Wajid Ali Shah and His Love for Art Hindi Story / बादशाह वाजिद अली शाह का कला प्रेम हिंदी कहानी
बैसवारा में लालचंद नाम का एक सुनार था. उसके द्वारा बनाए गए आभूषणों की ख्याति दूर-दूर तक थी. उसे लोग अपने यहाँ बुलाते पर वह कहीं नहीं जाता. वह कहता कि जिसे मेरे बनाए जेवर पसंद हो, जो मेरी कला का सम्मान करता हो वह मेरे पास आए. लोगों के यहाँ आने – जाने में समय नष्ट होता है.
उन दिनों बेनीमाधव सिंह बैसवारा के राजा थे. उनकी मित्रता अवध के बादशाह वाजिद अली शाह से थी एक दिन बेनीमाधव सिंह को बादशाह का सन्देश मिला कि वे लालचंद को अवध के दरबार में ले आएँ. बादशाह को अपनी बेगम के लिए जेवर बनवाने हैं.
राजा स्वयं लालचंद सुनार के घर पहुँचे. उन्होंने लालचंद से अवध के बादशाह के यहाँ चलने की बात कही. पहले तो वह इसके लिये तैयार नहीं हुआ पर बहुत समझाने – बुझाने के बाद तैयार हो गया. वे दोनों दरबार में उपस्थित हुए.
बादशाह ने भी यह बात सुनी थी कि वह सुनार कहीं जाता नहीं. वे जानना चाहते थे कि ऐसा क्यों है?
बादशाह ने दरबार में पूछा – “लालचंद, आपके आभूषणों में ऐसी क्या विशेषता है जो दूसरों में नहीं?”
लालचंद ने कहा – “हुजूर, मैं कहने में नहीं करने में यकीन रखता हूँ.”
मेरा काम देखकर आप स्वयं निर्णय कर सकते हैं बादशाह की बेगम ने पूछा – “क्या आप टूटे – फूटे जेवर को फिर पहले जैसा बना सकते हैं?”
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लालचंद कुछ कहते उसके पहले ही बेनीमाधव बोल पड़े – “बेगम साहिबा यह कोई छोटे – मोटे स्वर्णकार नहीं हैं. यह टूटे मोती और टुकड़े-टुकड़े हीरे को भी जोडकर आभूषण बना सकते हैं.”
“मैं नहीं मानती टूटा हीरा और फूटे मोती जोड़े नहीं जा सकते आप असंभव बात कह रहे हैं” – बेगम बोली
फिर लालचंद की ओर मुडकर बोलीं – “क्या आप सचमुच ऐसा कर सकेगें?” लालचंद ने कहा – “बिल्कुल कर सकता हूँ. वह स्वर्णकार ही कैसा जो फूटे मोटी और टूटे हीरे से कोई आभूषण न बना सके.”
बादशाह ने एक बड़ा मोती और हीरा मंगाया. उसे एक फर्श पर पटक दिया जिससे वह टूट गया. फिर टूटे मोती के टुकड़े लालचंद को देकर बोले – “लीजिए, अब आप इससे आभूषण बनाइए. जरा हम भी तो देखें आपका हुनर.”
लालचंद ने हीरे और मोती के टुकड़ों को इकट्ठा किया. फिर बादशाह से कहा – “हुजूर ! मेरी भी एक शर्त है. यदि मेरे बनाए जेवर आपको पसंद आए तो मैं अपने देश लौट जाउँगा आपको एक बार मेरे घर अवश्य आना पड़ेगा.”
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शर्त बड़ी कठिन थी. एक सुनार के घर बादशाह का जाना असंभव बात थी, पर बादशाह ने शर्त मान ली. लालचंद ने एक हफ्ते का समय माँगा. एक हफ्ते बाद वह बादशाह के दरवार में जेवरों के साथ उपस्थित हुआ. अवध का राजचिह्न मछली था. लालचंद ने बेगम के लिए मछली की आकृति का सुंदर हार बनाया था. हार में मछली की आँख के स्थान पर मोती लगाए थे. मछली के शरीर पर हीरे के छोटे –छोटे कण लगाए थे. मछली के पंख में नीलम, पन्ना और पुखराज लगाए थे.
हार को मखमली डिब्बे में रखकर उन्होंने बादशाह और बेगम को भेंट किया. दोनों इस अनुपम हार को देखकर चकित रह गए. बादशाह ने लालचंद को गले लगा लिया और बोले – वाह लालचंद !
बादशाह ने वादे के अनुसार लालचंद को सम्मान के साथ बैसवारा विदा किया. जाते हुए लालचंद ने कहा – “हुजूर ! आपको अपनी शर्त याद है न ?”
बादशाह बोले – “अवश्य, मैं तुम्हारे घर आऊंगा.”
बेनीमाधव सिंह ने कहा – “बादशाह आप एक छोटे सुनार के घर जायेगे?”
बादशाह वाजिद अली शाह बोले – जरुर! मैं इसके घर अवश्य जाऊँगा. यदि मैं नहीं जाता तो कला का अपमान होगा”
और बाद में बादशाह बेगम के साथ उस स्वर्णकार के घर पधारकर उसकी कला को भरपूर सम्मान दिया और उसके कला की सराहना की.
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