हमारे भारतीय वांग्मय में कुछ तरह की चीजें सुनने और पढ़ने को मिलती हैं जो अपने आप में अनूठी थीं. प्रस्तुत पोस्ट Ramayana Bala Atibala Gyan में हम महर्षि विश्वामित्र द्वारा भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी को बला और अतिबला विद्याएँ सीखाने से संबंधित है.
Bala and Atibala Gyan by Muni Vishwamitra
बला-अतिबला विद्याएँ
जैसा कि आपको पता होगा कि महर्षि विश्वामित्र को अस्त्र विद्या में कितना प्रावीण्य था. उनके कुलगुरु वशिष्ठ जी जानते थे कि इस विद्या को प्राप्त करने के बाद उसका कितना प्रभावशाली परिणाम होगा. यही सारी बातें बताकर महर्षि वशिष्ठ ने राम और लक्ष्मण को उनके साथ भेजने के लिए महाराजा दशरथ को प्रेरित किया. उससे दशरथ के मन का संशय और भय दूर होने में मदद मिली और वे विश्वामित्र के साथ राम को भेजने के लिए तैयार हो गए.
उन्होंने लक्ष्मण के साथ राम को बुलावा भेजा. कौशल्या माता और दशरथ ने उन्हें भेजने से पूर्व मंगलाचार पूरा किया. कुलगुरू वशिष्ठ जी ने मंगलसूचक वेदमंत्रों का उच्चारण करते हुए उन्हें अभिमंत्रित किया. महाराजा दशरथ ने दोनों ही पुत्रों के मस्तक बड़े प्रेम से चूम लिये और दोनों को ही विश्वामित्र को सौंप दिया.
राम का जन्म ही दुष्ट राक्षसों का दमन करने के लिए हुआ था. अत: विश्वामित्रजी के साथ उसका तो जाना अवश्यंभावी ही था. वह न केवल विश्वामित्र के लिए या राम की कीर्ति के लिए जरूरी था, अपितु वह समय की माँग थी, जरूरत थी. वह संसार की, सृष्टि की आवश्यकता थी; प्रकृति उसी की मानो प्रतीक्षा कर रही थी. अयोध्या की सीमा के बाहर जैसे ही राम ने पदन्यास किया, सचमुच सारा वातावरण ही बदल गया. सुखद हवाएँ चलने लगीं और राम-लक्ष्मण पर आकाश से पुष्पों की वर्षा होने लगी. देवताओं के शंखों और दुन्दुभियों की घन गंभीर अनुगूंज पूरे वातावरण में व्याप्त हो गई. निसर्ग ने मानो विश्वामित्र के साथ राम-लक्ष्मण के जाने का स्वागत किया, शुभ शकुनों की बौछार कर दी. लगने लगा, महर्षि की कार्यसिद्धि अब अधिक दूर नहीं है.
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चलते चलते अब अयोध्या पीछे छूट गई. दो तीन मील तक महर्षि विश्वामित्रजी के पीछे-पीछे राम-लक्ष्मण चलने लगे. सरयू नदी का दक्षिण किनारा आ गया. तब महर्षि ने राम से कहा- राम !आचमन करो. समय का अपव्यय या अतिक्रमण करना ठीक नहीं है. बला और अतिबला नाम से प्रसिद्ध मन्त्रों को तुम आत्मसात करो.
महर्षि विश्वामित्रजी के साथ राम को भेजने के लिए समझाते हुए वशिष्ठजी ने विश्वामित्र की आश्चर्यजनक अस्त्र विद्या का विस्तृत विवरण महाराज दशरथ को सुनाया था. तत्कालीन प्रसिद्ध व प्रचलित अस्त्रविद्द्या के विश्वामित्र अच्छे जानकार तो थे ही, पर किसी भी नवीन अस्त्र का निर्माण करने की अद्भुत सामर्थ्य उनके पास थी.
राम ने यह मनुष्य जन्म क्यों लिया या उसे क्यों लेना पड़ा. शायद यह तथ्य त्रिकालज्ञान वाले विश्वामित्र जानते थे. दशरथ पुत्र राम का जन्म किसलिए हुआ, राम के रूप में अपरोक्ष रूप से किसने अवतार लिया और वह मुख्यतः किस उद्देश्य से लिया. इन सब बातों से विश्वामित्र परिचित थे. इनका ठीक से ध्यान रखते हुए ही उन्होंने महाराजा दशरथ से रामचन्द्र की माँग की थी. इस राजकुमार को आगे चलकर रावण जैसे पराक्रमी और अजेय राक्षस से युद्ध करना होगा. इसे मानते हुए वे राम को अधिक शक्तिशाली और बलशाली बनाना चाहते थे.
एक तरफ रावण और दूसरी ओर व्यक्तिगत परिधि के शत्रु इन दोनों मोर्चों पर यदि राम को युद्ध करना पड़ा तो केवल शस्त्रविद्द्याएँ ही नहीं, अपितु मानसिक और वैचारिक दृष्टि से भी समर्थ, शक्तिशाली होना उसके लिए आवश्यक था. इस दृष्टि से उपयोगी सिद्ध होने वाली अस्त्र विद्द्या का उपदेश राम को देने के लिए विश्वामित्र उत्सुक हुए. बला और अतिबला विद्द्याओं का महत्व समझाते हुए विश्वामित्र कहने लगे-
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अर्थात् हे राम ! बला और अतिबला विद्द्याएँ प्राप्त करने पर थकान या ज्वर कभी नहीं होगा. तुम्हारे स्वरूप में कभी कोई अंतर नहीं आएगा और नींद में या असावधान रहने पर भी कोई राक्षस तुम्हारे पास फटक नहीं सकेगा. बाहुबल में तुमसे समानता रखनेवाला आज पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति नहीं है. इस विद्द्या के कारण तीनों लोकों में भी कोई तुम्हारी बराबरी नहीं कर सकेगा.
