श्री चेतन भगत देश के जाने -माने लेखक, स्तंभकार और युवाओं के प्रेरणा स्रोत रहे हैं. इनके उपन्यास One Night In Call Center, Two States आदि काफी चर्चित रहा है. उनके द्वारा HT Leadership Summit में दिया गया भाषण को यहाँ पोस्ट किया जा रहा है. आशा है इसके द्वारा युवा सन्देश ग्रहण करेंगे.

दिल्ली, 21 नवंबर, 2008
नमस्कार देवियो और सज्जनो ! इस leadership summit में बोलने का मौका देने के लिए आप सभी का धन्यवाद ! यह मेरे लिए अपनी तरह का पहला मौका है।
मैं कोई नेता नहीं हूँ । मैं एक दृढ स्वपनदर्शी हूँ और चाहता हूँ कि मेरे सपने पूरे हों । जैसा कि मेरे कई सपने पूरे हो चुके हैं तो अब मेरी यह ख्वाहिश है कि अब मेरे वे सपने पूरे हों जो मैंने अपने देश के लिए देखा है । और यही वजह है कि मैं आज यहाँ आपके बीच हूँ।
इससे पहले कि हम दुनिया के साथ एकाकार हों, हमें अपने लोगों के साथ एक होना पड़ेगा । यदि हम अपने घर को सही कर लेते हैं तो हमें दुनिया को सही करने की कोई जरुरत नहीं होगी, वह तो अपने आप हो जायेगा । यह दुनिया हमारे साथ एकाकार होना चाहेगा । हर कोई खुश, अमीर, संपन्न पड़ोसियों के साथ दोस्ती करना चाहता है । कोई भी विवादों के साथ लिप्त परिवार नहीं चाहता है ।
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अपने देश में बहुत -सी चीजें गलत हैं । कई तरह के मतभेद हैं । सवाल यह नहीं है कि इसके लिए कौन दोषी हैं । सवाल यह है कि हम इसे कैसे ठीक करते हैं? क्योंकि कुछ भी बड़ा करने के लिए पहले आप सबको एक होना पड़ेगा । दो पीढ़ी पहले हमारे पूर्वज स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए एक हुए थे और उसमें उन्हें जीत मिली । ऐसा नहीं था कि उस समय विवाद नहीं थे । धर्म, जाति, समुदाय से जुड़ी समस्याएँ सदियों से अस्तित्व में हैं । लेकिन गांधी जी सबको एक बड़े काम के लिए साथ लेकर आये – और वह था देश को आज़ाद करवाना ।
आज हमारे समक्ष एक और बड़ा कारण है – भारत को दुनिया में अपनी सही जगह दिलवाना । यहाँ की युवा पीढ़ी जिस तरह का भारत देखना चाहता है वैसे भारत का निर्माण करना । भारत को एक समृद्ध, विकसित देश बनाना, जहां न केवल देशभक्ति की भावना हो बल्कि लोगों का जीवन स्तर भी ऊँचा हो । जहां कोई भी प्रतिभावान ,लगनशील और मेहनती व्यक्ति अकेले इसे करने और पाने का माद्दा रखता हो । जहाँ कोई किसी से न पूछे कि तुम कहाँ से आए हो, और कहाँ जा रहे हो । हम सभी भारत के उस रूप को जानते हैं जैसा कि हमने भारत का सपना देखा है ।
इसके लिए बहुत कुछ किया जाना आवश्यक है, और यह सिर्फ राजनेताओं को दोष देने से नहीं होगा । लोकतंत्र के लिए, हम नेताओं का चुनाव करते हैं । अगर हमारी सोच बदलती है, हमारा वोट देने का तरीका बदलेगा और वैसे ही हमारे राजनेता भी बदल जायेंगे । और चूँकि हमने एक राष्ट्र का निर्माण किया है जो पढ़ा लिखा नहीं था, खूब पढो, और मेरा मानना है कि इससे लोगों की सोच को बदला जा सकता है ।
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मेरे विचार में ३ मुख्य क्षेत्र हैं जहाँ हमें हमारी सोच बदलने की जरुरत है – इसमें नेतागण भी शामिल हैं । और मैं सिर्फ नहीं कह रहा हूँ हमें ऐसा करने की जरूरत है क्योंकि यह नैतिक रूप से /नैतिकता की दृष्टि से सही है या क्योंकि यह एक सम्मेलन में बोलना अच्छा लगता है । हमें ऐसा करने की जरूरत है क्योंकि यह हमारी विचार दृष्टि को प्रोत्साहित करती है । इन तीन क्षेत्र लिए मतभेद की राजनीति को समानता की राजनीति में बदल रहे हैं, elitism उच्छिष्टवर्गवाद और अंग्रेजी की भूमिका पर नीचे देख रहे है ।
