Shekhchilli Story in Hindi Language /कुएँ में पायजामा शेखचिल्ली की कहानी
एक दिन की बात है. शेखचिल्ली की माँ ने सारे कपडे धोकर सूखने के लिए बाहर डाल दी थी. कपड़े बाहर आकर वह घर के कामों में व्यस्त हो गयी. उधर शेखचिल्ली आराम से चारपाई पर लेटे – लेटे सपनों की दुनिया में खोया हुआ था.
बाहर धीमी गति से चल रही हवा अब थोड़ी तेज गति से चलने लगी थी. देखते ही देखते हवा ने अंधड़ का विकराल रूप धारण कर लिया. धूल का इतना बड़ा बबंडर उठा कि कुछ भी देखना मुहाल हो गया. आस –पड़ोस के लोग तेजी से अपने अपने घरों की ओर भागे. शेखचिल्ली भी अपनी माँ के साथ अपने घर में बंद हो गया.
शेखचिल्ली की माँ को अचानक याद आया कि उसने सारे कपडे तो सूखने के लिए बाहर डाल रखे हैं.उसने खिड़की की झिर्री से देखा तो सारे कपडे उस अंधड़ में उड़ चुके थे. जब अंधड़ थोडा शांत हुआ तो वह अपने कपड़ों को ढूंढने घर से बाहर निकली. गाँव के अन्य लोग भी अपने अपने सामान ढूंढने के लिए इधर –उधर भटक रहे थे. कुछ देर इधर –उधर ढूंढने के बाद उसको अपने सारे कपडे मिल गए थे.
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जब वह घर वापस आयी तो चारपाई पर बैठे शेखचिल्ली को देखकर उदास स्वर में बोली – “बेटा! अंधड़ में उड़े सारे कपडे तो मिल गए सिर्फ तुम्हारा पायजामा नहीं मिला. ना जाने कैसे उड़कर उस कुएँ में जा गिरा. जाओ जाकर अपने पायजामे को उस कुएँ से निकाल लो.”
“ओ माँ! इसमें उदास होने वाली कौन सी बात है?” – शेखचिल्ली बोला – “यह तो बहुत खुशी की बात है, इसके लिए तो आपको अल्लाह का शुक्रगुजार होना चाहिए.”
शेखचिल्ली की माँ को कुछ भी समझ में नहीं आया. वह आश्चर्यपूर्वक बोली – “बेटा, इसमें अल्लाह का शुक्रगुजार होने जैसी कौन सी बात है?”
“आप समझी नहीं माँ! यदि वह पायजामा मैंने पहना होता तो मैं भी उड़ता हुआ उसी कुएँ में जा गिरता. जा गिरता क्या, अबतक तो कुआँ में डूब भी गया होता और अल्लाह को प्यारा हो गया होता.”
शेखचिल्ली की माँ अपने बेटे की बात सुनकर उसकी बुद्धि पर तरस खा रही थी. सच ही कहा गया है कि मूर्ख लोग इसी तरह से बिना सिर- पैर की बातें करते हैं.
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