हे राघव ! इन विद्द्याओं का जब तुम पठन करने लगोगे तो भाग्य, सहजता, ज्ञान, ऐहिक विषय और प्रत्युत्पन्नमति इस सारे संसार में तुम्हारे समकक्ष कोई भी नहीं रहेगा. हे राम! बला और अतिबला विद्द्याओं से संपन्न होने पर तुम सभी दृष्टियों से अतुलनीय हो जाओगे ये दोनों विद्दाएँ संसार के सभी प्रकार के ज्ञान का उद्गम स्थान हैं.
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हे पुरूषोत्तम राम, तुम्हें भूख और प्यास कभी नहीं सताएगी. हे राघव ये दोनों विद्दाएँ संसार में तुम्हारी कीर्ति को अमर कर देंगी. ये तेजोमय विद्दाएँ ब्रह्मा की कन्याएँ हैं. हे काकुत्स्थ, तुम ही इन विद्द्याओं को प्राप्त करने के लिए योग्य व समर्थ हो, क्योंकि इनको स्वीकार कर इन्हें धारण करने के लिए जो गुण और योग्यताएँ होनी चाहिए, वे सब तुम्हारे पास हैं. तपस्या से समन्वित होने पर ये विद्द्याएँ तुम्हारे लिए फल देनेवाली सिद्ध होंगी.
विश्वामित्र इन विद्द्याओं को जानते ही थे, तपस्या से उन्हें सिद्ध भी किया था. फिर राम की क्या जरूरत पड़ी. यज्ञ के लिए दीक्षित होने पर यज्ञ समाप्ति तक वे आवेश या क्रोध में राक्षसों के विनाश के लिए इन मन्त्रों का उच्चारण कैसे कर सकते थे? बस इसीलिए राम में ही उनका राम था. यज्ञ की रक्षा तो तात्कालिक निमित्त या कारण था. रावण वध के लिए साक्षात् विष्णु ने राम के रूप में अवतार लिया है. इस बात को वे खूब जानते थे. इसीलिए राम को वे अस्त्रविद्द्या में निपुण बनाना चाहते थे, यही महर्षि की माँग का निहितार्थ है. राक्षसों के साथ युद्ध करना सामान्य नहीं था, क्योंकि वे मायावी रूप लेकर लंबे समय तक युद्ध करते रहते थे. ऐसे युद्धों में राम अजेय रहें, इसीलिए यात्रा के प्रारंभ में ही महर्षि बला और अतिबला विद्दाओं का मन्त्र-प्रयोग राम को सिखाना चाह रहे थे.
बला-अतिबला एक सिद्धमन्त्र है. मंत्रशास्त्र में इन दोनों विद्याओं के कार्य इस प्रकार बताए गए हैं.
उत्साह और बल की वृद्धि, शत्रु के श्स्त्रघात को सहन करने की क्षमता तथा क्षुधा एवं तृष्णा से बाधित न होने के गुणों के कारण ही इस विद्द्या को ‘बला’ कहा गया है. शत्रु का मन, शरीर, कर्म और दृष्टि को स्खलित करने तथा अपने शस्त्रादि प्रयोगों को अचूक सिद्ध करने की सामर्थ्य के कारण इसे ‘अतिबला’ कहा गया है.
उपर्युक्त विवरण से बला और अतिबला विद्याओं का महत्व सहज ही समझ में आ सकता है. अयोध्या से बाहर निकलते ही सबसे पहले महर्षि जी ने राम को इस विद्द्या का उपदेश क्यों दिया होगा, इसकी आसानी से कल्पना की जा सकती है. यह विद्द्या जिसके वश में हो, उसे भूख-प्यास तो सता ही नहीं सकती है, भले ही युद्ध कितने ही दिन क्यों न चले. युद्ध किसी भी ऋतु में हो, पृथ्वी पर हो या किसी भी लोक में हो, शत्रु कोई भी हो, यह विद्द्या जिसने सिद्ध की हो, वह कभी पराजित नहीं हो सकेगा, उसे कोई प्रभूत नहीं कर सकता. भूख और प्यास जिसने जीत ली, उसने संसार जीत लिया.
मनुष्य के ये दो ही सबसे बड़े शत्रु हैं, इनके लिए ही तो उसे सारे पाप करने पड़ सकते हैं.
राम के अवतार रूप में कार्यों के प्रारंभ में ही महर्षि द्वारा उन्हें बला-अतिबला मन्त्र समुदाय का उपदेश देकर समर्थ बनाने, उनकी लक्ष्यवेधी दूरदृष्टि का परिचय कराती है.
इस प्रकार बला और अतिबला विद्याओं को प्राप्त कर राम और लक्ष्मण ने असुरों का संहार किया और रामराज्य की स्थापना की. आज जरुरत है कि इस तरह के प्राचीन ज्ञान और मंत्र शक्ति पर अनुसन्धान कर और तथ्यों को प्रकाश में लाया जाय.
सुंदर पोस्ट!
bala and atibala ka mantra chahiye