पृथ्वी सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती है. सूर्य के भ्रमण करने का जो मार्ग है, उसमें कुल सत्ताईस नक्षत्र आते हैं तथा उनकी बारह राशियाँ हैं. ये राशियाँ हें- मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुम्भ और मीन. किसी मास की जिस तिथि को सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है, उसे संक्रांति कहा जाता है. ‘सम. क्रांति’ = संक्रांति. संक्रांति का अर्थ ही है सूर्य का एक राशि से अन्य राशि में जाना. सूर्य बारह मास में बारह राशियों में चक्कर लगाता है. जिस दिन सूर्य राशियों का भ्रमण करता हुआ मकर राशि में प्रवेश करता है, उस दिन को ‘मकर-संक्रांति’ कहते हैं.
संक्रांति का एक अन्य अर्थ यह भी है – सत्य के संग क्रांति, संत के संग क्रांति. जिनके जीवन में संत की संगति नहीं उनके जीवन में कोई क्रांति नहीं संभव है. तुलसीदास ने भी कहा है कि शठ सुधरहिं सत संगति पाई. मकर संक्रांति का सूर्य की गति से भी महत्वपूर्ण सम्बन्ध होता है. सूर्य के संक्रमण में दो महत्वपूर्ण संयोग हैं – (1) उत्तरायण (2) दक्षिणायण. सूर्य छ: मास उत्तरायण में रहता है और छ: मास दक्षिणायण में. उत्तरायण काल में सूर्य उत्तर की ओर तथा दक्षिणायण-काल में सूर्य दक्षिण की ओर मुड़ता हुआ-सा दिखाई देता है. इसीलिए उत्तरायण-काल की दशा में दिन बड़ा और रात छोटी होती है. इसकी विपरीत दक्षिणायण की दशा में रात बड़ी और दिन छोटा होता है. ‘मकर-संक्रांति’ सूर्य के दक्षिणायण की ओर उन्मुख होने को कहते हैं.
Makar Sankranti Revolution With Truth मकर संक्रांति -सत्य के संग क्रांति
वस्तुतः मकर-संक्रांति सूर्य पूजा का पर्व है. सूर्य कृषि का देवता हैं . सूर्य अपने तेज से अन्न को पकाता है, समृद्ध करता है. इसीलिए उसका एक नाम ‘पूषा’ भी है. मकर-संक्रांति के दिन सूर्य-पूजा करके किसान भगवान् भास्कर के प्रति अपनी कृतज्ञता अर्पित करता है.
तमिलनाडू का पोंगल मकर-संक्रांति का पर्याय है. पंजाब में लोहड़ी का पर्व मकर-संक्रांति की पूर्व संध्या को मनाया जाता है. मकर संक्रांति को माघी भी कहा जाता है. तमिलनाडु में लोग इसे द्रविड़ सभ्यता की उपज मानते हैं. इसी वजह से द्रविड़ लोग इस पर्व को बहुत धूमधाम तरीके से मनाते हैं. चेन्नई में पोंगल ही ऐसा पर्व है जिसे हर वर्ग के लोग मनाते हैं. असम में इस पर्व को माघ बिहू के नाम से जाना जाता है.
Makar Sankranti Festival in Hindi – Punjab
यदि हम पंजाब की बात करें तो लोहड़ी वहां एक हंसी खुशी और उल्लास का अनोखा पर्व है. लोहड़ी मकर संक्रांति की पूर्व संध्या पर मनाया जाता है. संध्या बेला में लकड़ियाँ इकट्ठा कर उसे जलाई जाती है. उसमें पुरानी लकड़ी, समिधा, गुड़, काले या सफ़ेद तिल, चिडवा आदि उसमें डालते हैं. इनके जलने से वातावरण भी शुद्ध होता है. तिल और मक्की की खलों से अग्नि की पूजा की जाती है. जलती अग्नि के चारों ओर नाच –गाकर लोग इस पर्व को उल्लासपूर्वक मनाते हैं. इसी अग्नि को साक्षी मानकर यह भी संकल्प लेना चाहिए कि मैं आज से अपने दुष्कर्म, कुविचार, दुर्गुणों, दुर्व्यसनों, सारे बुरी आदतें और बुरे विचार, क्रोध, हिंसा, धूम्रपान, मद्यपान आदि अग्नि को समर्पित करता हूँ. ऐसा करने से अग्नि हमें देवत्व का प्रकाश, उम्मीद की रोशनी और आशा की ऊष्मा प्रदान करती है. यदि घर में कोई नयी वधू का आगमन या शिशु का जन्म होता है तो पंजाबी परिवार उस वर्ष लोहड़ी को विशेष रूप से मनाते हैं.
