालन करते समय सावधानी बरतें। व्यक्ति जो रक्त के संपर्क में आते हैं और रोगी के निर्वहन के साथ-साथ आपातकालीन प्रफैलेक्सिस के रूप में अनुभागीय सामग्री के साथ, एक विशिष्ट इम्युनोग्लोब्युलिन को प्रशासित किया जाता है। प्राकृतिक फॉसी में डेराटाइजेशन और एरिकिसियल उपायों बहुत प्रभावी नहीं हैं, क्योंकि वाहक कई और व्यापक हैं लोगों को टिक्ल्स से बचाने के लिए विशेष ध्यान दिया जाता है।
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व्यक्तिगत सुरक्षात्मक उपायों – संरक्षण पर विशेष ध्यान देना चाहिए। मुख्य बीमारी संबंधी संकेत क्राइमीयन-कांगो बीमारी हेमोराहाजिक बुखार एक स्पष्ट प्राकृतिक फोकलिटी द्वारा प्रतिष्ठित है गर्म जलवायु वाले देशों में, प्रकोपों और छिटपुट मामलों के रूप में संक्रमण की फ्यूज़ मुख्य रूप से स्टेप, वन-स्टेप और सेमी-रेगिस्तान परिदृश्य के लिए सीमित है। घटना दर प्रौढ़ के कणों (उष्ण कटिबंधीय में – सभी वर्ष दौर) द्वारा सक्रिय हमले की अवधि के साथ जुड़ा हुआ है।
पशुधन प्रजनकों, कृषि श्रमिक, पशु चिकित्सा और चिकित्सा कर्मचारी को फीवर संक्रमण के एनोटोकॉमियल प्रकोप और इंट्रा-प्रयोगशाला संक्रमण का वर्णन किया गया है। अत: कांगो फीवर का लक्षण आदि दिखाई दे तो या बुखार आदि आएं तो तुरंत चिकित्सक की सलाह व जांच कराएं। कांगो फीवर के बचाव के लिए प्रभावी कदम जरूर उठाकर इसे जड़ से समाप्त करने में सहभागिता निभाएं।
कांगो फीवर के टेस्ट
कांगो बुखार की पहचान के लिए एलिसा टेस्ट किया जाता है. कई बार शुरुआती चरण में रक्त में एंटीबाडी की पहचान नहीं हो पाती है . लेकिन ज्यादातर मामलों में पहले से छठे दिन तक रक्त के एंटीबाडी द्वारा इसकी पहचान की जाती है. हालांकि अभी तक इसका कोई ठोस उपचार नहीं है लेकिन शरीर में तरल पदार्थ की उचित मात्रा एवं अन्य मानकों जैसे रक्त चाप, नाड़ी गति, एवं संक्रमण स्तर पर निगरानी द्वारा इसका उपचार किया जाता है.
यह आलेख सूबेदार रावत गर्ग उण्डू जी ने भेजी है. वे सहायक उपानिरीक्षक – रक्षा सेवाऐं व स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी हैं. वे ग्राम – श्री गर्गवास राजबेरा, तहसील – शिव, जिला – बाड़मेर, पिन- 344701 राजस्थान के रहनेवाले हैं। टीम बेहतरलाइफ उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है ।
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