प्रस्तुत पोस्ट Mahabharata Amazing Facts in Hindi यानी महाभारत से संबंधित कुछ विस्मयकारी तथ्य में हमने कुछ ऐसी जानकारियां जुटाई हैं जो बहुत ही ज्ञानवर्धक एवं चकित कर देनेवाले हैं। इनमें कुछ ऐसी भी जानकारियां होंगी जिसे आप पहले से जानते होंगे और कुछ आपके लिए नए भी होंगे। आइए जानते हैं उनके बारे में –

महाभारत से संबंधित कुछ विस्मय कारी तथ्य
- महाभारत काल या यों कहें वैदिक काल में संपत्ति मुख्य रूप से तीन तरह के होते थे।
पहला : जानवर या पशुधन :
इसमें मुख्य रूप से तीन पशुधन शामिल थे। गाय, घोड़ा और हाथी
गौ यानी गाय
गाय का उपयोग घी, दूध, दही जैसे खाद्य पदार्थों के लिए किया जाता था और इसे बहुत शुद्ध और सात्विक माना जाता था। ऐसे आज के समय में भी गाय को गौ माता का दर्जा प्राप्त है और लोग गायों को श्रद्धा और पवित्रता का प्रतीक मानते हैं। ऐसे आज भी गोधन की प्राथमिकता है लेकिन अब यह सिमटकर सिर्फ किसानों और पशुपालकों तक ही रह गया है।
राजा विराट और आचार्य द्रोण की कहानी आप सबको ज्ञात ही होगी। दोनों एक साथ गुरुकुल में पढ़ते थे। एक बार गुरु द्रोण अपने मित्र विराट से एक गाय मांगने गए जिसे उसने ठुकरा दिया। जिसके कारण दोनों में शत्रुता हो गयी और बाद में उनके शिष्यों ने विराट को हराकर अपने गुरु की गुरु दक्षिणा चुकाई थी। गाय दान में दी जाती थी।
इसी तरह नचिकेता के पिता वाजश्रवा ने विश्वजीत यज्ञ में गायों को दान किया था। महर्षि वशिष्ठ के पास नंदिनी गाय थी जो कामधेनु थी। जो सभी इच्छाओं को पूरी करनेवाली थी। इस प्रकार हिन्दू आख्यानों में गाय से संबंधित अनेकों उदाहारण मिल जाते हैं।
घोड़ा और हाथी
घोड़ा और हाथी परिवहन के काम में लाये जाते थे। इनका उपयोग युद्ध के समय भी किया जाता था। घुड़सवार सैनिक या फिर रथों में घोड़े प्रयोग में लाये जाते थे। कुछ युद्धों में हाथियों की भी निर्णायक भूमिका रहती थी।
दूसरा: जमीन या भू संपत्ति
प्रत्येक राजा का साम्राज्य उसकी सीमा के आकार पर पर निर्भर करता था कि वह कितना बड़ा है। जमीनी भूभाग खेती, चारागाह और बाग़ – बगीचे के रूप में होते थे। इसे बहुत महत्वपूर्ण संपत्ति मानी जाती थी। ऐसे आज के समय भी जमीन का स्वामी होना कम महत्वपूर्ण बात नहीं है। अधिक जमीन के मालिकों को जमींदार कहा जाता है। आज भी निवेश के लिए जमीन को सबसे सेफ और लाभ देनेवाला माना जाता है।
तीसरा: सोने और आभूषण
उन दिनों यह उतना प्रचलित तो नहीं था परन्तु इसे मूल्यवान श्रेणी में रखा जाता था। राजाओं और उनके परिवार के सदस्यों के पास सोने, चांदी और आभूषण भरपूर होते थे लेकिन आम जन के पास बहुत मामूली मात्रा में होते थे। आज भी देखा जाय तो सोने और चांदी में पेपर मनी की तुलना में कुछ मूल्य निहित होता है और आज बहुत सारे संपन्न आम लोग सोने में निवेश करने को अच्छा विकल्प मानते हैं।
2. महाराज पुरु के वंश में प्रतीप नामक एक राजा हुए। वे महाराज दिलीप के पुत्र थे। यौवन काल में ही उनको जीवन से वैराग्य हो गया और उन्हें लगा कि राज-काज को चलाने के लिए उनके पुत्र योग्य हो चुके हैं। राजा उनके बड़े पुत्र देवापि को बनना था किन्तु उसे एक चर्म रोग था और नियमानुसार किसी शारीरिक दोष से ग्रसित व्यक्ति राजा नहीं बन सकता। इसलिए उसके छोटे भाई शांतनु को राजा बनाया गया और देवापि एक याचक की जिन्दगी जीने लगा क्योंकि वह अपने छोटे भाई की छत्रछाया में नहीं रहना चाहता था।
3. महर्षि वेदव्यास ने नियोग द्वारा महाभारत में धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर को जन्म दिया। बाद में इसी नियोग द्वारा पांडु पुत्रों का भी जन्म हुआ।
