भारतीय वांग्मय में जितने भी पर्व-त्यौहार मनाया जाता है, उसके पीछे कोई न कोई ऐतिहासिकता या पौराणिक कथा का ठोस आधार होता है. आज हम इस पोस्ट Holi Festival Brings Happiness रंग बरसे में रंगों के पर्व होली के पौराणिक कथा पर विचार करेंगे. इसके गहरे अर्थ को समझने का प्रयास करेंगे.
भक्त प्रहलाद की कहानी
जैसा कि आपको पता है कि होली मूल रूप से भक्त प्रह्लाद की कथा से संबंधित है. बालक प्रह्लाद का जन्म एक राज परिवार में हुआ था. प्रायः बालक मासूम और भोले भाले होते हैं.
बालमन में जब एक बार जो बैठ जाता है, उसे निकालना बहुत मुश्किल होता है. प्रह्लाद के मन में भगवान विष्णु के प्रति भक्ति भाव का जागरण बचपन में होता है. उसके अत्याचारी पिता जो अपने वरदान की आड़ में स्वयं को भगवान मान बैठा था. प्रह्लाद को लाख डराने धमकाने के बाबजूद जब कुछ नहीं बिगाड़ पाया तो अपनी बहन होलिका को प्रह्लाद को आग में जलाने का जिम्मा दिया. होलिका को वरदान में प्राप्त चादर था जिसे ओढ़कर आग में बैठ जाने पर आग का उसपर कोई असर नहीं होता था.
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जब होलिका प्रह्लाद को आग में लेकर बैठी तो कहा जाता है कि वायु का वेग इस प्रकार बढ़ा कि होलिका का चादर प्रह्लाद के शरीर से लिपट गयी और होलिका जलकर मर गयी. इस प्रकार की घटनाओं से प्रहलाद की भक्ति और बढ़ती गयी.
प्रह्लाद की भक्ति इतनी प्रगाढ़ और निश्छल थी कि वह निर्जीव को भी सजीव मान लेता है. वहीँ दूसरी ओर उसके पिता हिरन्यकश्यपू जो अहंकार के वश में आ जाता है और स्वयं को भगवान मान लेता है. क्रोध और विवेकहीन होकर अपने ही पुत्र पर अत्याचार करता है. वह अपने जीवन के लक्ष्य को ही भूल जाता है.
आस्था ही ईश्वर है. जब हिरन्यकश्यपू हाथ में खड़ग यानि तलवार लिये अपने ही महल में प्रह्लाद से पूछता है कि तुम्हारा भगवान कहाँ है? क्या वह इस खम्भे में भी है? प्रह्लाद कहते हैं : मुझमें तुझमें खडग खंभ में, ईश्वर तो कण कण में हैं. बाल मन का विश्वास या आस्था या भक्ति चाहे आप उसे जो शब्द दें, को बचाने के लिये भगवान नरसिंह अवतार में प्रकट होते हैं और वह रूप ऐसा है जो न पूर्ण नर है न पूर्ण पशु है, गोधूलि बेला है यानि न सूर्योदय है न सूर्यास्त है, न जमीन है न आकाश है, नाख़ून से उसका वध होता है न कोई अस्त्र है न कोई शस्त्र है. इस प्रकार अधर्म पर धर्म की विजय होती है.
होली में छिपा कई सन्देश
अगर यह कहा जाय होली का पर्व यह सन्देश देता है कि अपने भीतर के अहंकार, मोह, क्रोध, negativity, stress, भ्रम आदि को त्यागकर जीवन को रंगों से भर दो जिसमे सिर्फ उल्लास हो, उमंग हो, positivity हो. होलिका बुराई का प्रतीक है. हमें भी अपने अन्दर की समस्त बुराइयों जैसे लालच, घमंड, काम वासना, द्वेष आदि को जलाकर जीवन को रंगमय बनाना चाहिए. आइये इस होली के अवसर पर खूब रंगीन होली खेलें और दूसरों को भी रंगमय कर दें. होली बहुत ही सरस पर्व है. इसकी सरसता में डूबकर आनद लें. यह तनाव दूर भगाने का मनोवैज्ञानिक उपाय है.
