Art of Earning Hindi Story/कमाने की कला हिंदी कहानी
Art of Earning Hindi Story में यह बताया गया है कि बुद्धिमान व्यक्ति हर स्थिति में शांत रहकर कोई न कोई उपाय जरुर निकाल लेता है. किसी राजा के राज्य में एक मुंशी जी थे. वे राजा के करिन्दा थे. मुंशी जी बहुत ही चतुर व्यक्ति थे.कमाने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देते. अगर गुंजाइश न हो तो भी कोई न कोई राह निकाल ही लेते. जबान के मीठे और कलम के तेज उनके बारे में यह प्रसिद्ध था कि वे इस तरह पैसा बनाते हैं कि न तो कभी जनता को किसी प्रकार की कोई शिकायत होती, न ही राजकोष को कोई हानि. मुंशी जी दाल में नमक के बराबर खाते थे. जनता भी खुश, राजा भी खुश और मुंशी जी भी खुश.
धीरे-धीरे मुंशी जी की ख्याति राजा के कानों में पड़ी. राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ. एक दिन उन्होंने मुंशी जी बुलवा भेजा. मुंशी जी कान पर कलम रखे, अपना चौपडा बगल में दबाये, फौरन हाजिर हुए. राजा को सलाम किया और डर के मारे कांपते हुए से एक तरफ खड़े हो गये.
राजा ने पूछा –‘मुंशी जी आपकी बड़ी तारीफें सुनी हैं. कभी आपकी कोई शिकायत नहीं मिली.’
सब आपकी कृपा है, गरीब परवर, मुंशी जी बोले.
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मुंशी जी, आपको भी कुछ मिल जाता है? राजा ने कहा. मुंशी जी बोले ‘सारी रियाया ही आपका दिया खाती है अन्नदाता. राजा समझ गये कि मुंशीजी काफी चतुर, पैसा कमाने में घाघ तथा औरों की तुलना में ज्यादा विश्वस्त हैं. मुंशी जो भी समझ गये कि दाई के आगे पेट छिपाना बेवकूफी है. राजा ने कुछ जानकर ही उन्हें बुलवाया है और यह सवाल पूछ रहा है. अत: जबाब इस प्रकार दिया जाये कि झूठ बोलकर राजा की निगाह में गिरने की नौबत भी न आये और इस विषम अवसर का कुछ फायदा भी मिले.
राजा मुंशी जी से बातचीत कर बहुत संतुष्ट हुआ. उसने उन्हें एक घड़े में से सौ लड्डू दिये और कहा कि कल शाम इन लड्डूओं को लेकर वापस आना. इनकी संख्या कम नहीं होनी चाहिये, न ये टूटे. आपको भी कुछ मिले.
मुंशी जी ने सिर झुककर कहा – ‘जैसी सरकार की आज्ञा.’ और लड्डू लेकर चले गये.
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घर जाकर मुंशी जी ने एक बांस का टोकरा लिया. घड़े में से एक एक लड्डू निकाल कर टोकरे में रखते. इस प्रकार घड़े में जो चूरा बच जाता, उसे एक वर्तन में रख लेते. इसी प्रकार टोकरे में से लड्डू निकालकर जब घड़े में रखते तब भी कुछ चूरा टोकरे में बच जाता. शाम तक काफी चूरा इकट्ठा हो गया. एक भी लड्डू न कम हुये, न टूटे. सूरज डूबते-डूबते मुंशी जी लड्डू का घडा और चूरे से भरा बर्तन लेकर राजदरबार में हाजिर हुये और राजा से हाथ जोडकर बोले ‘सरकार, माई-बाप, ये लड्डू गिनवा लीजिये. राजा ने गिनवाया तो सौ के सौ लड्डू तहदर्ज मिले. उन्होंने मुस्कुराकर मुंशी जी से पूछा – ‘मुंशी जी, कुछ मिला?’ मुंशी जी ने लड्डूओं के चूरे से भरा बर्तन राजा के सामने रख दिया और हाथ जोडकर एक तरफ खड़े हो गये. राजा बहुत खुश हुये.
राजा ने सोचा कि मुंशी है पूरा घाघ. व्यवहार में भी नफीस है. इसकी अक्लमंदी का एक और इम्तहान लेना चाहिये. इस बार इसे ऐसे काम पर लगाया जाना चाहिये जहाँ कुछ मिलने की संभावना शून्य हो. अत: उन्होंने मुंशी जी से कहा –‘मुंशी जी, कल से आप नदी के किनारे बैठकर लहरें गिनिये. एक सप्ताह में आकर मुझे बतलाइये कि आपने क्या किया? मुंशी जी सिर झुकाकर चले गये.
दूसरे दिन सबेरे ही मुंशी जी अपना चौपडा और कलम लेकर नदी के घाट पर बैठ गये. वहां उन्होंने एक बड़ी सी तख्ती लगवा दी जिस पर लिखा था –‘शासन के आदेश से लहरों की गिनती. गडबडी पैदा करने वालों को सजा.’ मुंशी जी झूठ-मूठ लहरों की संख्या चौपडा में लिखने लगे.
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अब नाव चलाने वाले परेशान हुये कि क्या माजरा है. उन्होंने मुंशी जी से पूछा. मुंशी जी ने कहा –‘भाई, सीधे राजा साहब का हुक्म है. लहरों में गडबडी नहीं होनी चाहिये.’ नाव वालों ने आपस में सलाह किया कि भाई यह काम पता नहीं कब तक जारी रहेगा. नाव चलाने से लहरें तो टूटेगी ही. अत; मुंशी जी की हथेली गर्म कर अपना काम करें, नहीं तो नाव चलाना बंद कर देने से पता नहीं कब तक कमाई बंद रहेगी.’ और मुंशी जी को हर फेरे की उतराई का कुछ न कुछ देने लगे. दूसरे दिन उस पार मेला था.
उसमें मुंशी जी को और भी आमदनी हुई. धीरे-धीरे प्रचार होने लगा. अब तो नहाने वाले, जानवरों को धोने वाले, मछली मारने वाले सभी से बिना मांगे मुंशी जी को कुछ न कुछ मिलने लगा.
सप्ताह बीतने पर मुंशी जी राजा के दरबार में हाजिर हुये और रूपयों से भरी थैली राजा के सामने रखकर हाथ जोडकर एक कोने में खड़े हो गये.
राजा ने मुंशी जी की अक्ल का लोहा मान लिया. उन्हें अपना वजीरे खजाना बना लिया.
Abhor says
Very nice story. I think Indian bureaucracy is full of clever people like Munshi ji. They do not let go any opportunity to get their palm greased on the pretext order has come from top.
Pankaj Kumar says
Thanks for your nice comment. I do agree with you.