मतभेद की राजनीति को समानता की राजनीति में बदलने के लिए सर्व प्रथम मानसिकता परिवर्तन की आवश्यकता है । मैं भारत में युवा लोगों का अध्ययन पिछले पांच सालों से लगातार करता आ रहा हूँ, न सिर्फ बड़े शहरों में बल्कि पूरे भारत में ।
ये युवा हमारे जनसंख्या का एक बड़ा भाग है-एक बड़ा वोट बैंक हैं । फिर भी, राजनेता गण इस चीज को क्यों पिच नहीं कर रहे हैं कि ये युवा वर्ग क्या देख रहे हैं? यह भी बॉलीवुडके पुराने स्कूल जहां उन्हें लगता है कि आइटम नंबर, बड़े बजट और आजमाए फ़ार्मुलों से अलग कुछ काम है ही नहीं है जबकि वर्ष की सबसे बड़ी हिट रॉक ऑन और जाने तू हो सकता है । हाँ, समय बदल गया है ।
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यहाँ आज भी हमारे राजनेता क्या पिच कर रहे हैं – पुराने जमाने की देशभक्ति, परंपराओं का बचाव, समुदायों, जाति और धर्म का पथ प्रदर्शन । जबकि यहाँ का युवा क्या चाहता है – बेहतर कॉलेज, बेहतर रोजगार, बेहतर रोल मॉडल । प्रतिभावान छात्रों की तुलना में , अच्छे कॉलेज में सीटों की संख्या बहुत सीमित हैं । यही दशा अच्छी नौकरी की भी है । ये जरूरतें सबसे बड़ी समानता हैं कि जिसे हम सभी शेयर कर रहे हैं । हम सभी प्रगति चाहते हैं। मैं मौजूदा नेताओं के राजनीतिक रणनीतियों बनाम नए मतदाताओं के लिए क्या काम किया जाना चाहिए, में एक बड़ा गैप देख रहा हूँ ।
मुझे लगता है कि व्यापक आधारित बुनियादी ढांचे और आर्थिक विकास युवा पीढ़ी की जरूरतों को पूरा करेगा। यह एक आसान लक्ष्य नहीं है -लेकिन यह एक बड़ा कारण है जो हमें एकजुट कर सकता है । आज एक डायनामिक नेता जो इन कारणों को अपनाकर उसपर काम करता है वह किसी भी क्षेत्रीय राजनीतिज्ञ से अधिक सफलता प्राप्त कर सकता है। और ये स्लॉट इनका इंतज़ार कर रही है।
मतभेद की राजनीति को समानता की राजनीति में बदलने के लिए एक और आवश्यक पहलू एक मजबूत उदारवादी आवाजकी जरुरत है । जब कोई हमें विभाजित करने की कोशिश करता है,तो उसी समुदाई से उनके खिलाफ आवाज़ बुलंद करनेवाला कोई जरुर होना चाहिए । यदि एक व्यक्ति कह रहा है कि गैर मराठियों पर हमला किया जाना चाहिए, तो कुछ मराठियोंको ही यह कहते हुए खड़ा होना चाहिए कि देखो अमुक व्यक्ति बकवास कर रहा है ।
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यदि एक मुस्लिम आतंकवादी हमले करता है, दूसरे मुसलमानों को इसके खिलाफ बोलना चाहिए और इसकी निंदा करनी चाहिए ; जैसा की हिंदु लोग इसकी निंदा करेंगें । यह उदारवादी आवाज कहीं भी नजर नहीं आता है जो कि देश को एक साथ रखने के लिए महत्वपूर्ण है। और युवा जन इसे एक साथ रखना चाहते हैं, यह पीढ़ी अपने आप को इस रूप में बनाना चाहते हैं जो भारतको आगे ले गया, ऐसे रूप में कदापि नहीं जिसने देश को टुकड़ों में बाँट दिया ।
मुझे लोगों को उपदेश देने से नफरत है, लेकिन मीडिया की इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका है। मैं मानता हूँ कि मीडिया एक व्यापार है और टीआरपी सबसे ऊपर है । हालांकि हर व्यवसाय में एक नैतिकता होती है । डॉक्टरों बीमार लोगों से पैसा बनाते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे लोगों को बीमार रखें और उन्हें चंगा न होने दें । यदि आपको एक उदारवादी आवाज मिल जाए, उसे सबके समक्ष लायें अन्यथा जल्द ही एक विभाजनकारी आवाज उस पर हाबी हो जायेगा। और बहस में ऐसे का पक्ष नहीं लें । कभी भी हास्यास्पद चीजों को नहीं मानें । बड़े मुद्दों पर ध्यान दें ।
