सबसे अच्छा अपना घर हिंदी कहानी
आज विष्णुलोक में सभी प्रकार के पक्षियों का मेला लगा है. सारे पक्षी सज धज कर पधारे हैं. अवसर ही ऐसा है. तभी भगवान् विष्णु वहां आये और सभी पक्षियों की ओर ध्यान से देखने लगे. उनकी नजर गरुड़ के सफ़ेद मुख, लाल पंख और सुनहले शरीर पर पड़ी. उन्होंने उस पक्षी गरुड को अपना रथ बना लिया.
अब गरुड़ सुबह उठते, तालाब के सुगंधित जल में स्नान करते. सुन्दर वस्त्र और गहने धारण करते, और तैयार होकर श्री हरि विष्णु की सेवा में उपस्थित हो जाते. उनको अपने पीठ पर बिठाकर पूरी सृष्टि का चक्कर लगाते. ऐसा करते हुए पक्षिराज गरुड़ का समय काटने लगा. कुछ महीनों बाद गरुड़ राज को अपना पुराना घर जाने की इच्छा हुई. उन्होंने श्री हरि विष्णु से छुट्टी माँगी. श्री हरि विष्णु ने कहा – अभी विष्णु लोक में बहुत काम है, कभी और अपने घर चले जाना.
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कुछ महीनों के बाद गरुड़ ने पुनः छुट्टी माँगी. श्री हरि विष्णु ने कहा – “मैं जानता हूँ गरुड़, तुम्हें कभी खुले आकाश में, तो कभी पेड़ों कि फुनगी पर उड़ना अच्छा लगता है. इस लोक में भी पेड हैं, वन हैं, नदी हैं, उसके किनारे बड़े-बड़े पेड़ हैं. तुम वहां जाओ, खूब विचरण करो, तुम्हारा मन लग जाएगा. अभी तुम्हें अपने घर जाने की क्या जरुरत है.”
गरुड़ बोले – “प्रभु! मुझे अपने घर कि बहुत याद आ रही है. मुझे चाहे आप दो दिन कि छुट्टी दे दीजिये, लेकिन मुझे अपने घर जाने दीजिये. मेरी आपसे विनती है.”
श्री हरि विष्णु ने कहा – “तुमने छुट्टी छुट्टी की रट लगा रखी है. यहाँ तुम्हें किस चीज की कमी है. जरा बताओ तो मुझे? सोने के लिये नर्म नर्म बिस्तर, खाने के लिये मेवे-मिष्टान, दूध दही, फल, मेवे जो चाहो खाओ. नहाने के लिये स्वच्छ जल वाला तालाब. तुम्हारे घर में वहां क्या ऐसा है जो तुम्हें यहाँ नहीं मिल रहा है और जिसके लिये तुम वहां अपने घर जाने की रट लगा रखे हो.”
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गरुड ने कहा – “ नहीं प्रभु! ऐसा कुछ भी नहीं है. आपके लोक में किसी चीज की कोई कमी नहीं है. आप तो तीनों लोकों के स्वामी हैं. यहाँ आने के लिये तो ऋषि मुनि वर्षों तक तपस्या करते हैं. लेकिन क्या करें प्रभु अपने घर की बहुत याद आ रही है. मुझे कुछ दिनों के लिये छुट्टी दे दीजिये. आपकी बड़ी कृपा होगी.”
यह सब सुनकर श्री हरि विष्णु ने गरुड़ को छुट्टी दे दी. छुट्टी मिलते ही गरुड़ ने अपने घर की ओर उड़ चले.
गरुड़ के जाते ही श्री हरि विष्णु ने अपने एक सेवक को बुलाया और उससे कहा – “तुम गरुड़ के पीछे पीछे जाओ और वहां देखो कि उसका घर कैसा है? वह कैसा रहता है? क्या खाता है? सब कुछ पता करो.”
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वह सेवक गरुड़ के पीछे पीछे गया. उसने देख कि गरुड़ एक पुराने वृक्ष की कोटर में बैठे हैं. वहां से आती जाती चिड़िया को देख खुश हो जाते हैं. उनके आवाज कि नक़ल करते हैं. कभी कौआ कि तरह कॉव कॉव करते हैं तो कभी तोता की तरह बोलते तो कभी मैना की तरह बोलते. सड़ी गली पत्तियों को हटाते, उसमें कीडे मकोडे को खाते. कभी नील गगन में उंची उड़ान लगाते तो कभी पानी की खोज में खूब उड़ते. कभी चिड़ियों के झुण्ड में उड़ते तो कभी नदी किनारे कीचड में लोटते. सेवक कई ड़ों तो यह सब देखता रहा और पुनः वापस विष्णु लोक जाकर श्री हरि को यह सब बताया.
अपनी छुट्टियां बिताकर जब गरुड़ विष्णु लोक पहुंचे तो श्री हरि ने पूछा – “सुनाओ गरुड़! कैसी रही तुम्हारी छुट्टी?
“प्रभु बहुत अच्छा रहा. खूब मजा आया”– गरुड़ खुश होकर बोले.
श्री हरि विष्णु बोले – पक्षिराज! यहाँ सब कुछ है, सारी सुविधाएं है. लेकिन इनके बावजूद तुम पेड़ की कोटर में रहने गए. कीडेमकोडे का भोजन करने गए. इसी के लिये तुमने रोते हुए छुट्टी माँगी थी.”
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“प्रभु! आप तो जगत है स्वामी हैं. आपको तो ज्ञात हि है कि अपना घर सबसे अच्छा होता है. चाहे वह पेड़ का कोटर ही क्यों न हो. यह आपका लोक है. आपके यहाँ मैं आपका सेवक हूँ. कुछ नियम और कायदे क़ानून से बंधा हूँ. चाहकर भी सदा अपने मन की नहीं कर सकता. यहाँ मुझे वैसी आजादी कहाँ? आजादी तो केवल अपने घर, अपने वतन में होती है. इसलिए सबसे अच्छा होता है अपना घर.”
गरुड़ के मुख से यह सब सुनकर श्री हरि विष्णु बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने कहा – “मैं तो तुम्हारे मुंह से यह सब सुनना चाह रहा था. यह बिलकुल सत्य है कि अपना घर सबसे अच्छा और प्रिय होता है.”
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Bahut badiya…. 🙂
Thanks a lot!