जय मातेश्वरी करणी माता मंदिर देशनोक चूहों की देवी के नाम से विश्व विख्यात हैं । प्रस्तुत पोस्ट Karni Mata Rat Temple Deshnoke Rajasthan में हम इस मंदिर के बारे में विस्तार से जानेंगे ।
मातेश्वरी करणी माता जन्मोत्सव पर केन्द्रित विशेष आलेख
संपूर्ण हिन्दू वर्ग के लिए माताजी की पूजा अर्चना के प्रतीक नवरात्रि चल रही हैं। इन नौ दिन में मां के विभिन्न नौ रूपों की पूजा की जाती हैं। नवरात्रि पर्व के रूप मे मनाया जा रहा जो देवी श्रध्दा भावना व आराधना पर केन्द्रित हैं। इसी कड़ी में आज आप चूहों की देवी के नाम से विश्व प्रसिद्ध मंदिर मातेश्वरी करणी माताजी देशनोक, राजस्थान की बारे में जानेंगे ।
राजस्थान भारत का एक ऐसा राज्य जो जितना खूबसूरत है उतना ही विचित्र भी। कहीं रेत के बड़े-बड़े अस्थायी पहाड़ हैं तो कहीं तालाब की सुंदरता। शौर्य और परंपरा की गाथाओं से सजती शाम जहाँ है तो वहीं आराधना का जलसा दिखते आठों पहर भी रेत की तरह ही फैले हैं। ऐसी ही तिलिस्मी दुनिया से दिखते इस मरूस्थल में आश्चर्य और कौतूहल का विषय लिए बसा देशनोक कस्बा।
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सुनहरी रेत के बीच अपनी आभा लिए दमक रहा यह स्थान वैसे तो छोटा ही है पर इसकी महत्ता व ख्याति विदेश तक फैली हुई है। रेत के दामन में सुनहरे संगमरमर से गढ़ा एक मंदिर जिसकी नक्काशी यदि ऊपरी दिखावे से आकर्षित करने की बात को चरितार्थ करती है तो भीतर की अलौकिकता अच्छी सीरत का उदाहरण पेश करती हैं। दैवीय शक्ति को समर्पित इस स्थान के कुछ रहस्य आज भी बरकरार हैं जो किसी के लिए श्रद्धा तो किसी के लिए खोज का विषय बने हुए हैं। लोग इस मंदिर में आते तो ‘करणी माता के दर्शन के लिए हैं पर साथ ही नजरें खोजती हैं सफेद चूहे को।
‘चूहे वाला मंदिर’ के नाम से भी प्रसिद्ध यह मंदिर बीकानेर से कुछ ही दूरी पर देशनोक नामक स्थान पर बना हुआ है। आस्था व विज्ञान का तिलिस्मी तालमेल लिए अपने सीने में राज छुपाए बैठे इस मंदिर की यह पहली विशेषता है। इस मंदिर में भक्तों से ज्यादा काले चूहे नजर आते हैं और इनकी खासी तादाद में अगर कहीं सफेद चूहा दिख जाए तो समझें कि मनोकामना पूरी हो जाएगी। यही यहाँ की मान्यता भी हैं।
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वैसे यहाँ चूहों को काबा कहा जाता है और इन काबाओं को बाकायदा दूध, लड्डू आदि भक्तों के द्वारा परोसा भी जाता है। असंख्य चूहों से पटे इस मंदिर से बाहर कदम रखते ही एक भी चूहा नजर नहीं आता और न ही मंदिर के भीतर कभी बिल्ली प्रवेश करती है।
कहा तो यह भी जाता है कि जब प्लेग जैसी बीमारी ने अपना आतंक दिखाया था तब भी यह मंदिर ही नहीं बल्कि पूरा देशनोक इस बीमारी से महफूज था।
बीकानेर से करीब 30 किमी दूर बने इस मंदिर को 15 वीं शताब्दी में राजपूत राजाओं ने बनवाया था। माना जाता है कि देवी दुर्गा ने राजस्थान में चारण जाति के परिवार में एक कन्या के रूप में जन्म लिया और फिर अपनी शक्तियों से सभी का हित करते हुए जोधपुर और बीकानेर पर शासन करने वाले राठौड़ राजाओं की आराध्य बनी।
1387 में जोधपुर के एक गाँव में जन्मी इस कन्या का नाम वैसे तो रिघुबाई था, पर जनकल्याण के कार्यों के कारण करणी माता के नाम से इन्हें पूजा जाने लगा। और यह नाम इन्हें मात्र 6 साल की उम्र में ही उनके चमत्कारों व जनहित में किए कार्यों से प्रभावित होकर ग्रामीणों ने दिया था।