4. उद्दालक ऋषि के पुत्र श्वेतकेतु ने विवाह का नियम बनाया। इसके पहले स्त्रियाँ स्वतंत्र होती थी और पर पुरुष के साथ भी रति क्रिया कर सकती थी।
सहदेव ने अपने मृत पिता का मांस खाया
5. मरने से पहले पांडु ने अपने पुत्रों से कहा कि मेरे मरने के बाद तुम मेरे मांस को खा लेना। इससे मेरे द्वारा सालों अर्जित ज्ञान तुम्हें प्राप्त हो जाएगा। लेकिन जब पांडु की मृत्यु हुई तो सभी बच्चे इस बात को भूल गए। तभी सहदेव ने देखा कि कुछ चीटियाँ उसके पिता के शरीर के टुकड़े को ले जा रहे हैं। उसने झट से उठाकर खा लिया। अब उसको भूत में क्या हुआ और भविष्य में क्या होनेवाला है सबकुछ पता था। लेकिन इस बात की जानकारी कृष्ण को हो गई थी और उनको पता था कि सहदेव की बुद्धिमानी भाग्य की धारा को रोक देगी। इसीलिए उन्होंने सहदेव से कहा – ‘यह मेरा आदेश कि कभी अपनी इस बुद्धि को प्रकट मत करना। यदि कोई तुमसे प्रश्न पूछता है, तो उसका उत्तर हमेशा दूसरे प्रश्न के रूप में देना।’
6. वैदिक समय में शस्त्रों का अत्यधिक महत्व था क्योंकि अच्छे शस्त्र और उसका कुचल सञ्चालन ही किसी को महान योद्धा बनाता था। इसलिए शस्त्रों के नाम भी बहुत सुन्दर होते थे। उनका नाम बहुत आदरपूर्वक लिया जाता था। अर्जुन के धनुष का नाम गांडीव था। श्री कृष्ण के चक्र का नाम सुदर्शन, तलवार का नाम नंदक, गदा का नाम कौमोदकी और धनुष का नाम सारंग था। बलराम के मूसल का नाम सुनंद था।
गांडीव की प्राप्ति
7. अग्नि को खांडव वन जलाकर अपनी चमक प्राप्त करने में अर्जुन ने मदद की थी। अतः अग्निदेव ने प्रसन्न होकर अर्जुन को कई अस्त्र-शस्त्र दिए। गांडीव धनुष के साथ ही साथ एक रथ भी दिया; जो चार घोड़ों – सैब्या, सुग्रीव, मेघपुष्प और बालाहक़ द्वारा संचालित था।
8. आपने कई बार लोगों को आम बोलचाल की भाषा में चांडाल चौकड़ी शब्द का प्रयोग करते सुना होगा। यह शब्द महाभारत के चार प्रमुख खलनायकों के लिए प्रयोग में लाये जाते थे। इस चौकड़ी में दुर्योधन, दु:शासन, शकुनि और कर्ण शामिल थे।
9. रामायण में भगवान श्री राम स्वयं राजा के रूप में आते हैं जबकि महाभारत में श्री कृष्ण राजाओं के निर्माता यानी किंगमेकर के रूप में आते हैं।
विष्णु पुराण की कथा
10. यह प्रसंग श्री विष्णु पुराण से लिया गया है। धरती माता गाय के रूप में श्री हरि विष्णु के पास गईं। वह उनसे कहती हैं – हे प्रभु! धरती के राजाओं ने मेरे दूध का इस प्रकार से दोहन किया है कि मेरे थन में पीड़ा होने लगी है । श्री हरि विष्णु ने गाय स्वरूपा धरती माता से वादा किया कि वे राजाओं को इसका सबक सिखायेंगे। परशुराम, राम और कृष्ण के रूप में जब वे पृथ्वी पर अवतार लेंगे तब संपूर्ण धरती उन राजाओं के रक्त से लाल होगा आप एक भूखी शेरनी की तरह उनके रक्त से अपनी पीड़ा को शांत कर लेना। कहने का तात्पर्य यह है कि यदि धरती पर उपलब्ध साधनों का अत्यधिक दोहन किया जाएगा तो प्रकृति कभी भूकंप, बाढ़, अकाल, सुनामी, कोरोना आदि का रूप लेकर अपने संतुलन को बनाये रखती है।
11. महाभारत के युद्ध में सभी योद्धा अपना अलग अलग शंख रखते थे। यह उनकी निजी शक्ति और सामर्थ्य को दिखाता था। दूसरी ओर यह शत्रुओं को सतर्क तथा भयभीत करनेवाला होता था। युधिष्ठिर के पास अनन्त विजय, भीम के पास पौंड्रिक, अर्जुन के पास देवदत्त, नकुल के पास सुघोष और सहदेव के पास मणिपुष्पक नाम का शंख था।
अपने अस्त्र से स्वयं का वध
