चंद्रशेखर आज़ाद Chandrashekhar Azad Biography in Hindi
मजिस्ट्रेट ने ज़ोर से चिल्लाते हुए पूछा, ‘ नाम क्या है तुम्हारा?’
“आज़ाद”
“पिता का नाम”
“स्वाधीन”
“निवास”
“जेलखाना”
मजिस्ट्रेट ने उस 15 वर्षीय युवक को 15 बेंत लगाने के हुक्म दिया. हर बेंत की मार के साथ मुंह से महात्मा गाँधी की जय का नारा लगाता रहा वह युवक. वाराणसी जेल की दीवारें उसकी आवाज से गूंजती रही. ऐसा करनेवाला और कोई दूसरा नहीं, वे थे क्रांतिवीर देशभक्त – चंद्रशेखर आज़ाद.
चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 ई. को मध्य प्रदेश की झाभुआ तहसील के भांवरा गाँव में हुआ था. उनके पूर्वज उत्तर प्रदेश में उन्नाव जिले के बदरका गाँव के रहनेवाले थे. चंद्रशेखर के पिता श्री सीताराम तिवारी आजीविका की खोज में भांवरा चले गए और वहीँ बस गए.
चंद्रशेखर का बचपन गाँव में बीता. उस समय उनके पिता का वेतन 5 रूपये था. वे चाहते थे कि चंद्रशेखर कोई काम -धाम कर परिवार चलाने में उनकी मदद करे. लेकिन चंद्रशेखर गाँव छोड़कर एक दिन अचानक मुंबई चले गए. वहीँ कुछ महीनों तक पानी के जहाज पर खलासी का काम करते रहे. फिर वे संस्कृत पढने वाराणसी आ गए.
वाराणसी में पढाई के दौरान ही उन्हें गांधीजी के असहयोग आन्दोलन के बारे में पता चला. चंद्रशेखर भी उसमें कूद पड़े. विदेशी वस्त्रों और शराब के विरोध में धरना देते हुए गिरफ्तार हुए जहाँ इन्हें 15 बेंत खानी पड़ी थी.
17 वर्ष की उम्र में आज़ाद क्रांतिकारी दल हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन में शामिल हो गए. दल में उनका नाम Quick Silver (पारा) दिया गया.
चंद्रशेखर आज़ाद वेश बदलने में माहिर थे
पार्टी के लिए फण्ड जमा करने के सभी कामों में आज़ाद शामिल रहे. सांडर्स की हत्या, भगतसिंह द्वारा असेंबली में बम फेंका जाना, वायसराय को बम से उड़ाने का प्रयास इन सबके नेता वही थे. इसके पहले काकोरी कांड को अंजाम देकर वहां से भागने में सफल रहे. एक बार वे गाजीपुर के एक महंत के शिष्य इसलिए बन गए क्योंकि उसके पास बहुत सारा धन था और वह बूढा भी था. आज़ाद ने सोचा जब महंत मरेगा तो सारा धन संगठन को दे दूंगा.
काकोरी कांड के बाद एसोसिएशन का नाम हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी रखा गया और आज़ाद इसके कमांडर बने. वे संगठन का काम गुप्त रूप से घूमकर करते रहे. वे वेश बदलने में माहिर थे. कुछ समय तक वे साधु वेश में यहाँ वहां घूमते रहे.
एक बार आज़ाद कुछ काम से इलाहाबाद गए. एक देशद्रोही ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी. पुलिस ने अल्फ्रेड पार्क (अब यह चंद्रशेखर आज़ाद पार्क है) में आज़ाद को घेर लिया. दोनों ओर से गोलियां चलीं. कहा जाता है कि अंतिम गोली उन्होंने स्वयं मार ली. इस प्रकार 27 फरवरी 1931 ई. को आज़ाद शहीद हो गए. अधिकारियों ने चुपचाप उनका अंतिम संस्कार करा दिया.
जामुन की जिस पेड़ की आड़ लेकर उन्होंने अंग्रेजों पर गोलियां बरसाई थी अंग्रेजो ने उसे भी कटवा दिया. आज़ाद का सक्रिय क्रांतिकारी जीवन लगभग 9 वर्षों का रहा, लेकिन वे कभी जीते जी गिरफ्तार नहीं हुए. आज भी उनकी देशभक्ति और वीरता हम सबके लिए प्रेरणास्रोत हैं.
यह लेख भवेश भारद्वाज (Bhavesh Bhardwaj) ने अहमदाबाद से भेजा है. भवेश अभी SAP Consultant के रूप में कार्यरत हैं. इन्होंने MCA की डिग्री देश के एक प्रतिष्ठित Institute से लिया है. हम भवेश के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं. इस लेख के लिए भवेश का बहुत शुक्रिया. Thanks.
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Edward Smith says
Aaajad Ke Bare Me Aapne Kaafi Acchi Post Lihki Hai Dil Khus Ho Gya