राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की जीवनी
महात्मा गाँधी अर्थात मोहनदास करमचंद गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को पोरबंदर, गुजरात में हुआ. उन्होंने लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज से कानून की पढाई की. 1891 में भारत लौटकर उन्होंने बंबई में अपने वकालत की प्रैक्टिस शुरू की.
दो साल बाद एक भारतीय कंपनी ने उन्हें अपना कानूनी सलाहकार बनाकर डरबन (साउथ अफ्रीका) भेज दिया. डरबन पहुंचकर वहां उन्होंने देखा कि वहां भारत के लोगों को हेय दृष्टि से देखा जाता है. वहां उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों तथा रंगभेद की नीति के विरुद्ध आवाज उठाई. वे 20 वर्षों तक वहीँ रहे तथा कई बार जेल भी गए.
1910 में डरबन के समीप भारतीयों के लिए कोआपरेटिव कॉलोनी Tolstoy Farm की स्थापना की. 1914 में वहां की सरकार ने गाँधी जी की मांगों पर ध्यान दिया. भारतीय विवाहों को मान्यता आदि मांगें पूरी की गई . गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका में अपना कार्य समाप्त कर भारत लौट आए.
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भारत लौटे तो अपने ही देशवासियों की दयनीय दशा देख द्रवित हो उठे. अंग्रेजों के अत्याचारों का अंत नहीं था. पूरा देश आजादी पाने के लिए तड़प रहा था लेकिन उचित नेतृत्व का अभाव था. गांधीजी ने अंग्रेजों के विरुद्ध असहयोग आन्दोलन चलाया. ब्रिटिश संस्थाओं का जोरदार बहिष्कार किया गया. उनके द्वारा दिए गए सम्मान लौटा दिए गए. पूरे देश में स्वदेश प्रेम की लहर दौड़ गयी, किन्तु चौरी चौरा कांड के बाद उन्होंने यह आन्दोलन वापस ले लिया, गांधीजी को बंदी बनाकर 6 वर्ष के लिए जेल में डाल दिया गया.
1925 में जेल से निकालने के बाद उन्होंने हिंदु मुस्लिम एकता के लिए अनेक प्रयास किये. पूर्ण स्वराज्य की घोषणा के बाद उन्होंने दांडी मार्च अभियान चलाया. हजारों लोग नमक बनाने और नमक कानून तोड़ने के आरोप में बंदी बनाये गए.
गाँधी जी अंग्रेजो से संघर्ष के दौरान कई बार जेल गए, अनशन किये, उपवास किये, औए अंग्रेजों की सत्ता को उखाड़ फेंकने के अपने संकल्प पर अडिग रहे. वे सत्य और अहिंसा के प्रबल समर्थक थे. 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के बाद उन्हें पुनः गिरफ्तार कर लिया गया. 1947 आते आते आन्दोलन अपने चरम पर था. भारत अपनी आजादी लगभग पाने को था, लेकिन इसी बीच हिंदुस्तान और पाकिस्तान के नाम पर दंगे शुरू हो गए. गांधीजी ने अपने आमरण अनशन द्वारा लोगों से शांति की अपील की. 15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद हुआ. गांधीजी सक्रिय राजनीति से दूर हो गए.
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30 जनवरी 1948 को वे अपनी प्रार्थना सभा में जा रहे थे, तभी एक धर्मांध व्यक्ति नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी. आज भी पूरा राष्ट्र उन्हें राष्ट्रपिता कह कर संबोधित करता है.
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने उनकी मृत्यु पर लिखा:
यह लाश मनुज का नहीं
मनुजता के भाग्य विधाता की
बापू की अर्थी नहीं चली
अर्थी यह भारतमाता की.
गांधीजी का जीवन एक सामान्य मनुष्य के लिए संदेशों से भरा पड़ा है. आज जब विश्व असहिष्णुता और आतंकवाद जैसी समस्याओं से त्रस्त है, गांधीमार्ग यानी सत्य और अहिंसा का मार्ग प्रासांगिक है.
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