सर्व मंगलकारी औघरदानी भगवान शिव/Sarv Mangalkari Bhagwan Shiv Ki Aaradhana
भगवान शिव सभी मनोकामनाओं को पूरा करनेवाले और सभी मंगलों के मूल हैं. वे कल्याण की जन्मभूमि, अत्यंत कल्याणकारी और परम शांति के आगार और आधार हैं. सभी आगम और निगम में भोलेनाथ को विशुद्ध ज्ञान स्वरुप कहा गया है. वे समस्त विद्याओं के मूल में हैं. ज्ञान, बल. इच्छा और क्रियाशक्ति में उनके जैसा कोई और नहीं. उनका एक नाम महेश्वर भी हैं, क्योंकि वे जगत के रक्षक, पालक और नियंता हैं. वे अनंत हैं क्योंकि उनका कोई आदि है और न ही अंत.
भगवान शिव अत्यंत दयालु और कृपालु हैं. इनको आशुतोष और औघरदानी भी कहा जाता है, क्योंकि यह अपने भक्तो पर शीघ्र प्रसन्न हो उसके समस्त दोषों को क्षमा कर देते हैं तथा धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष और विज्ञान के साथ ही साथ अपने आपको भी भक्त को सौंप देते हैं. भगवान शिव दिग्वसन होते हुए भी भक्तो को अतुल ऐश्वर्य प्रदान करनेवाले, अनन्त राशियों के अधिपति होने पर भी भस्म लगाने वाले, श्मशान निवासी होने पर भी तीनों लोकों के स्वामी, योगिराज होने पर भी अर्धनारीश्वर, पार्वती जी के साथ रहने पर भी कामजित और सबका कारण होते हुए भी अकारण हैं.
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पूरी दुनिया में शिव मंदिर, ज्योतिर्लिंग, शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कर भगवान शिव की आराधना की जाती है. चाहे आप कोई भी हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ पढ़े, सबमे शंकर भगवान के दिव्य और रमणीय चरित्र का वर्णन जरुर मिलता है.
भगवान शंकर का परिवार बहुत बड़ा है. वहां सभी द्वंद्वों और द्वैतों का अंत दीखता है. स्कंद्पुराण के मुताबिक एक बार धर्मराज की यह इच्छा हुई कि मैं भगवान शिव का वाहन बनूँ. इसके लिये उन्होंने घनघोर तपस्या की. अंत में भगवान शिव उनपर प्रसन्न हुए और उनको अपने वाहन के रूप में स्वीकार किया. इस प्रकार स्वयं धर्मराज ही नंदी बैल के रूप में भगवान शिव के वाहन बन गए.
एकादश रूद्र, रुद्रानियाँ, 64 योगिनियाँ, 16 मातृकाएं, भैरव आदि इनके सहचर और सहचरी हैं. गणेश जी और कार्तिकेय इनके पुत्र हैं. गणेशजी की पत्नियाँ सिद्धि और बुद्धि हैं और शुभ तथा लाभ इनके दो पुत्र हैं. मूषकराज इनके वाहन हैं. कार्तिकेय कुमार की पत्नीदेवसेना और वाहन मयूर है. माता पार्वती का वाहन सिंह है.
बाण, रावण, चंडी, भृंगी आदि भोलेनाथ के मुख्य पार्षद हैं. इनके द्वार रक्षक के रूप में कीर्तिमुख प्रसिद्द हैं , इनके पूजन के उपरांत ही शिव मंदिर में प्रवेश कर शिवपूजन का विधान है. इससे भगवान शिव जल्दी प्रसन्न होते हैं. हालांकि भगवान शिव तो घट घट वासी हैं लेकिन कैलाश और कासी/ वाराणसी इनका मुख्य स्थान है. भगवान भोलेनाथ भक्तों के ह्रदय में सर्वदा निवास करते हैं. त्रिशूल, कृपाण, टंक / छेनी, वज्र, अग्नियुक्त कपाल, सर्प, घंटा, अंकुश, पाश और पिनाक धनुष इनके मुख्य आयुध हैं.
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भगवान शिव का चरित्र बड़ा ही उदार और अनुकम्पा पूर्ण है. वे ज्ञान, वैराग्य और साधुता के उच्च आदर्श हैं. एक ओर ये भयंकर रुद्रस्वरूप हैं तो दूसरी ओर औघरदानी भोलेनाथ हैं. दुष्टों के दलन में काल स्वरुप हैं तो दीन हीनों की सहायता में दया के सागर हैं. जिसपर इनकी कृपा हो जाए उसे दुनिया की सारी सुख संपत्ति सहज ही उपलब्ध हो जाता है. दशानन रावण को अथाह बल दिया. भस्मासुर को सबको भस्म करने की शक्ति दे डाली. यदि भगवान श्री विष्णु मोहिनी स्वरुप उसके सामने नहीं आते तो भोलेनाथ अपने द्वारा ही दिए गए वरदान के संकट में आ जाते.
