मदर टेरेसा के अनमोल विचार /Mother Teresa Famous Hindi Quotes
मदर टेरेसा का मूल नाम Anjezë Gonxhe Bojaxhiu था. वे मूल रूप से अल्बीनिया की रहने वाली थीं. उनका जन्म 26 अगस्त 1910 और अवसान 5 सितंबर 1997 को हुआ. उनको कलकत्ता की Blessed Teresa के नाम से भी जाना जाता है. वे एक रोमन कैथोलिक नन और मिशनरी थीं. उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन बेबस, लाचार और रोगी लोगों की सेवा में लगा दिया. उनको विश्व शांति में योगदान के लिये नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उनकी संस्था Missionaries of Charity आज भी मानवता की सेवा में लगी है. ऐसी महान आत्मा को नमन!
आइये जानते हैं उनके कुछ अनमोल विचार जो सदैव हमारे लिये प्रेरणा स्रोत बना रहेगा:
आनंद पर विचार:
1. धन –राशि की समस्या नहीं होती. वह तो मिल जाती है, भले ही कुछ कष्ट सहना पड़े, पर वह कष्ट भी तो आनन्द का पूरक होता है. सभी को प्यार करके ही हम ईश – प्राप्ति क्र सकते हैं और यही तो सच्चा आनन्द है.
ईश्वर/भगवान पर विचार:
2. ईश्वर की इच्छा पर ही जीवन का आदि और अंत आधारित है. अंत तक गरीबों की सेवा में प्राण देना ही पालनीय है. प्रत्यक्ष रूप में तो लगता है कि हम कुछ नहीं कर सकते पर यीशु की कृपा से हर काम को उसी का काम समझें फिर कोई व्यवधान,कोई बढ़ा नहीं रहती, सब सम्भव हो जाता है. यदि यह समझ लिया जाए कि सब काम मैं ही करती हूँ तो मेरे देहावसान पर मेरे कार्य भी समाप्त हो जाएँगे. प्रभु की कृपा से पंचतत्वों में मिल जाने पर भी कार्यों की कभी मृत्यु नहीं होती. ईश्वर उन्हें किसी अन्य के द्वारा करवा लेते हैं.
उपवास पर विचार:
3. एक दिन या एक समय निराहार रहना पड़े अर्थात उपवास करना पड़े तो कितनी वेदना होती है, फिर लोगों को , जो कई दिन तक निराहार या आधा पेट खाकर रहते हैं और जिन्हें दो मुट्ठी अन्न भी नहीं जुटाया जा सकता, मौखिक सहानुभूति तो दी जा सकती है.
कर्तव्य पर विचार:
4. कर्तव्य वह है जो विश्व का स्वरूप ही बदल सकता है. शर्त यह है कि ग्रीबोब की उपेक्षा नहीं, अपितु अपने अहम की अभिव्यक्ति के अतिरिक्त, उनकी हृदय से सेवा की जाए. यही है कर्तव्य – पालन सभी भूखों का पेट भरना भले ही असम्भव हो, पर जो सामने आ जाए – भले ही वे करोड़ हों – उनका पेट भरना मानवता का कर्तव्य है.
कर्म पर विचार:
5. इस संसार में कर्म ही जीवन है. जीवन में मैं — मैं करने से कोई लाभ नहीं.
जीवन पर विचार:
6. जीवन को जी – जान से प्यार करना, निर्धनता को आभूषण बना क्र हर एक के बीच काम करने हेतु जाना, भगवान के प्रति प्यार की मूर्ति ही यह कार्य है, क्योंकि प्यार का स्पर्श किसी- न –किसी के लिए तो निर्दिष्ट है ही.
त्याग पर विचार:
7. पृथ्वी रसातल में धंस जाती. हम कितने ऋणी हैं इनके, ऐसे मात्र कहकर नहीं समझाया जा सकता.
दुःख /वेदना पर विचार: Read this post : स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन
8. दुःख, वेदना, व्यर्थता आती हैं तो आने दो, पर उसी एक भगवान पर भरोसा रखो और फिर तुम अनुभव करोगो कि दुःख से ही परमानन्द की प्राप्ति होती है और व्यर्थता ही सफलता लाती है. वेदना जीवन को मधुमय बना देती है. जिसके जीवन का पात्र वेदना से लबालब भरा हो, वही वेदना से पीड़ित मनुष्य का दुःख दूर कर सकता है.
नारी/ स्त्री पर विचार:
9. नारी नारी होती है, वह माँ भी होती है और सन्तान द्वारा परित्याग किये जाने पर भी उस सन्तान की स्मृति के अतिरिक्त ऐसी नारी में कुछ और नहीं होता.
पवित्रता पर विचार:
10. सबसे बड़ी पवित्रता है – जीवन और अपनी सामर्थ्य के अनुसार इस जीवन को सुंदर, सुरम्य और मोहक बनाना ही हमारा प्रमुख कर्तव्य है.