Makar Sankranti Festival in Hindi – North India
बिहार, उत्तर प्रदेश एवं अन्य उत्तर भारतीय राज्यों में मकर संक्रांति को अलग तरह से मनाया जाता है. इस अवसर पर गंगा, यमुना आदि पवित्र नदियों, तालाबों और सरोवरों में स्न्नान कर तिल, गुड़, खिचड़ी, आलू, घीया आदि का दान करते हैं. इस पर्व में दान करने का विशेष महत्व है. जिन लोगों की बेटियाँ अपने ससुराल में होती हैं उनके माता पिता उनको मिठाई, रेवड़ी, गजक, चिड़वा, सर्दी के कपड़े आदि सौगात के रूप में भेजते हैं. उत्तर भारत में नयी नवेली वधुओं की प्रथम मकर संक्रांति का विशेष महत्व होता है. नव वधू के मायके से वस्त्र, मिठाई और बर्तन आदि भेजने की प्रथा है. सधवा महिलाएं इस अवसर पर खास तौर पर चौदह वस्तुएं जैसे फल, मिठाई, कम्बल, स्वेटर, साड़ी आदि अपने परिवार या गरीब लोगों में बांटती हैं.
मकर संक्रांति का पर्व आंध्रप्रदेश में पौष मास से दो दिन पहले ही शुरू हो जाता है. अंतिम दिन गृहिणियां अपने आस-पास के सजातीय सुहागिनों को अपने यहं बुलाती हैं. उनके माथे और मंगलसूत्र पर कुमकुम और चन्दन तथा पैरों में हल्दी लगाई जाती है. गुलाल और अबीर छिड़कती हैं. आँचल में गुड़ युक्त तिल और बेर दिये जाते हैं. आयंगर वैष्णव खिचड़ी में घी और गुड़ का गोला बनाकर क्षत्रियों के घरों में देते हैं.
ऐसा माना जाता है कि शीत ऋतु में तिल, गुड़ और मेवा आदि का सेवन करने से शारीरिक बल में वृद्धि होती है और व्यक्ति निरोग बनता है.
जो व्यक्ति शीत ऋतु में तिल, गुड़, मेवा, पान, गर्म जल से स्नान और गरम भोजन नहीं करता है वह मंद भागी माना जाता है. मकर संक्रांति के अवसर पर इन चीजों के दान इसलिए किया जाता है ताकि कोई मंद भागी न रहे. इस पर्व के मूल में दान की भावना है ताकि ठण्ड के समय में कोई ऐसा व्यक्ति न बचे जिसके पास पर्याप्त गरम भोजन और गरम कपड़े न हों. सभी सुखी रहें और ठण्ड के अति प्रकोप से बच सकें.
आज लोगों में इस भावना की वृद्धि हुई है कि शीत ऋतु में अभाव में जी रहे लोगों की मदद की जाय.
यूँ तो मकर संक्रांति का शुभ स्नान करने लोग अपने आस पास के नदियों और सरोवरों में जाते हैं लेकिन इस अवसर पर तीर्थराज प्रयाग और कलकत्ता के समीप गंगासागर में स्नान करने लोग दूर दूर से आते हैं और पुण्य के भागी बनते हैं.
Makar Sankranti Festival in Hindi – Concept of Uttarayan
जैसा कि आपको पता होगा कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है. लेकिन सूर्य भी निरंतर गतिशील है. मकर रेखा से उत्तर और कर्क रेखा की ओर होनेवाली सूर्य की गति को उत्तरायण कहा जाता है. उत्तरायण की अवधि छः महीने की होती है यानी शिशिर, वसंत और ग्रीष्म ऋतु में सूर्य उत्तर दिशा में गमन करता है. इस काल में सूर्य अपने तीव्र प्रकाश से संसार के जल को सोख कर ऊष्मा प्रदान करता है.
ऐसा माना जाता है कि सूर्य के उत्तारायण होते ही देवताओं का दिन और असुरों का रात शुरू हो जाता है. इसलिए उत्तरायण के पहले दिन मनाया जानेवाला पर्व एक नयी शुरुआत और एक नयी गति का प्रतीक है. यह तेज, तप और वैराग्य का पर्व है. यह मन में अन्दर निहित अशुद्ध विचारों और नकारात्मकता को त्याग कर पावन और सकारात्मक हो जाने पर्व है.
वहीं दूसरी ओर दक्षिणायन में सूर्य की गति कर्क रेखा से दक्षिण और मकर रेखा की तरफ होता है. यह भी छः महीने का होता है और वर्षा, शरद और हेमंत तीन ऋतुएं इसमें आती हैं. इस अवधि में सूर्य और पृथ्वी के बीच के अधिक दूरी के कारण संसार का ताप कम हो जाता है.
चाहे कोई भी त्यौहार क्यों न हो वे हमारे बीच बंधुत्व, प्रेम और एकता का संचार करते हैं. ये हमारे राष्ट्रीय और सांस्कृतिक एकता के प्रतीक होते हैं.
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Jyotirmoy Sarkar says
Very informative and interesting post.
pranita says
Nice information.