12. महाभारत के युद्ध में दुर्योधन की ओर से युद्ध कर रहा एक योद्धा, श्रुतायुध ने अर्जुन को हराने का हर संभव प्रयास किया। इसमें असफल होकर उसने अपनी गदा से श्रीकृष्ण पर प्रहार का दिया। उसे वह गदा वरुण देवता से उपहार में इस शर्त पर मिला था कि इसका प्रयोग किसी निःशस्त्र व्यक्ति पर नहीं करना।
चूँकि उस युद्ध में श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी थे और निःशस्त्र थे, इसलिए वह गदा श्रीकृष्ण की छाती से टकराकर वापस श्रुतायुध के सीने पर प्रहार कर दिया और वहीँ अंत कर दिया।
दानवीर कर्ण
13. कर्ण दानवीर था। एक बार बारिश के मौसम में एक व्यक्ति को अपने मृत पुत्र के दाह कर्म के लिए सूखी लकड़ी चाहिए थी। वह कर्ण के पास आया। उसने अपने घर को ही तोड़ दिया और उससे प्राप्त सूखी लकड़ी उस व्यक्ति को दान कर दी।
14. जब कर्ण मरणासन्न था, तब कृष्ण ब्राह्मण का वेश धारण कर उसके पास गए और कुछ स्वर्ण पाने की इच्छा जताई। कर्ण ने दांतों में लगे स्वर्ण को तोड़कर श्री कृष्ण को दान कर दिया। वह एक सच्चा दानवीर था।
15. महाभारत का युद्ध कुल 18 दिनों तक चला। भीष्म 10 दिनों तक, द्रोणाचार्य 5 दिनों तक, कर्ण 2 दिनों तक और शल्य केवल 1 दिन कौरव पक्ष के सेनापति रहे।
महाभारत की तिथियों की आधुनिक गणना
16. डॉ. बी. एन. नरहरि अचार ने प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर द्वारा महाभारत की घटनाओं का समय निकाला है। इसके अनुसार महाभारत की लड़ाई 22 नवम्बर 3067 BCE (Before Common Era) को शुरू हुआ था। भीष्म पितामह 17 जनवरी 3066 BCE को मृत्यु को प्राप्त हुए।
17. गुजरात प्रान्त के समुद्री तट पर प्रभास पाटन नामक स्थान है। वहां एक बरगद का पेड़ है जो उसी बरगद के पेड़ के स्थान पर लगाया गया है जिसके नीचे सोते हुए कृष्ण जी पर शिकारी के प्रहार कर उन्हें आहत कर दिया था। उसी के बाद उन्होंने अपना शरीर त्याग किया था।
18. श्रेष्ठता यानी मेरिट कई तरीके से अर्जित किया जा सकता है। दान कर्म से, धार्मिक अनुष्ठानों से, पवित्र नदियों में स्नान से या श्रेष्ठ स्थानों पर मरने से। कुरुक्षेत्र भी एक ऐसा पवित्र स्थान है जहाँ तमाम बुराइयों से युक्त व्यक्ति भी यदि मृत्यु को प्राप्त होता है तो भी उसके सारे पाप समाप्त हो जाते हैं। दूसरा स्थान काशी है जहाँ लोग मरने के बाद मोक्ष को प्राप्त करते हैं, ऐसी मान्यता है।
कितने स्वर्ग ?
19. हिन्दू धरम परंपरा में कई स्वर्ग की अवधारणा है। स्वर्ग इन्द्रलोक को कहा जाता है। जहाँ जाकर एक आत्मा की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। दूसरा वैकुंठ लोक है जो श्री हरि विष्णु का लोक है जहाँ जीवात्मा सारी इच्छाओं से मुक्त हो जाता है। कई स्वर्ग की यह अवधारणा बाइबिल परंपरा में भी देखने को मिलती है।
20. बंगाली लोक कथा के अनुसार एक बार महाराज जन्मेजय ने महर्षि वेदव्यास से पूछा कि आपने हमारे पूर्वजों को महाभारत जैसे भयंकर युद्ध करने से रोका क्यों नहीं? व्यास मुनि ने कहा उत्तेजित व्यक्ति कभी भी अच्छी सलाह पर ध्यान नहीं देते। इसको प्रमाणित करने के लिए व्यास ने जन्मेजय को उस स्त्री से विवाह करने से मना किया था जिससे जन्मेजय का प्रेम प्रसंग चल रहा था। जन्मेजय ने उसी स्त्री से विवाह किया और उसे यौन संक्रमित बीमारी से ग्रसित होना पड़ा। जन्मेजय को महसूस हुआ कि वह भी सलाह लेने और मानने में अपने पूर्वजों की तरह ही है।
21. आपने देखा होगा कि किसी भी हिंदू अनुष्ठान के अंत में शांति पाठ या ॐ शांति शांति शांति का उच्चारण किया जाता है। क्योंकि जीवन में शांति प्राप्त करना ही मानव अस्तित्व का परम लक्ष्य रहा है।
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