प्रकृति पर विचार:
11. इस कोलाहल-भरे परिवेश में ईश्वर को पाने की इच्छा रखते हुए भी हम उसे नहीं पा सकते, क्योंकि ईश्वर तो निस्तब्ध और नीरव परिवेश में रहता है. उसकी प्राप्ति के लिए, प्रकृति – वृक्ष, पुष्प, लताओं आदि का अवलोकन करो, क्योंकि ये नीरवता में उदभूत होते हैं. आकाश को देखो; क्योंकि सूर्य, चन्द्र,नक्षत्र और ग्रहों की गति भी नीरवता अर्थात शब्दहीनता में होती है.
प्रेम पर विचार: Read this post : अब्राहम लिंकन के अनमोल वचन
12. प्रेम ही मात्र एक ऐसी औषधि है जो इस रोग को, इस व्याधि को दूर कर सकती है कि मैं अवांछित हूँ, मुझे कोई नहीं चाहता, मैं कुष्ठ हूँ. यह रोगशारीरिक नहीं, मानसिक है और इस मानसिक रोग को किसी औषधि द्वारा या किसी डॉक्टर द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता. इसका एकमात्र उपचार है – प्रेम और केवल प्रेम.
भाग्य पर विचार:
13. जिन्होंने भाग्य को ही सब – कुछ मान लिया है, वे जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वंचित रहकर भी कोई शिकायत नहीं करते, उनके पास अन्न नहीं,वस्त्र नहीं, पर फिर भी उन्हें खेद नहीं, जैसे भाग्य ही उनकी अपरिहार्य नियति है.
मन पर विचार:
14. भूखों की भूख मिटाना बहुत कठिन कार्य है, इसके लिए आवश्यकता है हृदय की, परन्तु उस सूक्ष्म दशा पर मन से कभी विचार ही नहीं किया गया.
मनुष्य पर विचार:
15. मनुष्य ही इस संसार में सब – कुछ है.
मृत्यु पर विचार:
16. मृत्यु तो अवश्यंभावी है. मृत्यु के सामने जाने से पहले इन दरिद्रों और मरनासन्न लोगों को थोडा-सा- स्नेह दे दें, यही जीवन की सार्थकता है.
विश्वास पर विचार:
17. विश्वास तो ईश्वर का वरदान है. बिना इसके जीवन चल ही नहीं सकता. ईश्वर के प्रति समर्पित कार्य तभी सार्थक है, जब वह गहरे विश्वास से उदभूत हो. दरिद्रों की सेवा का मार्ग ईश्वर ने ही मुझे दिखाया, यह विश्वास मेरे हृदय में बहुत पहले हो गया था.
शक्ति पर विचार:
18. हमारी संस्था के मूल में दिन- रात काम करनेवाली शक्ति चेहरे का उल्लास ही तो है. स्वत्व का उनके चरण – कमलों में अर्पण, प्रेम का विश्वास और आनन्द यही तो मूलधन है. क्या सेवा केवल धन से ही होती है. यीशू को पहचानने और अनुभव करने की शक्ति द्रिद्र्तं प्राणियों में ही छ्द्दरूप में निहित है. मन की तैयारी के लिए इस शक्ति को संचित करने की अतीव आवश्यकता है.
शांति पर विचार:
19. विश्व में शांति तो तभी स्थापित होगी जब हम सबको यीशू समझकर उनकी सेवा कर पाने योग्य हो जाएँगे. पश्चिमी देशों में इस तथ्य को समझने का अभाव है, क्योंकि उनमें संतोष का अभाव है. उन्हें दुःख बहुत तीव्र लगता है. इस भावना को वे सरलता और सहजता से नहीं समझ सकते और इसीलिए उन्हें कभी शांति प्राप्त नहीं होती.
शिक्षा पर विचार:
20. शिक्षा का प्रारम्भ धर्म-परिचय से नहीं अपितु वर्ण – परिचय से किया जाना चाहिए.
सेवा पर विचार:
21. सेवा केवल धन से ही नहीं, हृदय से भी होती है. सेवा में प्रेम का स्पर्श होना चाहिए. सेवा के कार्य में पग –पग पर विपदा का भय रहता है. यह स्मरणीय है कि जो कुछ किया जाये; उन लोगों के लिए जो बस्ती में, झोपडी में, भूख में, अपमान में समय काटते हैं और जो हमारी ही भांति सुख-दुःख से निर्मित हैं. मनुष्य को ईश्वर की ओर ले गाना ही सच्ची सेवा है.
स्वार्थ पर विचार:
22. स्वार्थभावना और व्यक्तिगत लाभ – हानि को लेकर ही अधिकांश लोग स्वयं में व्यस्त हैं.
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