Kuyen ka Mendhak Hindi Kahani कुएँ का मेंढक हिंदी कहानी
एक कुएँ में एक मेंढक रहता था. एक बार समुद्र का एक मेंढक कुएँ में आ पहुँचा तो कुएँ के मेंढक ने उसका हालचाल, अता-पता पूछा. जब उसे ज्ञात हुआ कि वह मेंढक समुद्र में रहता है और समुद्र बहुत बड़ा होता है तो उसने अपने कुएँ के पानी में एक छोटा-सा चक्कर लगाकर उस समुद्र के मेंढक से पूछा कि क्या समुद्र इतना बड़ा होता है ? कुएँ के मेंढक ने तो कभी समुद्र देखा ही नहीं था. समुद्र के मेंढक ने उसे बताया कि इससे भी बड़ा होता है.
कुएँ का मेंढक चक्कर बड़ा करता गया और अन्त में उसने कुएँ की दीवार के सहारे-सहारे आखिरी चक्कर लगाकर पूछा- ‘क्या इतना बड़ा है तेरा समुद्र ?’ इस पर समुद्र के मेंढक ने कहा – ‘इससे भी बहुत बड़ा.’ अब तो कुएँ के मेंढक को क्रोध् ही आ गया. कुएँ के अतिरिक्त उसने बाहर की दुनिया तो देखी ही नहीं थी. उसने कह दिया – ‘जा तू झूठ बोलता है. कुएँ से बड़ा कुछ होता ही नहीं. समुद्र भी कुछ नहीं होता है, तू बकता है.’
आज जीवन में पग-पग पर हमें ऐसे कुएँ के मेंढक मिल जायेंगे, जो केवल यही मानकर बैठे हैं कि जितना वे जानते हैं, उसी का नाम ज्ञान है, उसके इधर – उधर और बाहर कुछ भी ज्ञान नहीं है. कुएँ का मेंढक यहाँ सीमित ज्ञान का प्रतीक है जबकि समुद्र से आया मेंढक ज्ञान की विशालता और गहराई का प्रतीक है. जितना अध्ययन होगा उतना अपने अज्ञान का आभास होगा. यह भी सत्य है कि सागर की भाँति ज्ञान की भी कोई सीमा नहीं है. अपने ज्ञानी होने के अज्ञानमय भ्रम को यदि तोड़ना हो तो अधिक से अधिक अध्ययन करना आवश्यक है. जितना अधिक अध्ययन किया जाएगा, भ्रम टूटेगा और ऐसा आभास होगा कि अभी तो बहुत कुछ जानना और पढ़ना शेष है.
ज्ञान की अनन्त सीमा
अध्ययन के अनेकों विभाग हैं. विज्ञान, भूगोल, इतिहास, अर्थशास्त्र, धर्म, दर्शन, साहित्य आदि ऐसे विभाग है जिनके एक भी उपविभाग में व्यक्ति सम्पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता तो अनन्त विभागों में सम्पूर्ण होने का प्रश्न ही कहाँ उठता है. हाँ, इतना अवश्य निश्चित है कि अधिक से अधिक अध्ययन करते रहने से एक मानसिक परितोष,आनन्द और शान्ति अवश्य प्राप्त होती है. उसके आगे और अध्ययन करने की जिज्ञासा भी उत्पन्न होती है. अधिक अध्ययन करने से मनुष्य के हृदय की संकीर्णता समाप्त हो जाती है तथा उसका दृष्टिकोण उदार होता जाता है.
सतत अध्ययनशीलता और दृष्टि की उदारता शनैः शनैः व्यक्ति को पूर्णता और पवित्रता की ओर ले जाती है. सतत अध्ययन एक ओर नई दिशाएँ देता है तो दूसरी ओर पुरानी मान्यताएँ दूर कर नई स्वस्थ मान्यताओं की स्थापना में भी सहायक होता है. उदाहरणार्थ भारत में बैठकर हम पश्चिमी अथवा अन्य किसी समाज व राष्ट्र की सभ्यता की निन्दा करते रहते हैं. लेकिन जब उसी सभ्यता को स्वयं आँखों से देखते हैं अथवा उसके विषय में विस्तार से पढ़ते हैं, अध्ययन करते हैं, तो हमारी मान्यताएँ बदल भी जाती हैं.
सतत अध्ययन मनुष्य की आन्तरिक सत्प्रवृत्तियों को विकसित करता है, शारीरिक, मानसिक और आत्मिक उन्नति द्वारा मनुष्य की पाशविक प्रवृत्तियों को दूर कर उसे शुद्ध और पवित्र बनाता है. मनुष्य को सच्चे अर्थों में मनुष्यता की प्राप्ति कराता है.
किताबी ज्ञान से आगे बढ़ें
इसलिए विशेष रूप से छात्रों से अपील है कि कुएँ का मेंढक न बनें. किताबी ज्ञान के साथ ही साथ जीवन के लिए उपयोगी और व्यवहारिक ज्ञान होना भी अधिक जरुरी है. कई बार ऐसा भी देखा गया है कि बहुत पढ़े लिखे लोग व्यवहारिक ज्ञान के क्षेत्र में कमजोर होते हैं और कालांतर में उन्हें अपनी इस कमी के चलते अफ़सोस होता है. इसलिए समुद्र की तरह शांत और व्यापक ज्ञान के तलाश में रह वक्त प्रयत्नशील रहना चाहिए.
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Bhakti says
nice