होनहार बालक हिंदी प्रेरक कहानी
उन दिनों इंद्रगढ़ में राजा राममूर्ति का शासन था. वे एक वीर, साहसी एवं दृढ निश्चयी राजा थे. उसके राज्य में सर्वत्र सुख एवं समृद्धि थी. राजा राममूर्ति को अपने राज्य के वैभव और अपनी सम्पदा पर बहुत घमंड था. उसकी शक्ति को देखकर कोई भी पड़ोसी राज्य उसके राज्य पर आक्रमण करने की बात सोच भी नहीं सकता था. अपनी सुदृढ़ राज्य व्यवस्था के कारण राजा का अधिकांश समय मनोरंजन एवं आखेट में ही व्यतीत होता था.
एक दिन राजा राममूर्ति जंगल में आखेट की तलाश में इधर-उधर भटक रहा था, किन्तु उसे जंगल में कोई शिकार नजर नहीं आ रहा था. चारों ओर सन्नाटा था. राजा की निगाहें चारों दिशाओं में घूम रहीं थीं. तभी एकाएक उसकी निगाह एक बालक पर पड़ी, जो एकाग्र होकर एक पेड़ के नीचे बैठा कुछ कर रहा था. यह देख राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ कि आखिर यह बालक कौन है जो इस भयानक जंगल में अकेले ही निर्भीक बैठा क्या कर रहा है? राजा शिकार की चिंता छोड़ उस बालक के पास जा पहुंचा.
वहां पहुंचकर राजा ने देखा कि बालक स्लेट पर कुछ लिखता जा रहा है. राजा ने उससे पूछा, – “हे बालक ! तुम्हारा नाम क्या है?”
बालक ने उत्तर दिया, – “महाराज, मेरा नाम होनहार है.”
“तुम अकेले इस जंगल में क्या कर रहे हो?” राजा ने फिर से पूछा. बालक ने जबाब दिया, – “महाराज ! मेरे हाथ में स्लेट और पेन्सिल है. इससे आपको स्वयं ही अंदाजा लगा लेना चाहिए कि मैं क्या कर रहा हूँ? अब आप अपना परिचय तो दीजिए कि आप कौन हैं?”
राजा ने जबाब दिया, – “बेटे! मैं यहाँ का राजा राममूर्ति हूँ और यहाँ जंगल में शिकार करने आया हूँ.” फिर राजा ने उस बालक की ओर देखते हुए आगे कहा, “तुम्हारा नाम मुझे कुछ अजीब-सा लगता है. भला होनहार भी कोई नाम होता है?”
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इस पर बालक ने उत्तर दिया, – “हे राजन ! मैं तो छोटा-सा बालक हूँ, पर आप तो महान सम्राट हैं. क्या आप इतना भी नहीं समझते कि कल मैं नवयुवक होउंगा तो मेरे कंधों पर कर्तव्यों का भार आ जाएगा. मैंने अपना नाम होनहार रखकर क्या गलती की है? क्या आपको ऐसा नहीं लगता कि हर बालक कल का होनहार है.” बालक ने कुछ क्षण विराम लेकर राजा से आगे कहा, “हे राजन! आज जंगल में अपने प्राण संकट में डालकर आपसे मिलने के मन्तव्य से ही यहां बैठा हूँ. क्या आपने कभी ऐसा सोचा है कि यह राज्य आज बाल-शिक्षा की उपेक्षा कर कल के भविष्य को अंधकारमय बना रहा है. आप आखेट और वन्य जीवों की हत्या कर अपना मनोरंजन करते हैं क्योंकि आपके पास कोई काम नहीं है. हे राजन ! क्या आपके बालक को होनहार बनाना आपका दायित्व नहीं ?”
बालक की बात राजा राममूर्ति के मन में गहरे से बैठ गई. उसने झुककर बालक को उठाया और उसे अपनी छाती से लगा लिया. फिर बोला, “तुमने मेरी आँखें खोल दीं, बेटे ! आज से हम तुम्हें ‘होनहार’ कह कर ही पुकारेंगे. आज से हम शिकार करना छोड़ बच्चों के विकास और शिक्षा के कार्य में जुट जाएँगे, ताकि राज्य का भविष्य सुनहरा बन सके.”
उस दिन के बाद से राजा ने बच्चों की शिक्षा-दीक्षा पर विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया. यह सच है कि यदि किसी राज्य या देश की जनता पढी-लिखी और समझदार हो तो उस राज्य की आधी समस्या यूँ ही समाप्त हो जाती है. इतिहास साक्षी है कि जिस देश में शिक्षा है वह देश होनहार साबित हुआ है और वहां सर्वत्र सुख और शांति रहती है. वह देश धन और वैभव से भी परिपूर्ण रहता है. इसलिए हम सभी को बच्चों की शिक्षा पर विशेष ध्यान देनी चाहिए.
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