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हे भोलेनाथ! आप परम दयालु और अपने भक्तों के हितकारी हो. मार्कंडेय जी को अपनाकर यमदूतों को आपने भगा दिया. आपका त्याग अतुलनीय है. समुद्र मंथन से निकले हलाहल को यदि आप धारण कर नीलकंठ नहीं बने होते तो संसार उस विष के ताप से त्रस्त हो गया होता. आपका लोक मंगल के लिये किया गया यह त्याग अनुपम है. आप एक पत्नी व्रत के आदर्श हैं. माता सती ही पार्वती रूप में आपकी अर्धांगिनी हैं. आपको प्राप्त करने के लिये देवी पार्वती को घनघोर तप करना पड़ा. आप पति-पत्नी के सम्बन्ध का एक अन्यतम उदहारण हैं.
भगवान शंकर योगियों के भी महायोगी हैं. योगशास्त्र का सम्पूर्ण वांग्मय आपकी ही कृति है. योगियों की आयु बढ़ाने के लिये आपने पारद शास्त्र का आविष्कार किया. इस शास्त्र की साधना के द्वारा योगी जब चाहे अपना कायाकल्प करके अपनी आयु हजारों वर्षों तक बढ़ा सकता है. भगवान शिव इस योग विद्या और ज्ञान के आदि आविष्कारक हैं. आप ही संगीत और नृत्य कला के आचार्य हैं. तांडव नृत्य करते समय ही इनके डमरू से संगीत के सातों स्वर (सा, रे, ग, म, प, ध और नी) का जन्म हुआ. इनका तांडव ही नृत्य कला का प्रारम्भ है. व्याकरण के मूल तत्वों का विकास भी शिवजी की डमरू की ध्वनि का ही प्रतिफल है. इसलिए भगवान शंकर कितनी ही विद्याओं और कालों के जन्मदाता और प्रवर्तक हैं.
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संकृत वांग्मय में कोई भी ऐसा साहित्य या ग्रन्थ नहीं है जिसमे भगवान शिव के चरित्र का वर्णन नहीं मिलाता हो. ये देवाधिदेव महादेव हैं और आर्य जाति के आदि देव हैं. आर्य लोगों के निवास का जहाँ जहाँ वर्णन मिलता है, वहां वहां भगवान शिव की स्थापना हुई. इसके अनेकों प्रमाण इतिहास और अन्य आदि ग्रंथों में बिखरे पड़े हैं.
हमारे देश में ही नहीं अपितु संपून विश्व में शिव लिंग की पूजा अर्चना की जाती है. लिंग रूप में शिव की आराधना का तात्पर्य है कि शिव, पुरुष लिंग रूप में इस प्रकृति रूपी संसार में स्थित हैं. यही सृष्टि की उत्पत्ति का मूल रूप है. त्रयम्बकं यजामहे शिव उपासना का वेद मंत्र है. ऐतिहासिक दृष्टि से सबसे पहले शिव मंदिर का उल्लेख मिलता है. भगवान श्री राम ने लंका पर चढ़ाई के पूर्व रामेश्वरम के नाम से भगवान शिव की विधि विधान से पूजा की और उनकी स्थापना की. काशी में भी बाबा विश्वनाथ की पूजा बहुत प्राचीन काल से होती आ रही है. बाबा वैद्यनाथ की पूजा देवघर में आदि काल से होती आ रही है. इस प्रकार भगवान शंकर आदि देव हैं और इनकी पूजा और अर्चना से सांसारिक भव बंधन से मुक्ति मिल जाती है.
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कहा जाता है कि श्रावण मास में शंकर भगवान की आराधना और उनके शिव लिंग पर जलाभिषेक करने से मन वांछित फल प्राप्त होते हैं. इसलिए कावारिया गण दूर दूर से पवित्र गंगाजल लाकर, बोलबम बोलबम का नारा लगते हुए, व्रत धारण कर विशेष रूप से सोमवार को जलाभिषेक करते हैं. यूँ तो श्रावण मास का हर दिन शिव जी की पूजा के लिये पवित्र होता है लेकिन सोमवार व्रत करने का विशेष फल मिलता हैं. आइये हम सब मिलकर भगवान शिव की पूजा अर्चना करते हैं और सबका जीवन बेहतर हो, ऐसी कामना करने हैं. ॐ नमः शिवाय! हे शिव! हम सब पर दया कीजिये! हम सब पर प्रसन्न होइए.
Yogi Saraswat says
पूरी दुनिया में शिव मंदिर, ज्योतिर्लिंग, शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा कर भगवान शिव की आराधना की जाती है. चाहे आप कोई भी हिन्दू धार्मिक ग्रन्थ पढ़े, सबमे शंकर भगवान के दिव्य और रमणीय चरित्र का वर्णन जरुर मिलता है.बिल्कुल सही कहा आपने पंकज जी ! शिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं !!
Pankaj Kumar says
धन्यवाद योगी सारस्वत जी!