Anamol Vachan for Behtarlife बेहतर जीवन के लिए अनमोल वचन
1. जो अपने शीश को काटकर सद्गुरू के चरणों में रखे संत-सुजान इसमें आकर बैठ सकता है. यह प्रेम का घर सद्गुरू की भक्ति का दरबार है.
– संत कबीर
2. वीरों में सबसे बड़ा वीर कौन है ? जो काम वाणों से पीड़ित नहीं होता.
– शंकराचार्य
3. प्रेमी के हृदय की बात बस प्रेमी ही जानता है. प्रेमी सदा प्रेमी के पास ही रहता है, वह अलग नहीं होता. यह प्रेम रस पीने में बहुत ही मधुर है. यह सभी को सुलभ नहीं और इसका पानी भी दुर्लभ है.
– संत कबीर
4. संत की वाणी कोमल होती है. उससे अमृतमय रस झरा करता है. उसे सुनते ही कठोर मन भी माँ के समान कोमल हो जाता है.
– तुलसीदास
5. विवाद और असहमति किसी भी क्रियाशील समाज की प्राणशक्ति है.
– हम्फ्री
6. यह जगत विष्णु से उत्पन्न हुआ है. उसी में स्थित है. वही इसकी स्थिति और लय का कर्ता है. यह जगत भी वही है.
– विष्णु पुराण
7. विषय भोग संसार के महारोग हैं और तृष्णाएँ मृगतृष्णा है.
– योग वशिष्ठ
8. विद्वान पुरूष यदि सुख चाहता है तो वह विषयों को विधिपूर्वक त्याग दे.
– शिवपुराण
9. प्रेम दूकान पर नहीं बिकता और इसका कोई व्यापार नहीं होता. प्रेमियों में कोई भेद नहीं होता. ये देखने में दो शरीर दिखाई पड़ते हैं परन्तु इनका प्राण एक ही है.
– संत कबीर
10. जिस मनुष्य की बुद्धि दुर्भावना से युक्त है तथा जिसने अपनी इंद्रियों को वश में नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थ की बातें सुनने की इच्छा होने पर भी उन्हें पूर्ण रूप से समझ नहीं सकता.
– वेदव्यास
11. जो विद्या और सदाचार से सम्पन्न है, वह सब देवताओं और मनुष्यों में श्रेष्ठ है.
– मज्झिम निकाय
12. श्रेष्ठ पुरूषों के मनोरथों को पूर्ण करने में नीच नहीं, श्रेष्ठ पुरूष ही समर्थ होते हैं.
– अज्ञात
13. मनुष्य को सदा ही संचय करना चाहिए, पर वह अति संचय कभी न करे.
– नारायण पण्डित
14. प्रेम रस पीने में कई कठिनाइयां हैं और इसके बदले में सद्गुरू शीश मांगते हैं अहंकार त्यागकर सम्पूर्ण रूप से सद्गुरू को समर्पित होने से इसकी प्राप्ति होती है. प्रेम रसायन के समान कोई भी रस नहीं है.
– संत कबीर
15. कल की चिंता अज्ञानी करते हैं जीवन तो वर्तमान ही है .
– अज्ञात
16. जिसका मस्तिष्क अंधविश्वास से मुक्त है, उसको मृत्यु रंचमात्र भी भयभीत नहीं कर सकती.
– गुरू नानक देव
17. मनुष्य का मस्तिष्क विधाता ही अद्वितीय कृत्ति है.
– डा. रघुबीर
18. सतत अभ्यास ही मस्तिष्क का बल है, विश्राम नहीं.
– पोप
19. आयु बुद्धि के साथ-साथ चेहरे की भांति मस्तिष्क के दोष भी निरंतर भद्दे होते जाते हैं.
– रोशे फुकाल्ड
20. क्षीण शरीर मस्तिष्क को भी क्षीण कर देता है.
– रूसो
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21. जब कोई अवतार धरती पर आता है तो मूर्ख लोग उसके विरूद्ध हो जाते हैं.
– ओशो रजनीश
22. पढने से सस्ता मनोरंजन नहीं है और न ही कोई खुशी उतनी स्थाई है.
– आचार्य पंकज
23. अपनी अज्ञानता का आभास करना ही बुद्धिमत्ता है.
– आचार्य पंकज
24. मनुष्य नियमों के लिए नहीं, नियम मनुष्यों के लिए है.
– स्वामी रामतीर्थ
25. आपत्ति में आत्मविश्वास खो देने से क्या लाभ है.
– अज्ञात
26. जरूरत के समय नियमों का पालन नहीं हो पाता. जरूरत आविष्कारक है और साहसी बनाती है.
– आचार्य पंकज
27. इच्छा से दुःख आता है, धन का अभाव लगता है और इच्छा न होने से भय, दुःख व गरीबी का आभास नहीं हो पाता है.
– आचार्य पंकज
28. सद्विचार वाला मनुष्य कभी अकेला नहीं होता.
– आचार्य पंकज
29. मन वह सफेद कपड़ा है जिसे जिस रंग में डुबो दो उस पर वही रंग चढ़ जाएगा.
–शेक्सपियर
30. अपने मन की बीती हुई बातों से बोझिल मत करो.
– आचार्य पंकज
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