हर वर्ष चौदह सितम्बर को हिंदी दिवस (Hindi Diwas) मनाया जाता है. यह दिवस हिन्दी के राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित होने का गौरव और गर्वपूर्ण दिन है. हिन्दी के प्रति अपनी निष्ठा प्रदर्शित करने का दिन है. जहाँ तक हो सके हिंदी के विकास के लिये नव संकल्प लेने का दिन है. दुनिया भर में हिंदी भाषा पुष्पित पल्लवित हो, इसके लिये चेतना जागृत करने का दिन है.
हिन्दी की वर्तमान दिशा दशा पर चर्चा करने का दिन है और हिंदी भाषा किस प्रकार ऊँचाई की नयी बुलंदियों को छुए, इस पर विचार करने का दिन है.
हिंदी की संवैधानिक स्थिति
संविधान सभा ने 14 सितम्बर 1949 को हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित किया. संविधान के अनुच्छेद 343 में लिखा गया-
‘संघ की सरकारी भाषा देवनागरी लिपि में हिन्दी होगी और संघ के सरकारी प्रयोजनों के लिए भारतीय अंकों का अन्तराष्ट्रीय रूप होगा’, किन्तु अधिनियम के खंड (2)में लिखा गया’ इस संविधान के लागू होने के समय से 15 वर्ष की अवधि तक संघ के उन सभी प्रयोजनों के लिए अंग्रेजी का प्रयोग होता रहेगा, जिसके लिए इसके लागू होने से तुरंत पूर्व होता था’ अनुच्छेद की धारा (3) में व्यवस्था की गई-‘संसद उक्त पन्द्रह वर्ष की कालावधि के पश्चात् विधि द्वारा-(क) अंग्रेजी भाषा का (अथवा) अंकों के देवनागरी रूप का ऐसे प्रयोजन के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जैसे कि ऐसी विधि में उल्लिखित हो’
इसके साथ ही अनुच्छेद (1) के अधीन संसद की कार्यवाही हिन्दी अथवा अंग्रेजी में सम्पन्न होगी. 26 जनवरी,1965 के पश्चात् संसद की कार्यवाही केवल हिन्दी (और विशेष मामलों में मातृभाषा) में ही निष्पादित होगी, बशर्ते संसद कानून बनाकर कोई अन्यथा व्यवस्था न करे.
हिंदी – उत्तर बनाम दक्षिण
आपने रामायण पढ़ी होगी. भगवान श्री राम को 14 साल का वनवास हुआ था और पांडवों को 12 वर्ष का, किन्तु हिन्दी को 15 वर्ष का वनवास मिला. पांडवों के वनवास के साथ एक वर्षीय अज्ञातवास की शर्त थी, उसी प्रकार हिन्दी के साथ भी हुआ. स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री श्री जवाहरलाल नेहरू ने हिन्दी के 15 वर्षीय वनवासी-काल में हिन्दी की पहचान कर सन 1963 में राजभाषा अधिनियम में संशोधन करवा दिया,’जब तक भारत का एक भी राज्य हिन्दी का विरोध करेगा हिन्दी को राष्ट्रभाषा के पद पर सिंहासनारूढ़ नहीं किया जाएगा.’ यह लोकतंत्र के मुँह पर तानाशाही का जोरदार तमाचा था जो माँ भारती के चेहरे को आज भी कलंकित-पीड़ित कर रहा है. सेठ गोविन्ददास ने संसद में इस संशोधन-विधेयक के विरोध में मत दिया.
हिन्दी को उसका वर्चस्व प्राप्त न हो इसके लिए संविधानेतर कार्य भी जरूरी थे. कुछ लोगों ने हिंदी विरोध के स्वर को तेज करते हुए इसे उत्तर और दक्षिण का रंग दे दिया. उन दिनों दक्षिण के कई प्रान्तों में हिंदी का जोरदार विरोध किया गया. उसी का परिणाम है कि हिंदी को आज जहाँ होना चाहिए था, आज भी हिंदी वहां नहीं पहुँच सकी है.