वैसे तो यहाँ साल भर श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है पर साल में दो बार यानी नवरात्रि में यहाँ विशेष मेला भी लगता है जिसमें देश भर के भक्त देवी दर्शन के लिए आते हैं। वैसे यह मंदिर करणी माता के अंतर्ध्यान होने के बाद बनवाया गया था।
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किंवदंती के अनुसार करणी माता के सौतेले पुत्र की कुएँ में गिरने से मृत्यु होने पर उन्होंने यमराज से बेटे को जीवित करने की माँग की। यमराज ने करणी माता के आग्रह पर उनके पुत्र को जीवित तो कर दिया पर चूहे के रूप में। तब से ही यह माना जाता है कि करणी माता के वंशज मृत्युपर्यंत चूहे बनकर जन्म लेते हैं और देशनोक के इस मंदिर में स्थान पाते हैं।
यह तो बात हुई मान्यताओं की पर इतिहास पर नजर दौड़ाएँ तो भी करणीमाता का अपना स्थान राजस्थान की गाथाओं में मिलता है। करणी माता ने अपने जीवनकाल में कई राजपूत राजाओं के हित की बात की। इतिहास के पन्नों पर नजर डालें तो देशनोक का करणी माता मंदिर बीकानेर के राजा गंगासिंह ने बनवाया था। संगमरमर पर की गई नक्काशी और आकर्षित करती आकृतियों के अलावा चाँदी के दरवाजे मंदिर की शोभा और भी बढ़ा देते हैं। वैसे बीकानेर के बसने से पहले भी करणी माता को इतिहास ने अपने पन्नों पर स्थान दिया है।
1453 में राव जोधा ने अजमेर, मेड़ता और मंडोर पर चढ़ाई करने से पूर्व करणी माता से आशीर्वाद लेने की बात सामने आती है। इसके बाद 1457 में राव जोधा ने जोधपुर के एक किले की नींव भी करणी माता से ही रखवाई थी।
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बात यहीं नहीं खत्म होती राजनीति और एकता की बात भी करणी माता की कथाओं के माध्यम से जानने को मिलती है। उन दिनों भाटी और राठौड़ राजवंशों के संबंध कुछ ठीक नहीं थे। ऐसे में राव जोधा के पाँचवें पुत्र राव बीका का विवाह पुंगल के भाटी राजा राव शेखा की पुत्री रंगकंवर से करवाकर करणी माता ने दो राज्यों को मित्र बना दिया। पश्चात 1485 में राव बीका के आग्रह पर बीकानेर के किले की नींव भी करणी माता ने ही रखी। इसके अलावा इतिहास के किसी खजाने में यह जानकारी भी मिलती है कि जैसलमेर के राजा ने भी करणी माता को अपने महल में आदर दिया था।
बात चाहे जो भी हो, किंवदंती चाहे कुछ भी कहे, इतिहास की पंक्तियों में जो भी जानकारी मिले यह तो साफ जाहिर है कि इस शक्ति को राजस्थान ही नहीं बल्कि हर आस्थावान व्यक्ति नमन करता है। विश्व प्रसिद्ध मां करणी मंदिर दरबार में मातेश्वरी के जन्मोत्सव पर आस्था का सैलाब उमड़ रहा हैं साथ नवरात्रि पर्व की श्रध्दा भक्ति देखते ही बनती हैं। नवरात्रि के नौ दिन तक माता जी आराधना व भक्ति भाव से पूजा अर्चना मे लगे हुए हैं। मातेश्वरी करणी माता देशनोक सबकी मनोकामना पूरी करे ऐसी हार्दिक शुभकामनाएं ।
यह आलेख सूबेदार रावत गर्ग उण्डू जी ने भेजी है. वे सहायक उपानिरीक्षक – रक्षा सेवाऐं व स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी हैं. वे ग्राम – श्री गर्गवास राजबेरा, तहसील – शिव, जिला – बाड़मेर, पिन- 344701 राजस्थान के रहनेवाले हैं। टीम बेहतरलाइफ उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है ।
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