Guru Nanakdev Sikh Guru Hindi Biography/ सिख गुरु श्री गुरु नानकदेवजी की जीवनी
ईश्वर की सत्ता और मानव उत्थान में अटूट आस्था रखने वाले सिख पंथ के प्रवर्तक गुरू नानकदेव अपनी महानता के लिए सारे विश्व में विख्यात हुए. उन्होंने सत्य करतार, मानव-सेवा, सत्य निष्ठा एवं निर्भीकता की शिक्षा दी.

Guru Nanakdev Sikh Guru Hindi Biography
वह इस क्षणभंगुर संसार में परोपकार को ही सच्चा मानव –धर्म मानते थे. ऐसे महामानव नानकदेव का जन्म तत्कालीन भारत के पंजाब प्रान्त (अब पाकिस्तानी पंजाब में ) में तलवंडी (ननकाना साहब ) नामक गाँव में हुआ था. यह गाँव लाहौर नगर से 56 किलोमीटर दक्षिण – पश्चिम में स्थित है. पिता मेहता कालू गाँव के पटवारी थे तथा माता तृप्ता कुशल गृहिणी थी. इनका खत्री परिवार काफी प्रतिष्ठित था.
गुरु नानकदेव देव जी का बचपन
नानकदेव बचपन से ही ईश्वर में श्रद्धा रखते थे. सात वर्ष की उम्र में उन्हें स्थानीय योग्य शिक्षण गोपाल पंडित के निकट विद्याभ्यास के लिए ले जाया गया. वहाँ हिन्दी और गणित की शिक्षा ग्रहण करने में उनका मन एकदम नहीं लगा. अतः कुछ दिनों के बाद उन्हें संस्कृत पढने के लिए ब्रजलाल पंडित के पास भेजा गया और फिर फारसी पढने के लिए मौलवी कुतुबुद्दीन के पास. इन भाषाओँ की पढाईयों में भी उनका मन न रमा. उलटे उनकी विलक्षण प्रतिभा और ज्ञान देखकर शिक्षक ही चकित रह गए. फलस्वरूप पिता ने पढ़ाने – लिखाने से अलग कर उन्हें भैंस चराने के लिए भेजना प्रारम्भ कर दिया. यहाँ भी उनका वही हाल रहा.
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भैसों को चराने जंगल में जाते और वहाँ एकांत में बैठकर ईश्वर के ध्यान में खो जाते. इसी क्रम में एक दिन उनकी भैंस ने एक जात किसान के खेत में घुसकर उसके खेत के एक भाग को उजाड़ दिया. उसने इसकी शिकायत गाँव के मुखिया से की. वहाँ अपनी सफाई में नानकदेव ने कहा कि हानि और लाभ तो ईश्वर की इच्छा का प्रतिफल है. हम इसमें क्या कर सकते हैं? इस दार्शनिक उत्तर से सभी निरूत्तर हो गए.
पढाई-लिखाई
नानकदेव के पिता उनके नहीं पढने – लिखने तथा व्यवहारिकता से उदासीन रहने के कर्ण असंतुष्ट रहा करते थे. अतः उनकी बड़ी बहन नानकी जी उन्हें अपने ससुराल सुल्तानपुर ले गई. यहाँ नानकदेव ने दौलत खां लोदी के मोदीखाने का काम संभाल लिया तथा सामानों की बिक्री के काम में लग गए. यहाँ भी नानकदेव का हाल निराला ही था. गरीबों को वे सामान निशुल्क ही दे दिया करते थे. इससे मोदीखाने का मालिक असंतुष्ट रहने लगा. इसी तरह ग्राहक के लिए आटा तौलते हुए एक दिन उन्होंने तेरह सेर गिनते – गिनते ‘तेरा’ कहना प्रारम्भ कर दिया. फिर सब कुछ ‘तेरा’ है, अर्थात ईश्वर का है, कहते हुए सारा आटा ग्राहक को मुफ्त ही दे डाला. यह मोदीखाने वाले के बर्दाश्त से बाहर हो गया. फलस्वरूप वहाँ के काम से नानकदेव को वंचित होना पड़ा.
