फ्रांसिस बेकन की जीवनी
Francis Bacon Hindi Biography/फ्रांसिस बेकन (22 January 1561- 9 April 1626) अंग्रेज राजनीतिज्ञ, लेखक और दार्शनिक थे. रानी एलिजाबेथ के राज्य में उनके परिवार का बहुत ही प्रभाव था. फ्रांसिस बेकन ने Cambridge और Graze Inn में शिक्षा प्राप्त की.
1577 में फ़्रांस स्थित अंग्रेजी दूतावास में नियुक्त हुए लेकिन पिता सर निकोलस बेकन की मौत के बाद 1579 में वह वापस लौट आये. वे वकालत करना चाहते थे इसलिए कानून की पढाई की. ऐसे शुरु शुरू में उनकी रूचि राजनीति में भी थी. 1584 में वे British Parliament में लोक सभा सदस्य के रूप में चुने गए. वे संसद में 1614 तक रहे. संसद की कार्यप्रणाली में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा.
समय समय पर वे महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रश्नों पर एलिजाबेथ को neutral advice देते रहते थे. कहा जाता है कि अगर उनके suggestions को उस समय मान लिया गया होता तो शाही और संसदीय अधिकारों के बीच होने वाले विवाद उठे ही नहीं होते. सब कुछ होते हुए भी उनकी योग्यता का ठीक ठीक मूल्याङ्कन नहीं हो सका.
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लार्ड बर्ले ने उन्हें अपने पुत्र के मार्ग में बाधक मानकर सदा बेकन का विरोध किया. रानी एलिज़ाबेथ ने भी उनका साथ नहीं दिया क्योंकि बेकन ने शाही जरूरतों के लिये संसदीय धन अनुदान का विरोध किया था.
1592 के करीब वे अपने भाई अंथनी के साथ अर्ल ऑफ़ एसेक्स के राजनीतिक सलाहकार नियुक्त हुए. किन्तु 1601 में जब एसेक्स ने लंदन की जनता को विद्रोह के लिये भड़काया तो बेकन ने रानी के वकील की हैसियत से एसेक्स को राजद्रोह के अपराध में दंड दिलाया.
वह एलिज़ाबेथ के राज्य में किसी महत्वपूर्ण पद पर नहीं रहा,किन्तु जेम्स प्रथम के राजा होने पर उसका भाग्य खुल गया. वह 1607 में सोलिसिटर जनरल, 1613 में अटॉर्नी जनरल और 1618 में लार्ड चांसलर नियुक्त हुआ. 1603 में नाईट और 1618 में बेरण वेरुलम की उपाधियाँ से विभूषित किया गया. उसके बाद बेकन का पतन होना शुरू हो गया. उस पर पद के दुरूपयोग और घुस लेने का आरोप लगा. उसने ये आरोप स्वीकार करते हुए तर्क दिया कि उपहारों या Gifts ने कभी भी उसके निर्णयों को प्रभावित नहीं किया. बेकन को उनके पद से हटा दिया गया और जीवन के शेष दिन उसने संन्यास में बिताया.
बेकन का मूल्यांकन
बेकन राजनीतिक और क़ानूनी कार्यों में व्यस्त रहते हुए भी विघ्या और दर्शन में गहरी रूचि रखते थे. उनकी साहित्यिक रचनाएं इस ब्बत का प्रमाण हैं. ‘Essays’ उनके द्वारा 28 वर्षों में लिखे गए 58 निबंधों का संग्रह है.
संक्षेप, सूत्रात्मकता और चित्ताकर्षक रूपक उनकी शैली की विशेषताएं हैं. Essays (1597), The Advancement and Proficience of Learning Divine and Human (1605), Novum Organum Scientiarum (1620), New Atlantis (1627) और The Wisdom of the Ancients (1619) नामक उनकी कृतियाँ ऐतिहासिक और राजनीतिक विषयों पर सूक्ष्म अनुसंधान और विश्लेषण का परिचय देती है.
दार्शनिक कृतियों में Instauratio Magna (‘Great Instauration‘, 1620) और Novum Organum Scientiarum (‘New Method’, 1620) उल्लेखनीय हैं.इनके अतिरिक्त भी उन्होंने बहुत सारी पुस्तकें लिखी.
फ्रांसिस बेकन का योगदान
हालांकि बेकन का वैज्ञानिक या दार्शनिक सिद्धांतों में कोई बहुत मौलिक योगदान नहीं रहा. उसका महत्व वैज्ञानिक अन्वेषण में विशेष दिशा की बजाय सहज प्रभाव ग्रहण करने में बल देने पर है. उन्होंने अपने जीवन काल में केवल एक वैज्ञानिक प्रयोग किया. वह यह था कि शीत वस्तु यानि ठंडा पदार्थ वस्तु या जीवन के ह्रास को कहाँ तक रोकता है- एक कुक्कुट शावक को बर्फ में बंद कर दिया. परीक्षण का पूरा प्रभाव बेकन देख नहीं पाए और इसी के दौरान शीत के प्रभाव से (न्युमोनिया से) उनकी मृत्यु हो गयी.
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Yashoda says
Soooooo great
lavkesh says
Best information
Deepak dungdung says
Great information sir