दूसरी ओर हिन्दी के प्रति अंग्रेजी-पत्रों और कूटनीतिज्ञों ने खुलकर व्यंग बाण चलाये. उसे हिन्दी हिन्टर लैंड, हिन्दी बैक वाटर्स,काउबेल्ट ‘इंडियाज गटर’ और टैक्नीकल बैकवड कहा जाता है. हिन्दी-भाषियों को ‘धर्मान्ध’ तथा’ फेनेटिक’ की संज्ञा दी गई है. अंग्रेजी के प्रशंसक यह यह भूल जाते हैं कि हिन्दी वैज्ञानिक और व्यवस्थित भाषा है. यह पूरी तरह से ध्वन्यात्मक है. आयर इंटरनेशनल फोनोटिक एल्फाबेट के अत्यंत समीप मानी जाती है. विश्व के सैतींस देशों के 110 विश्वविद्यालयों में इसके उच्चस्तरीय अध्ययन की व्यवस्था है.
हिंदी विरोध के नाम पर
बहुत सारे ऐसे लोग हैं जो हिन्दी की क्लिष्टता का रोना रोते हैं. पर वे भूल जाते हैं कि बोलचाल और साहित्यिक भाषा में अंतर होता है. भावाभिव्यक्ति और रसानुभूति साहित्यिक भाषा की शर्त है. यदि सरलीकरण के नाम पर हिन्दी हो जाएगी, हिन्दी-हिन्दी न रहेगी. बीसवीं सदी के अंत में हिन्दी के सरलीकरण के नाम पर हिन्दी के विद्वानों, लेखकों तथा बुद्धिजीवियों द्वारा हिन्दी का संस्कृत से मूलोच्छेदन हिन्दी को विकृत करने का कुत्सित षड्यंत्र है.
हिन्दी भाषा के प्रति – विरोध दर्शाना और हिन्दी-पक्ष से आँखें मूद लेना आज के राजनेताओं की विवशता है. हिन्दी क्षेत्र में कई मुख्यमंत्री तथा केन्द्रीय मंत्री हिन्दी के कट्टर समर्थक रहे हैं. सत्ता प्राप्ति के पश्चात वे हिन्दी को भूल गए. हिन्दी के प्रति उनकी वचनबद्धतापर उनकी राजनीतिक व्योह रचना भारी पड़ गई. वोट बैंक के लालच में अपने हिदी-प्रेम न्यौछावर कर दिया.
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हिन्दी के चापलूस स्वार्थी और भष्ट अधिकारीयों ने हिन्दी के विकास और समृधि के नाम पर अदूरदर्शिता और विवेकहीनता का परिचय दिया है. राजकीय कोष के अरबों-खरबों रूपये खर्च करके भी हिन्दी का जो भला हुआ है, वह आटे में नमक बराबर है. जब साधन रूपये खर्च करके भी हिन्दी का जो भला हुआ है, वह आते में नमक बराबर है. जब साधन भ्रष्ट होगा तो साध्य कैसे शुद्ध होगा? हिन्दी प्रचार के लिए प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये की हिन्दी पुस्तकें खरीदी जाती हैं. इस खरीद का मानदंड,’जिसे पिया चाहे वही सुहागन’ और ‘कली कलूटी से प्रेम हो गया तो वह पद्मिनी लगती है,’इसलिए कहना होगा,’इस घर को आग लग गई, घर के चिराग से’
इस राजकीय सोच का ही परिणाम है कि साहित्यिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ ने दम तोड़ दिया. ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ स्वर्ग सिधार गया. ‘आलोचना’ और साहित्य-संदेश’ अंग्रेजी की भीड़ में खो गए. साहित्यिक कृतियाँ हजार-दो हजार छपते-छपते 250 – 500 तक रह गई. बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने अंग्रेजी को कल्प-वृक्ष सिद्ध किया है.