दूसरी मानसिकता जो हमें बदलने की जरूरत है वह है – Elitism उच्छिष्टवर्गवाद । मेरे बचपन के दिनों में, कॉलेज में, पेशेवर और व्यावसायिक जीवन में और अब प्रकाशन और मनोरंजन जगत में, मैंने लोगों में elitism (उच्छिष्टवर्गवाद) का एक अजीब भारतीय आदत देखा है। शायद भारत में कुछ भी प्राप्त करना कठिन है । लेकिन जैसे ही कोई व्यक्ति जरा -सा सफल, शिक्षित, अमीर, प्रसिद्ध, प्रतिभाशाली या विकसित होता है, वह खुद को आम लोगों से भिन्न समझने लगता है । वे उस जगह जाना शुरू कर देतें है जहाँ आम लोगों को हीन भाव से देखा जाता है ।
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इसका मतलब यह है कि हमारे सबसे योग्य, अनुभवी, और प्रभावशाली लोगों का एक बड़ा हिस्सा अपने ही जैसे वातानुकूलित जीवनजीने वाले लोगों के बीच रहना पसंद करते हैं । अनुभवहीन लोग जो मूर्ख राजनेताओं का चुनाव करते हैं – कि सभी भारतीय समस्याओं का आधार रेखा है, और वे इसके लिए कुछ नहीं करना चाहते हैं। लेकिन मुझे एक बात बताओ , अगर आम लोगों की सोच को बदलना है, तो इसे कौन बदलने के लिए जा रहा है? भारतीय समस्याओं का समाधान पर चर्चा करने से क्या फायदा अगर आम आदमी से जुड़ी समस्याओ का अन्तः क्रय नहीं होता है । सिर्फ इसलिए कि समान विचारधारा वाले, बुद्धिमान लोगों के साथ रहना अच्छा लगता है ? ऐसी बौद्धिकता का क्या उपयोग है?
अगर आप टीवी खोलें सत्तर प्रतिशत बार आपको दिल्ली, मुंबई और बंगलूर दिखाई देगा । कारण यह है कि मीडिया इन शहरों में केंद्रित है । हालांकि, भारत का नब्बे प्रतिशत यह नहीं है । जब तक हम इन लोगों का ठीक से प्रतिनिधित्व नहीं करेंगें , कैसे ये लोग भी कभी हमारे साथ आ पाएंगे ?
पुनः, मैं इन बिंदुओं को एक नैतिक अपील के रूप में नहीं कह रहा हूँ । मैं सोचता हूँ कि भारत को समझना और समावेशी बनकर काम करना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। और मुझे विश्वास है, यह आपसे किसी भीतर की शीतलता या प्रचलन को आपसे दूर लेकर नहीं जाएगी ।
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मुझे देखो, मैं एक ढेर नुमा इंगलिश राइटर हूँ जिसका भारत में आविष्कार हुआ है। मेरी किताबें रेलवे स्टेशनों और बिग बाजार में अट्टा पर बिकते मिल जायेंगें। मेरा एक भारतीय प्रकाशक है जिसकी दूकान दरियागंज की गलियों में है । मेरे पाठक मेरे लिए कूल और अदभुत का सबसे ज्यादा टैग मेरे लिए ऑरकुट पर करते हैं । मुझे लगता है कि यह जानकारी रखना कि इंदौर और रायपुर की गलियों में लोग मेरे बारे में क्या सोचते है न कि दक्षिण मुंबई में रैंप पर कौन चल रहा है ।
आप ने अपनी अगली छुट्टी विदेश में बिताने की योजना बनाई है लेकिन क्या बाद में वापस आकर आपने क्या अपने आस पास के किसी छोटे गाँव का दौरा किया ? क्या आप अपने बच्चों को असली भारतकी तस्वीर दिखाई। क्या आपको नहीं लगता कि उन्हें ये सारी चीजें जाननी चाहिए क्योंकि वे जैसे ही बड़े होंगे उन्हें इन्हीं लोगो के बीच में जाना होगा । हाँ, मैं लोगों को कहना चाहता हूँ कि श्रेष्टता वाद को छोड़ कर समग्रता की संस्कृति का विकास करना चाहिए । यदि आप शिक्षित हैं, तो दूसरों को शिक्षित करें । यदि आपकी शैली अच्छी है तो दूसरों की शैली में सुधार करें न कि उसे घटिया करार दें ।