विचार और दर्शन
नानकदेव धर्म के भेदभाव को नहीं मानते थे. उनका मानना था कि मानव मात्र एक ही परमपिता परमेश्वर की सन्तान हैं. अतः वे जीवनपर्यन्त लोगों के बीच बैर भाव और राग द्वेष को मिटाने का समर्पण भाव से प्रयत्न करते रहे. उनकी दृष्टि में संसार में कोई बुरा नहीं है. दूसरों के दोष देखने के बदले हम अपने दोष देखें तथा उन्हें दूर करने का प्रयास करें. दूसरों की सेवा करना नानकदेव के जीवन का आदर्श था.
गुरू नानकदेव जी एक महान समाज – सुधारक थे. अंधविश्वास, छुआछूत तथा पाखंडों पर उन्होंने करारा प्रहार किया. उन्होंने मानव – प्रेम, परोपकार तथा पारस्परिक सहयोग को जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण बतलाया. हिन्दू – मुस्लिम एकता के तो प्रशक्त समर्थक थे. वे सामाजिक सदभाव एवं शांति के सबल पोषक थे, वे एकेश्वरवादी थे. उन्होंने देश – विदेश की यात्रा कर अपने संदेश को व्यापक प्रसार दिया.
भ्रमण और देशाटन
प्रथम यात्रा में वे एमनाबाद जाकर एक बढ़ई के घर ठहरे. उसके उपरांत उनकी यात्रा के पड़ाव दिल्ली, गया, काशी हरिद्वार और जगन्नाथपूरी में रहे. उत्तर भारत की इस व्यापक यात्रा के बाद उन्होंने दक्षिण भारत के सेतुबंध रामेश्वरम, अबुर्द्गिरी आदि स्थानों की यात्राएँ कीं. विदेश – यात्रा के कर्म में वे – श्रीलंका, तिब्बत, बलूचिस्तान, भूटान, कंधार एवं काबुल और बगदाद गए. उत्तर भारत के बचे हुए प्रमुख स्थानों को उन्होंने पुनः एक बार व्यापक यात्रा की. ये स्थान हैं – टिहरी, गढवाल, सिरमौर, हेमकूट, सिक्किम तथा गोरखपुर. इन सभी यात्राओं के कर्म में उन्होंने अपने उपदेशों में लोगों को बताया कि ईश्वर एक है – ‘सत्यनाम’ .
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सृष्टि के सारे कार्यकलाप उसी की इच्छा से परिचालित होते हैं. अतः सारे पारस्परिक मतभेदों को भुलाकर एकमात्र उसी के स्मरण में सबका कल्याण है. सुखी जीवन के लिए दया, धर्म, नम्रता, प्रेम और सत्य जैसे सद्गुणों को आचरण में उतरना श्रेयस्कर है. उनके उपदेश इतने प्रभावकारी होते थे कि श्रोता तत्काल ही श्रद्धापूर्वक उनके शिष्य बन जाते थे. वह ईश्वर – अल्लाह एक मानते थे. और उनकी सर्वव्यापकता में अखंड निष्ठा रखते थे. वे बड़ी ही सरल भाषा में व्यावहारिक दृष्टान्तों के साथ उपदेश करते थे. यही कारण था कि उनका कथन सीधे लोगों के हृदय तक पहुँचकर उन्हें प्रभावित कर पता था.
उपदेश
गुरू नानकदेव जितने ही शुद्ध हृदय के महान धार्मिक पुरूष थे, उतने ही साधु – संतों की सेवा और आदर – मान करते थे. इस सन्दर्भ की अनेक कथाएँ उनके जीवन से जुडी हुई हैं. वे सभी धर्मों का आदर करते थे, यह इसी से सिद्ध होता है कि उन्होंने हिन्दू, इस्लाम, बौद्ध, जैन आदि सभी धर्मों के पवित्र तीर्थों की यात्रा की थी. सभी स्थानों पर उन्होंने ‘सत श्री अकाल’ एवं ‘सत्य कर्तार’ के रूप में सर्वव्यापी ईश्वर के पावन स्मरण का उपदेश दिया. पच्चीस वर्षों तक निरंतर भ्रमण एवं उपदेश – दान के बाद गुरू नानकदेव करतारपुर आकर स्थायी रूप से बस गए तथा वही उनके उपदेश देने का केंद्र बन गया.
