Bhartrihari Quotes in Hindi भर्तृहरि के अनमोल विचार
भर्तृहरि एक कुशल शासक, रससिद्ध कवि और महान विद्वान थे. आम बोलचाल में लोग इनको राजा भरथरी के नाम से भी जानते हैं. उनके द्वारा विरचित तीनों शतक जीवन की वास्तविक अनुभूतियों पर आधारित होने के कारण सभी को प्रभावित करते हैं. भर्तृहरि ने कवि हृदय की सरसता का समावेश करके क्रमश: श्रृंगार शतक, नीति शतक एवं वैराग्य शतक की रचना की. इन्हें शतकत्रय के नाम से भी जाना जाता है. इसमें कुल मिलाकर 300 श्लोक हैं. बाद में ये गुरु गोरखनाथ के शिष्य बन गए और बाबा भरथरी के नाम से प्रचलित हुये. प्रस्तुत है यह पोस्ट Bhartrihari Quotes in Hindi भर्तृहरि के अनमोल विचार.
Bhartrihari Quotes in Hindi भर्तृहरि के अनमोल विचार
1. जो मनुष्य साहित्य, संगीत और कला से हीन है, वह बिना सींग, पूंछ के बिल्कुल पशु है. वह घास न खाता हुआ भी जी रहा है, यह पशुओं का बहुत बड़ा सौभाग्य है.
Bhartrihari भर्तृहरि
2. जब मैं थोडा जानता था, तब हाथी के समान घमंड में अँधा हो गया था. उस समय इस भाव से मेरा मन भरा हुआ था कि मैं सब कुछ जानता हूँ. जब विद्वान लोगों की संगति से मैंने कुछ-कुछ जाना, तब पता चला कि मैं तो मूर्ख हूँ. तभी ज्वर के समान मेरा घमंड मिट गया.
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3. यह सत्य है कि जिसका ज्ञान नष्ट हो जाता है, उनका सैकड़ों प्रकार से पतन होता है.
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4. मूर्ख व्यक्ति को सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है. विशेष ज्ञानी पुरूष को अधिक सरलता से प्रसन्न किया जा सकता है. जो मनुष्य अपने थोड़े से ज्ञान के कारण स्वयं को बहुत बड़ा ज्ञानी समझता हो, उसे परमात्मा भी प्रसन्न नहीं कर सकते.
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5. दुर्गम पर्वतों में जंगली लोगों के साथ घूमना अच्छा है, पर इंद्र के महलों में भी मूर्ख लोगों के साथ रहना अच्छा नहीं है.
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6. हे राजाओ! विद्या नाम का धन जिनके पास है, उनके सामने घमंड मत करो. उन विद्या रूपी धनवालों की बराबरी कौन कर सकता है.
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7. शुद्ध रूप में धारण की गई एकमात्र वाणी ही मनुष्य की शोभा बढ़ाती है, शेष सब गहने सदैव नष्ट होते रहते हैं, केवल वाणी रूपी गहना ही सच्चा आभूषण है.
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8. विद्या से आदर प्राप्त होता है, विद्या के द्वारा राजा-महाराजाओं से सम्मान पाता है, न धन से. जो विद्या से हीन है, वह मनुष्य पशु है.
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9. दान, भोग और नाश – धन की ये तीन दशाएं होती हैं. जो धन का दान करता है और न भोग करता है, उसके धन की तीसरी गति होती है अर्थात नाश हो जाता है.
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10. एक मूर्ख व्यक्ति को समझाना आसान है, एक बुद्धिमान व्यक्ति को समझाना उससे भी आसान है, लेकिन एक आधे-अधूरे ज्ञान वाले इंसान को मनुष्य तो क्या, स्वयं ब्रह्मा जी भी नहीं समझा सकते, क्योंकि अधूरा ज्ञान मनुष्य को घमंडी और तर्क के प्रति अंधा बना देता है.
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11. अपनी शिक्षाप्रद मीठी बातों से दुष्ट पुरुषों को सन्मार्ग पर लाने का प्रयास करना उसी प्रकार है, जैसे एक मतवाले हाथी को कमल की पंखुड़ियों से वश में करना, या फ़िर हीरे को शिरीषा फूल से काटना अथवा खारे पानी से भरे समुद्र को एक बूंद शहद से मीठा कर देना.
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