अंतिम पहलू जहां हमें अपनी सोच बदलने की जरूरत है वह है अंग्रेजी के प्रति हमारा रवैया। हमें अंग्रेजी को इस तरह से अपनाना चाहिए जिस तरह से हमने इसे पहले कभी नहीं अपनाया । अंग्रेजी को न कि इंग्लैंड को । यह मेरे पिछले एक विचार से विरोधाभासी लग सकता है, लेकिन मैं अंग्रेजी को कक्षाओं में सीमित करने के बारे में बात नहीं कर रहा हूँ, लेकिन वास्तव में इसे जमीनी स्तर पर ले जा रही है । अंग्रेजी और हिन्दी साथ साथ रह सकते हैं । हिन्दी माँ है और अंग्रेजी पत्नी है दोनों से प्रेम रखना संभव है ।
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छोटे शहरों, जिलों और गांवों में भी अंग्रेजी के प्रसार की जरूरत है । भारत में पहले से ही इतने सारे भारतीय अंग्रेजी बोलते हैं और हमें चीन की तरह बाहरी इंग्लिश शिक्षकों की जरुरत नहीं है । लेकिन हम देशभक्ति को अपने कौशल से तुलना न कर असली दुनिया की प्रतिस्पर्धा के लिए भी तैयार रहना चाहिए ।
यदि आप एक स्कूल वैसे जगह खोलना चाह रहे हैं जहाँ कुछ भी नहीं है तो आप वहां ऐसा कुछ क्यों नहीं करते जो वहां के लोगों कि मदद करे । मैं एक ग्रामीण को हिन्दी में ज्यामिति और भौतिकी सिखा सकता हूँ , लेकिन जब वह जॉब ढूढ़ ने जाता है तो उसे वह शिक्षा बेकार लगता है । अंग्रेजी उसे वह नौकरी दिला सकती है । हाँ, मैं जानता हूँ कि कुछ लोग कह सकते हैं कि ऐसे में हिन्दी और हमारे पारंपरिक संस्कृतियों का क्या होगा ?
मैं इन लोगों को हैं पूछना चाहता हूँ कि पहले अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों के बाहर निकालो और फिर बात करो । यदि आप छोटे शहरों का रुख करें तो पाएंगे कि अंग्रेजीके प्रति एक खास आकर्षण है । वहाँ कुछइस तरह के चीजों की विशेष मांग हैजो लोगों के जीवन में सुधार कर सके ।
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मेरा इस भाषा से कोई विशेष लगाव नहीं है लेकिन सत्य यह है कि यह आज की दुनिया में यही काम करता है । और अगर अधिक अंग्रेजी देश भर में समृद्धि और समानता का भाव फ़ैलाने में मदद करता है, मुझे विश्वास है हम हमारी संस्कृति की रक्षा एक राष्ट्र कि सोच से कही बेहतर तरीके से कर सकते हैं ।
हम सभी भारत को बेहतर बनाने को लेकर जोश में हैं, अतः हम हमेशा के लिए इस पर चर्चा कर सकते हैं ।लेकिन आज मैं सिर्फ तीन विचारों के साथ आपसे विदा लेना चाहूँगा – समानता की राजनीति, कम श्रेष्टतावाद elitism और अंग्रेजी को बढ़ावा पर आम सहमति बनाने की जरूरत ।अगर आप मुझसे सहमत है , कृपया अपनी क्षमताके अनुरूप इसके लिए प्रयास करें । यह सिर्फ अपने सभी दोस्तों के साथ एक चर्चा हो सकती है, या एक व्यापक तरीके से इन विचारों का प्रसार, यदि आपमें ऐसा करने के लिए शक्ति और साधन है तो। तथ्य यह है कि हम इस अद्भुत summit में बैठे हैं, इसका मतलब है कि हमारा देश हमारे प्रति दया का भाव रखता है । चलो देखते हैं कि हम अपने देश को क्या वापस दे सकते हैं ।
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नोट : यह श्री चेतन भगत द्वारा दिए गए स्पीच का हिंदी रूपांतर है, पूरी कोशिश कि गयी है कि भाव एक जैसा बना रहे , किसी भी तरह की त्रुटि के लिए क्षमा चाहूँगा । यदि श्री चेतन भगत से संबंधित कोई अन्य जानकारी आपके पास है तो हमारे साथ शेयर करें । आप अपना बहुमूल्य सुझाव हमें इस ईमेल पर भेजें :- [email protected]
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