प्रस्तुत कहानी Hawa ka Karj and Peppy King Hindi Story यानी हवा का कर्ज हिंदी स्टोरी पर्यावरण रक्षा से जुडी हुई एक कहानी है।
Hawa ka Karj and Peppy King Hindi Story हवा का कर्ज हिंदी स्टोरी
देवनगर के राजा विश्वकेतु को शिकार खेलने का शौक था. एक दिन वे अपने मंत्री के साथ शिकार खेलने जंगल में गए. वहाँ शाम हो गई. राजा विश्वकेतु को जंगल में एक जगह बहुत अच्छी लगी. उन्होंने सिपाहियों से कहा – “इस जगह के पेड़-पौधों को काटकर इसको साफ करो. आज रात हम यहीं पड़ाव डालेंगे.”
सारे सिपाही चुप हो गए. उनमें से कोई भी पेड़ों को काटना नहीं चाहता था. मंत्री ने सुझाव दिया – “महाराज! एक रात के लिए पेड़ों को क्यों हानि पहुंचाएं. हमलोग पेड़ पर मचान बना लेंगे. आज की रात उसी मचान पर ही गुजार लेंगे.”
राजा विश्वकेतु यह सुनकर क्रोधित हो गए. उन्होंने तलवार निकली. पौधों और झाड़ियों को काटने लगे. उनकी तलवार एक पेड़ के तने से टकराई. पेड़ से आवाज आई – “मुझे मत काटो. मैं हवा का पेड़ हूँ. काटोगे तो हवा बंद हो जाएगी.”
इसे भी पढ़ें: गुनहगार हिंदी लघु कथा
राजा विश्वकेतु बोले – “हुंह, हवा बंद हो जाएगी; जैसे तुम्हीं तो एक पेड़ हो इस जंगल में” – और जोर से उस पेड़ पर तलवार चलाई.
अचानक पेड़ से हवा का धूलभरा बवंडर उठा. अरे यह क्या इससे तो आग का धुआँ भी निकलने लगा. आसपास की हवा बंद हो गई. राजा के शरीर में खुजली होने लगी और फोड़े-फुंसी निकल आए. खाँसी आने लगी. साँसें रूकने लगी. आंख से पानी गिरने लगा. राजा ने धीरे-धीरे मंत्री से कहा – “मं—-त्री जी, मु—झे –ब —चा—इ—-ए—. मैं मरनेवाला हूँ.”
मंत्री ने जैसे-तैसे राजा को कंधे पर लादा और भागे. उन्हें एक आश्रम दिखाई दिया. वे भागकर वहाँ पहुंचे.
आश्रम में एक महात्माजी थे. मंत्री ने राजा को वहीं लिटा दिया और बोले – “श्रीमान, यह देवनगर के राजा राजा विश्वकेतु हैं. हवा बंद होने से इनकी हालत खराब है. क्या आप कुछ उपाय कर सकते हैं कि यह बच जाएँ?”
“मैं इन्हें बचा सकता हूँ पर” —- कहकर ऋषि चुप हो गए.
“पर, पर क्या महात्माजी! आप इन्हें बचा लीजिए. बदले में जितना धन चाहेंगे मिलेगा” – मंत्री ने कहा.
महात्माजी ने ऊँचे स्वर में कहा – “उठिए महाराज विश्वकेतु!” राजा उठकर बैठ गए. उठते ही बोले – “पानी, पीने दो. बहुत जलन हो रही है. गला सूख रहा है. हवा, हवा दो” — कहते – कहते राजा फिर जमीन पर लेट गए.
इसे भी पढ़ें: दिशाहीनता
तुम्हें साफ हवा और पानी चाहिए. मैं दूंगा लेकिन वह तुम पर कर्ज रहेगा. ठीक होने के बाद वापस करना होगा. वचन दो कि तुम वैसा करोगे, अन्यथा जीवन भर इस आश्रम की साफ – सफाई करनी होगी” – महात्मा बोले. राजा और मंत्री ने एक साथ ‘हाँ’ में गर्दन हिलाई.
यह सुनकर महात्मा उन्हें आश्रम के पीछे ले गए. वहाँ हरे – भरे फलदार पेड़ थे. चारों ओर फूल खिले थे. ठंडी हवा बह रही थी. साफ पानी का सरोवर था. वहाँ पहुँचते ही राजा ने लम्बी साँस ली. पानी पिया. स्नान किया. सरोवर में स्नान करते ही राजा के शरीर से फोड़े – फुंसी गायब हो गए. स्वस्थ होते ही वे दोनों वहाँ से जाने लगे.
महात्मा ने कहा – अरे, अरे कहाँ चले? अपना वचन याद नहीं? मैंने तुम्हें साफ हवा और पानी कर्ज में दिया था.
राजा ने लापरवाही से कहा – “अरे दो – चार कमंडल पानी ही तो हमने लिया. उसके बदले दो- चार बाल्टी पानी आकर राजमहल से ले लेना.”
“पर साफ हवा, जिसमें तुमने साँस ली. वह भी लौटाना है” – महात्मा ने याद दिलाया. पर हवा कैसे लौटाएं? उसके बदले जितना धन चाहिए हम देने को तैयार हैं” — राजा बोले.
इसे भी पढ़ें: काम की दवा प्रेरक हिंदी कहानी
मुझे धन नहीं हवा चाहिए. जिस हवा में साँस लेकर तुम्हें पुनः जीवन मिला है – महात्मा ने क्रोध से कहा.
राजा और मंत्री सोच में पड़ गए. अंत में उन्होंने हाथ जोडकर पूछा कि हम क्या करें कि हवा का क़र्ज़ चुका सकें.
महात्मा ने कहा – “एक तरकीब है शिकार का शौक छोडो. एक वर्ष तक अपने राज्य में वहाँ पौधे लगाओ जहाँ पेड़ काटे गए हैं. अगले तीन वर्ष तक पौधों की देखभाल करो. जब तक वह पूरे पेड़ न बन जाएँ, ऐसे ही हवा देते हुए पेड़. फिर मुझसे इसी आश्रम में मिलो. तभी मेरा कर्ज चुकेगा.
राजा ने वैसा ही किया. महात्मा ने उनके द्वारा किये गए कार्य की बहुत तारीफ़ की.
Note : आपको यह कहानी Hawa ka Karj and Peppy King Hindi Story हवा का कर्ज हिंदी स्टोरी कैसी लगी, अपना फीडबैक जरुर दें.
Join the Discussion!