बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिनको कोई गलत काम करने की आदत पड़ जाती है और चाहकर वे वह उसे छोड़ नहीं पाता।
यह कहानी वैसे ही एक व्यक्ति दयाराम की है। दयाराम को शराब पीने की बुरी आदत पड़ गयी थी। उसकी इस आदत से सभी बड़े परेशान रहते। लोग उसे समझाने की भी बहुत कोशिश करते कि वह यह गंदी आदत छोड़ दे। लेकिन वह सभी समझनेवाले को एक ही जवाब देता- ‘मैंने यह आदत नहीं पकड़ी, बल्कि इस आदत ने मुझे पकड़ रखा है। ’
और सचमुच वह इस आदत से मुक्ति पाना चाहता था, पर कई बार कोशिश करने के बावजूद वह ऐसा नहीं कर पा रहा था।
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हर बार समझाने के बाद कुछ दिनों तक तो अपनेआप को शराब से दूर रखता लेकिन फिर वह शराब पीने लगता। उसकी पत्नी इस बात से काफी चिंतित रहती लेकिन उसने निश्चय किया कि वह किसी न किसी तरह अपने पति की इस आदत को छुड़वा कर ही रहेगी।
एक दिन उसकी पत्नी को किसी सिद्ध महात्मा के बारे में पता चला। वह अपने पति को लेकर उस महात्मा की कुटिया पर पहुँच गयी।
महात्मा ने पूछा – ‘बताओ बेटी! तुम्हारी क्या समस्या है?’
पत्नी ने दुखपूर्वक सारी बातें महात्मा जी को बता दीं।
महात्मा जी उनकी बातें सुनकर समस्या की जड़ समझ चुके थे और समाधान देने के लिए उन्होंने पति-पत्नी को अगले दिन पुनः अपनी कुटिया पर बुलाया।
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अगले दिन वे जब कुटिया पर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि महात्मा जी ने एक पेड़ को पकड़ रखा है। उन्होंने महात्मा जी से पूछा कि आप यह क्या कर रहे हैं और पेड़ को इस तरह क्यों पकड़े हुए हैं?
महात्मा जी ने कहा- ‘आप लोग जाइए और कल आइएगा। ’
फिर दूसरे दिन भी पति-पत्नी पहुंचे तो देखा कि फिर से महात्मा पेड़ को पकड़ कर खड़े हैं। उन्होंने जिज्ञासावश पूछा- ‘बाबा! आप यह क्या कर रहे हैं?’
महात्मा जी बोले- ‘ यह पेड़ मुझे छोड़ नहीं रहा है. आप लोग कल आना। ’
उस दंपत्ति को महात्मा जी का व्यवहार कुछ विचित्र लगा, पर वे बिना कुछ कहे वापस लौट गए।
अगले दिन जब वे पुनः आए तो देखा कि महात्मा जी अभी भी उसी पेड़ को पकड़े खड़े हैं।
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पति परेशान होते हुए बोला- ‘बाबा! आप यह क्या कर रहे हैं? आप इस पेड़ को छोड़ क्यों नहीं देते?’
महात्मा बोले- ‘मैं क्या करूं बेटा! यह पेड़ मुझे छोड़ ही नहीं रहा है?’
पति हंसते हुए बोला- ‘‘महाराज! आप पेड़ को पकड़े हुए हैं, पेड़ आपको नहीं। आप जब चाहें उसे छोड़ सकते हैं। ’
महात्मा गंभीर होते हुए बोले – ‘कई दिनों से मैं तुम्हें भी यही समझाने की कोशिश कर रहा हूं, कि तुम शराब पीने की आदत को पकड़े हुए हो, न कि यह आदत तुम्हें पकड़े हुए है। ’
दयाराम को अपनी गलती का अहसास हो चुका था। वह समझ गया कि किसी भी आदत के लिए वह स्वयं जिम्मेदार है और वह अपनी इच्छा शक्ति के बल पर जब चाहे उसे छोड़ सकता है।
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सच में कोई भी बुरी से बुरी आदत हम अपनी मजबूत इच्छा शक्ति के बल पर छोड़ सकते हैं। शराब पीने, जुआ खेलने, झूठ बोलने, आलस्य आदि अनेक ऐसे दुर्गुण हैं जो हमारी कमजोर इच्छा शक्ति के कारण हम पर हावी रहते हैं और हमें उसमें फसा कर रखते हैं। कई बार हम उस गन्दी आदत को कई दिनों तक छोड़ देते हैं लेकिन अचानक फिर से उस आदत को पकड़ लेते हैं। ऐसे में जरुरत है एक अटल निश्चय की। अगर हम अपने निर्णय पर अडिग रहते हैं तो हम विजयी होते हैं। इसलिए यदि आप भी इस दौर से गुजर रहे हैं तो अपने निश्चय को अटल करें। कुछ भी नहीं है मुश्किल गर ठान लीजिये।
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