मैडम भीकाजी कामा : एक परिचय |
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नाम : मैडम भीकाजी रुस्तम कामा Madam Bhikaji Rustam Camaजन्म दिन : 24 सितम्बर 1861, मुंबई (बम्बई) भारतमृत्यु : 13 अगस्त 1936 को 74 वर्ष की आयु में मुंबई में ही देहावसान हो गया.संगठन : इंडिया हाउस, पारसी इंडियन सोसाइटी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेसआन्दोलन : भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलनउपलब्धि : मैडम भीकाजी कामा ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान भारत के राष्ट्रीय ध्वज यानी भारतीय तिरंगा का प्रथम प्रारूप तैयार किया था. |
Madam Bhikaji Cama Biography in Hindi मैडम भीकाजी कामा की जीवनी
मैडम भीकाजी कामा को भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के प्रथम प्रारूप की जननी के रूप में जाना जाता है. वह एक पारसी मूल की महिला थीं. उनका भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में अमूल्य योगदान है. उन्होंने विदेश में रहकर भी भारत से संबंधित तत्कालीन भ्रांत यानी गलत धारणाओं का लगातार खंडन किया. लन्दन, पेरिस, बर्लिन, वियना आदि की प्रबुद्ध जनता को भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के दमन पूर्ण नीतियों से अवगत कराया. वह एक प्रखर वक्ता थी.
भीका जी कामा का जन्म 24 सितम्बर 1861 को बम्बई (वर्तमान मुंबई) में हुआ था. उनके पिता सोराब जी पटेल एक संपन्न व्यक्ति थे. उनका पालन –पोषण एवं शिक्षा इत्यादि पाश्चात्य वातावरण में हुई. किन्तु वह तो भारत माता की सेवा के लिए प्रतिबद्ध थी, इसलिए अपने परिवार और समाज की बिना परवाह किये अदम्य साहस और दृढ़ता के साथ वे आजादी की लड़ाई के जोखिम भरे मार्ग पर चल पडीं. दिसम्बर 1885 में अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई तभी से वो उसकी सदस्या बन गयीं.
कांग्रेस की सदस्या
कांग्रेसी नेताओं के विचारों और ओजपूर्ण भाषणों से प्रभावित होकर वे कांग्रेस की सक्रिय कार्यकत्री बन गयीं.उन्होंने सबसे पहले जाति –पाति, ऊँच नीच, धर्म – मजहब आदि के भेदभाव पूर्ण समाज से ऊपर उठकर सभी वर्गों की महिलाओं को एक मंच पर लाने के लिए महिलाओं और महिला संस्थाओं को एकजुट करने का बीड़ा उठाया.
उनकी शादी सन 1885 में श्री रुस्तम जी कामा से हुई. लेकिन शादी के बाद भी वह स्वतंत्रता आन्दोलन में लगातार भाग लेती रहीं. हालाँकि इसके लिए उनको अपने परिवार का विरोध भी सहना पड़ा. बम्बई में जब प्लेग फैला तो मैडम कामा ने स्वयं को राहत कार्यों में व्यस्त का दिया जिसकी वजह से वह स्वयं बीमार हो गयी. इलाज के बाद ठीक तो हो गयी लेकिन तब भी बहुत कमजोर थी. इलाज के बहाने उनको 1902 में इंग्लैंड भेज दिया गया.
जर्मनी, स्कॉटलैंड, और फ़्रांस आदि होते हुए वह 1905 में लन्दन पहुँची जहाँ उनकी मुलाकात दादा भाई नौरोजी से हुई जो एक प्रसिद्द स्वतंत्रता सेनानी और आर्थिक चिन्तक थे. डेढ़ साल तक उनके निजी सचिव के रूप में काम किया जिस दौरान उनका परिचय प्रवासी देशभक्तों और विद्वानों से हुआ. इन सबमें सबसे अधिक वे श्री श्याम जी कृष्ण वर्मा के विचारों और भाषणों से प्रभावित हुई.
एक ओजस्वी वक्ता
18 अगस्त 1907 को जर्मनी में विश्व के समाजवादियों का एक विशाल आयोजन था जिसमें विभिन्न राष्ट्रों के एक हजार से अधिक प्रतिनिधि शामिल हुए थे. श्री मती कामा भी उसमें आमंत्रित की गयी थीं. इस आयोजन के नेता श्री जॉन जौरस ने उनका परिचय एक हमसफ़र प्रतिनिधि के रूप में कराया. श्री मती कामा ने अपने ओजस्वी भाषण से सभी को प्रभावित किया और भारतवासियों में उत्साह का संचार कर उन्हें प्रेरित किया.
तिरंगे का प्रारूप
भारतीय झंडे का प्रथम प्रारूप श्रीमती कामा ने अपने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर 1905 में लंदन में तैयार किया था .इस प्रथम प्रारूप में हरा,लाल एवं केसरी तीन रंगों की पट्टियों को मिलाया गया था.ऊपर लाल रंग की पट्टी थी.जिसमें आठ खिले हुए कमल तत्कालीन भारत के आठ प्रदेशों के प्रतीक थे. बीच में केसरी रंग की पट्टी में देवनागरी में ‘वन्देमातरम’लिखा था नीचे की हरी पट्टी पर दायीं ओर अर्द्ध चन्द्र तथा बाईं ओर उगता हुआ सूरज दिखाया गया था. इस झंडे में लाल रंग को शक्ति का, केसरी को विजय का और हरे रंग को स्फूर्ति तथा उत्साह का प्रतीक मन गया था, केसरी सर्वप्रथम यह तिरंगा बर्लिन में और फिर 1909 में बंगाल में फहराया गया था.
यह न्यूयार्क भी गई और वहाँ एक प्रेस सम्मेलन में पत्रकारों के सम्मुख भारतीय जनता की दुर्दशा का विवरण दिया. उन्होंने अपने भाषणों में अमरीका के लोगों से खा-‘आप आयरलैंड तथा रूसी संघर्ष के बारे में जानते हैं, भारतीयों के संघर्ष की जानकारी भी रखिए.’वहाँ से वापिस लंदन आने पर इंडिया हाउस की एक सभा में उन्होंने ‘आगे बढो – मित्रों आगे बढो’ शीर्षक से बहुत ही जोशीला भाषण दिया.इस भाषण को पर्चे के रूप में छपा गया और आम जनता के बीच गुप्त रूप से बांटा गया . उसके बाद वह फ्रांस चली गयी और वहाँ जाकर एक क्रांतिकारी पत्रिका वन्देमातरम प्रकाशित करने लगी. इस पत्रिका को गुप्त रूप से भारत भेजा जाता था.
वन्दे मातरम्
महान क्रांतिकारी मदनलाल धींगरा की याद में उन्होंने मदन तलवार नामक पत्रिका निकली.इस कार्य में वीर सावरकर भी काफी क्रियाशील एवं मददगार साबित हुए. श्रीमती भीकाजी कामा के व्यक्तित्व कर्मठता तथा कार्यशैली से प्रभावित होकर अंग्रेजों ने उन्हें सम्मान हेतु कई बार आमंत्रित किया किन्तु किसी विदेशी के द्वारा सम्मान लेने में उन्होंने असमर्थता प्रकट की. भीकाजी कामा का योगदान आजादी की लड़ाई में अति महत्वपूर्ण है. उनके द्वारा किए गये कार्य कई देशभक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत था.इस महान देशभक्त महिला ने अपनी अंतिम सांस मुंबई स्थित पारसी जनरल अस्पताल में सन 1936 में ली. इस महान देशभक्त का अंतिम शब्द वन्दे मातरम था.
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