आज होली का विकृत रूप देखकर ऐसा लगता है कि यह अपने मूल रूप से भटक गयी है. आज लोग इसे अपनी शत्रुता निकालने का अवसर समझ लेते हैं. अश्लीलता और फुहरता से इसे निकालना होगा. आज होली भारत के साथ साथ कई अन्य देशों में भी मनाया जाने लगा है. दुनिया के लोगों ने इसके वैज्ञानिक महत्व को समझा है.
होली का विशेष उत्सव
रंगों का पर्व होली भारत भूमि के अलग- अलग प्रान्तों में अलग- अलग तरीके से मनाया जाता है. ब्रज की होली का क्या कहना! यहाँ की होली आज भी पूरे देश के आकर्षण का केंद्र बिंदु होती है. बरसाने की लट्ठमार होली खूब चर्चित है. इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलायें उन्हें लाठियों और कपड़ों से बनाये गए कोड़े से पीटती हैं. मथुरा और वृन्दावन में इसी तरह से पंद्रह दिनों तक होली का पर्व मनाया जाता है. कुमायूं की गीत बैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियां होती हैं. यह सब होली के कई दिन पहले से ही शुरू हो जाता है.
हरियाणा की धुलंडी में भाभी देवरों को बहुत सताती हैं. बंगाल की दोल यात्रा चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है. गाना बजाना के साथ जुलुस निकाला जाता है. इसके अलावे महाराष्ट्र की रंग पंचमी में सूखा गुलाल खेलने. गोवा के शिमगो में जुलुस निकलने के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन तथा पंजाब के होला मोहल्ला में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है.
होली के कितने रूप
तमिलनाडु की कमन पोडीगई मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंत उत्सव है. मणिपुर के याओ सांग में योंगसांग उस छोटी सी झोपडी का नाम है जो पूर्णिमा के दिन सभी नगर और गाँव में नदी या जलाशय के तट पर बनाई जाती है. दक्षिण गुजरात के आदिवासियों के लिए होली सबसे बड़ा त्यौहार है. बिहार का फगुआ खूब मौज-मस्ती करने का पर्व है. होली में जानी नाच बहुत पारंपरिक होता है. छत्तीसगढ़ में होरी में लोक गीतों की अदभुत परंपरा है. मध्यप्रदेश के मालवा अंचल में विशेष हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है. पड़ोसी देश नेपाल में भी होली का सांस्कृतिक और धार्मिक रंग दिखाई पड़ता है. भारत के अलावे दूसरे देशों में बसे प्रवासी भी होली बहुत धूमधाम से मनाते हैं.
बुरा न मानो होली है
हमने भी अपने बचपन में होली के बहुत मजे लिये हैं. माँ के हाथ से बनी गुजिया का स्वाद आज भी नहीं भूला हूँ. राहगीरों पर रंगों और पानी की बौछार करके जो मजा आता था, वह वर्णन से परे है. दोस्तों द्वारा जबरन दांत में रंग घिसकर सारे दांत रंगीन कर देना, फगुआ के बोल और जोगीरा के शब्द चमत्कार से कम नहीं लगते थे. फाग, धमार और जोगीरा सुनकर जो मजा आता था, आज वह फ़िल्मी होली में नहीं. पिचकारी में रंग भरकर फेंकना और जोर से चिल्लाकर कहना – बुरा न मानो होली है. सच में लोग बुरा नहीं मानते थे और हंस कर चल देते थे. काश, कोई लौटा देता मेरे बचपन के वो दिन! बुरा ना मानो होली है!
लेकिन हमने होली को भी विकृत रूप में मनाना शुरू कर दिया. अपनी भड़ास , शत्रुता निकालने का साधन बना डाला. कर्म कांडों के भय से उसे बोझिल बना डाला. इसे पूरी सद्भावना के साथ मनाते हुए विकारों को जलाकर जीवन को पूरे रंगों के साथ जीने का संकल्प करे.
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