सबका साथ हिंदी का विकास
इन सबके बाबजूद हिंदी का विकास हुआ है. इसमें कोई शक नहीं. बॉलीवुड के फिल्मों ने हिंदी को खूब बढ़ावा दिया है. हिंदी का तकनीक भी विकसित हुआ है. आज आप हिंदी में आराम से टाइपिंग कर सकते हैं. google और facebook जैसी कम्पनी ने इसके लिये यूनिकोड फॉण्ट में हिंदी में टाइपिंग की सुविधा प्रदान की है. आज इन्टरनेट पर दिन प्रतिदिन हिंदी का कंटेंट बढ़ता जा रहा है, हिंदी में रोज नए नए ब्लॉगर का उद्भव हो रहा है और हिंदी का इन्टरनेट साम्राज्य बढ़ता और फैलता जा रहा है.
हिंदी और इन्टरनेट
दूसरी ओर हिंदी का स्वरुप भी बदलता जा रहा है. अकादमिक हिंदी और real life हिंदी में निरंतर gap बढ़ता जा रहा है. आज social media पर लोग हिंदी को भी रोमन में लिखने लगे हैं. क्या यह हिंदी को एक नए और विकृत हिंदी की तरफ तो नहीं ले जा रहा है? लेकिन भाषा तो सतत प्रवाहित होती रहती है, इस प्रवाह को रोकना उचित होगा क्या? इस बात में दुबिधा नहीं कि व्यवहारिक हिंदी का तकनीकी पक्ष काफी मजबूत हुआ है और मोबाइल क्रांति के इस दौर में हिंदी ने मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है.
हिन्दी-दिवस (Hindi Diwas ) पर माँ भारती की प्रतिमा पर पुष्प चढ़ाकर, धुप-दीप जलाकर, उसका गुणगान और कीर्तन करके हम अपने को कृत-कृत्य समझते हैं, पर प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हेतु उसकी व्यावहारिक आरती उतारने के लिए दैनिक जीवन-शैली में अपनाने और सोच बनाने से हम कतराते हैं. जिस दिन यह चेतना भारत के जन-जन की आत्मा में जागेगी, उस दिन हिन्दी की प्राण प्रतिष्ठा होगी, तभी हिन्दी-दिवस (Hindi Diwas ) की सार्थकता सिद्ध होगी.
Hindi Diwas is a Festival
हिन्दी-दिवस (Hindi Diwas ) एक पर्व है. हिन्दी के हक में प्रदर्शिनी, मेले, गोष्ठी, सम्मेलन तथा समारोह आयोजन का दिन है. हिन्दी सेवियों को पुरस्कृत तथा सम्मानित करने का दिन है. सरकारी-अर्घ सरकारी कार्यालयों तथा बड़े उद्दोगों में हिन्दी-सप्ताह और हिन्दी पखवाडा द्वारा हिन्दी मोह प्रकट करने का दिवस है. हिंदी दिवस पर हमें हिंदी में काम करने और इसके उन्नयन के लिये और मजबूती से काम करने का संकल्प लेना होगा.
यह संकल्प तब पूरा हो पायेगा जब हिंदुस्तान में भी चीन और जापान की तरह विज्ञान और प्रौद्योगिकी, प्रबंधन और उच्चतर शिक्षा मंदारिन और जापानी की तरह हिंदी में दिया जाएगा. आइये सब मिलकर हिंदी को प्रबल और सर्वव्यापी बनाएँ. धन्यवाद!
Yogi Saraswat says
उसी का परिणाम है कि हिंदी को आज जहाँ होना चाहिए था, आज भी हिंदी वहां नहीं पहुँच सकी है.सही कहा पंकज जी !!
Pankaj Kumar says
धन्यवाद योगी सारस्वत जी! हिंदी सिर्फ एक भाषा नहीं, हमारी आत्मा है.
rahul pandey says
nice……written by sir ji….