प्रस्तुत पोस्ट SamaVeda Sacred Quotes in Hindi में हम सामवेद के कुछ पवित्र और महत्वपूर्ण विचार से अवगत होंगे. इस पवित्र धर्मग्रंथ की विशिष्टता यह है कि इसके मंत्र गेय और संगीतमय हैं। इसमें 1875 मंत्र हैं। इसका प्रकाश आदित्य ऋषि के हृदय में हुआ था।

आकार की दृष्टि से सामवेद सबसे छोटा है, परंतु महत्त्व की दृष्टि से सबसे बड़ा है। सामवेद के महत्त्व को स्वीकारते हुए स्वामी जगदीश्वरा नन्द सरस्वती ने कहा, “योगेश्वर श्रीकृष्ण ने इसकी महिमा का गान करते हुए कहा है – “वेदानां सामवेदोऽस्मि। वेदो में मैं सामवेद हूँ।“ छान्दोग्य उपनिषद् में “सामवेद एव पुष्पम्”. अर्थात् सामवेद पुष्प के समान है, कह कर इसकी महत्ता का प्रतिपादन किया गया है। ‘पुष्प छोटा-सा होता है, परंतु उसका महत्त्व उसके सौंदर्य और गुणों के कारण होता है।’
सामवेद उपासना प्रधान है। प्राचीन काल में इसका मानव जीवन से घनिष्ठ संबंध था.
SamaVeda Sacred Quotes in Hindi सामवेद के पवित्र विचार
1. परमात्मा न्यायकारी है. इसलिए वह परपीड़क दुष्टों को दंड देता है और धर्मात्माओं को उनके कर्मानुसार पदार्थ बाँटता है।
2. हे दयालु भगवन! मैं विचार और ध्यान में परायण योगी आपका ध्यान करता हूँ। आप ज्योतिस्वरूप हैं. कृपया मुझे ज्योति दीजिए, जिससे मैं मेधावी वेद पारंगत, आपकी ज्योति से ज्योतिष्मान महात्मा और मनुष्यों से नमस्करणीय होऊँ।
3. परमात्मा की भक्ति और भौतिक अग्नि में हवन करने व उससे अनेक विध शिल्प प्रयोग आदि द्वारा मनुष्यों को बल, वीर्य, पुरुषार्थ, सौभाग्य, धन सुसन्तान और गवादि पशु प्राप्त होते हैं और सब दुष्ट रोगादि असुर, शत्रुगण का नाश होता है क्योंकि परमात्मा व भौतिक अग्नि इन सबकी ईशिता है।
4. हे इन्द्र और अग्नि! हमें पाप के कार्यों में मत लगाओ और निन्दा के लिए भी हमें मत लगाओ।
5. राजा और योद्धाओं को योग्य है कि युद्ध में कवच पहन कर आग्नेय अस्त्र का प्रयोग करें, जिससे अपनी विजय, बुद्धिमान पुरुषों की रक्षा, शत्रु-दुर्गों का दलन हो और अपना सामर्थ्य बढ़े।
6. राजा का धर्म है कि सज्जनों की रक्षा के लिए दुष्टों की सेनाओं का छेदन-भेदन, शत्रुओं का नाश और उनके धन को लेकर न्याय कार्य में व्यय करें।
7. जिसमें गुण अधिक होते हैं, सब ओर से उसी की प्रशंसा में वाणी ऐसे पहुँच जाती हैं जैसे दुधारू गौवें चारों ओर जंगल में विचरती हुई सायंकाल प्यारे बछड़े ही के पास को दौड़ती है।
8. जो मनुष्य परमपिता परमात्मा से सत्य वेद विद्या का ग्रहण करते हैं, वे ही सूर्यवत् संसार भर को ज्ञान से प्रकाशित करते हैं।
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9. प्रत्येक शुभ कार्य के आरंभ और समाप्ति में युद्धादि विपत्ति के समयों में, व्यापार आदि धन-लाभ के अवसरों में सदा परमेश्वर की ही सहायता माँगनी चाहिए।
10. ज्ञानियों की यही परम्परा है कि सर्वकाल में ज्ञानादि प्राप्ति के उत्तम अवसरों पर विशेष कर अपने स्वामी परमात्मा की प्रीति के लिए अपने हृदय से पाप आदि कुसंस्कारों को दूर करके भूषित करते हैं।
11. न्यायकारी राजा और परमेश्वर के कृपाभाजन पुरुष ही रथ, गौ, धन-धान्य से सुखी ओर सभा के रत्न बनते हैं। .
12. विद्वानों के सदुपदेश से मनुष्यों के आत्मा और मन को उत्तम आदेश मिलता है और दुर्वचन आदि दुर्गण दूर होते हैं।
13. सूर्य की किरणों से कई रोग दूर होते हैं, चौरादि का भय निवृत्त होता है। रात्रि में स्वाभाविक रीति पर कामादि के विकार उत्पन्न होते हैं, उन्हें भी सूर्य की किरणें हटाती हैं, इसलिए किसी अंश में दुर्मति और पाप से बचना भी संभव है।
14. यथाविधि वायु का सेवन करने वालों को वायु ही पिता, भ्राता और मित्र के समान गुणकारी, उपकारी होकर उनको दीर्घ जीवन देता है। वायु जीवन है, इसमें संदेह नहीं।
15. जो मनुष्य विधिपूर्वक जल का सेवन करते हैं, वे सर्वांग निरोग होते हुए पुत्रादि सन्तति से बढ़ते हैं।
16. मनुष्यों को परस्पर उपदेश से परमेश्वर की स्तुति, उपासना, प्रार्थना का प्रचार करना चाहिए, जिससे ज्ञान का प्रकाश बढ़े।
17. मनुष्यों को सदा सूर्यादि के प्रकाश में ही भोजन करना चाहिए, अंधकार में नहीं।
18. मनुष्य को पुरुषार्थी, आलस्य रहित होना योग्य है।
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