प्रमुख शिष्य
गुरू नानकदेव के दो प्रमुख शिष्य हुए – बाला और मर्दाना. नानकदेव तथा उनके शिष्य मर्दाना के बारे में एक किंवदन्ती है. एक बार गुरूजी घुमते हुए पंजाब के ‘हसन अब्दाल ’ नामक स्थान पर पहुंचे. वहाँ पहाड़ों पर ‘बाबा वली कन्धारी’ नामक एक अहंकारी फकीर रहता था. उसके आवास के निकट से फूटने वाले एकमात्र सोते पर उसका अधिकार था. वह उस सोते से किसी को पानी नहीं लेने देता था.
गुरू नानकदेव के शिष्य मर्दाना की बार – बार प्रार्थना को भी उसने ठुकरा दिया. तब गुरूजी ने नीचे जमीन फोड़कर अपने लिए पानी का दूसरा सोता बनाया. ऐसे देखकर अहंकारी फकीर आगबबूला हो गया. क्रोध में जलते हुए उसने ऊपर पहाडी से एक चट्टान का बड़ा टुकड़ा लुढका दिया. कहते हैं नानकदेव ने अपने पंजे से उसे रोक दिया और उस पत्थर की चट्टान पर उनके पंजे की स्थायी छाप बन गई. इस स्थान पर बाद में एक गुरूद्वारे का निर्माण हुआ, जिसे आज पंजा साहब के नाम से जाना जाता है.
अवसान
अपने अंतिम स्थायी आवास – स्थल करतारपुर में ही सन 1538 ई. में आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को महामानव गुरू नानकदेव जी का देहावसान हुआ. मृत्यु की घड़ी में उनके हजारों शिष्य वहाँ एकत्रित थे. उनमें हिन्दू और मुसलमान दोनों ही धर्मों के अनुयायी थे. हिन्दू और मुसलमान शिष्य उनके शव को पाने के लिए आपस में झगड़ पड़े . हिन्दू दाह – संस्कार के पक्ष में और मुसलमान कब्र में दफनाने के हिमायती थे. अंत में गर्म और भयानक मतभेद के वातावरण में जब दोनों धर्मों के शिष्य ने गुरू नानकदेव जी के शव पर से चादर हटाई तो वे दंग रह गए. वहाँ शव नदारद केवल कुछ फूल बिखरे पड़े थे. सभी का सिर शर्म से नीचे झुक गया. दोनों पक्ष के शिष्यों ने वहाँ प्राप्त फूलों को आपस में बाँट लिया और अपनी- अपनी धार्मिक मान्यताओं के अनुरूप अंतिम क्रिया संपन्न किया.
श्री गुरु ग्रन्थ साहब जी
गुरु नानकदेव के सारे उपदेश गुरुवाणी के रूप में श्री गुरु ग्रन्थ साहब में संग्रहीत है. विश्व के सभी गुरद्वारे में उसी गुरु ग्रन्थ साहब की पूजा अर्चना की जाती है और गुरुवाणी को धर्मं वाणी माना जाता है. वास्तव ने अब श्री गुरु ग्रन्थ साहब ही गुरु हैं और उसमें संकलित वाणी ही पावन गुरु की वाणी है. गुरु नानकदेव जी एक विशुद्ध तत्वदर्शी संत थे जो भेद भाव, छल कपट, अहंकार –घमंड, राग द्वेष से ऊपर उठकर सत श्री अकाल, सत्य करतार और परमात्मा ही सत्य है का उपदेश पूरे जीवन देते रहे. उनकी वाणी आज भी भूलोक में चहुओर गूंज रहे हैं :
‘सत श्री अकाल
जो बोले सो निहाल’
गुरु नानकदेव जी के सम्बन्ध में पुर्णतः सही और उपयुक्त है:
‘गुरु नानक शाह फ़क़ीर
हिन्दू का गुरु, मुसलमान का पीर.’
प्रस्तुत पोस्ट में एक महान संत, धर्म-प्रवर्तक और समाज सुधारक श्री गुरु नानक देव जी के जीवन चरित के बारे में जानकारी दी गयी है. श्री गुरु नानक देव जी जैसे महान विभूति के जीवन दर्शन और विचारों को एक लेख में समेट पाना मेरे जैसे तुच्छ व्यक्ति के लिये एक असंभव कार्य है. उनका जीवन हमेशा मानवता की भलाई के लिये नए मार्ग प्रशस्त करते रहेंगे. आप इस पोस्ट Guru Nanakdev Sikh Guru Hindi Biography comment द्वारा अपने विचार जरुर दें.
Even though a book will not be enough to write his life, you have nicely summed up his life.
बहुत ही अच्छा लगा बायोग्राफी