क्या मृत्यु दंड आवश्यक है? प्रस्तुत पोस्ट Death Sentence Debate in Hindi में हम इसके पक्ष और विपक्ष में विचारों को जानने का प्रयास करेंगें. इस पोस्ट को पढने के उपरांत आप अपना विचार पक्ष या विपक्ष में कमेंट के माध्यम से शेयर कर सकते हैं.
Death Sentence Debate in Hindi मृत्यु दंड का विधान (मृत्यु दंड के पक्ष में )
अपराध् मानव की सोची-समझी साजिश का नतीजा है। मानव जब दूसरे का अहित पहुँचा कर अपने लाभ का विचार करता है तो उसके मन में षड्यंत्र रचने लगते हैं। वह षड्यंत्रों का जाल बुनकर दूसरे का अहित करता है। अहित होने के पश्चात् इस कर्म को अपराध का नाम दिया जाता है। अपराध करते समय मनुष्य की स्वार्थी वृत्ति ही कार्य करती है और यह स्वार्थी वृत्ति समय बीतने पर और बलवती होती जाती है। ऐसे में स्वार्थ का भयंकर रूप धरण करने पर व्यक्ति नहीं समाज का अहित होता है। अतः समाज-हित के लिए यह आवश्यक है कि अपराध् अपराधी को मृत्यु-दंड देकर समाज के इस कोढ़ को हमेशा के लिए समाप्त किया जाए।
I believe that the death penalty is an effective penalty. -Loretta Lynch
मृत्यु-दंड का विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है। इतिहास साक्षी है कि बड़े-बड़े प्रतापी राजाओं ने मृत्यु-दंड के नियम द्वारा समाज से अपराध की संख्या को कम किया तथा भारत को मजबूत शासनतंत्र प्रदान किया। मृत्यु-दंड केवल अपराधी को समाप्त नहीं करता बल्कि दूसरे कम दोषी लोगों के मन में भी भय उत्पन्न करता है और भय के कारण छोटे-छोटे अपराध करने वाले सही रास्ते पर आ जाते हैं। अतः मृत्यु-दंड एक ओर अपराधी व्यक्ति को उसके किये की सजा देता है तो दूसरी ओर अपराध की मात्रा में कमी लाता है। राजा-महाराजाओं के समय पर बड़ा अपराध करने वाले को हाथी के पाँव से कुचलवा दिया जाता था। यह देखकर अपराधी के मन में डर पैदा होता था और समाज में अपराध कम होते थे। प्राचीन समय की मजबूत शासन व्यवस्था का यही राज था।
आज की परिस्थितियाँ पूरी तरह से बदल चुकी हैं। आज हमारा संविधान स्वयं को गणतंत्र या लोकतंत्र मानता है। जहाँ एक ओर आज हम लोकतंत्र की ओर बढ़े हैं, वहीं हमारे समाज में अपराध भी बढ़े हैं। आज के समाज में चारों ओर हिंसा और अपराध् का बोल-बाला दिखलाई देता है। आतंकवाद, देशद्रोह, धोखाधड़ी, स्वार्थपरकता, भ्रष्टाचार, घूसखोरी आदि के रूप आज बढ़ते जा रहे हैं। मेरे विचार में इन सभी अपराधों के बढ़ने के मूल में मृत्यु-दंड का प्रायः समाप्त होना है।
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आज मृत्यु-दंड या तो मिलता ही नहीं और अगर मिलता भी है तो साल-दो साल में एकाध बार। ऐसा होने पर अपराधी को बल मिलता है। उसमें अपराध करने की वृत्ति बढ़ रही है। वह जानता है कि यदि उसका अपराध पकड़ा भी गया तो उसे मृत्यु-दंड तो हो नहीं सकता। पैसों के द्वारा वह गवाह खरीद लेगा और जमानत लेकर अपराध में दुगुनी वृद्धि् करेगा। परिणामस्वरूप पाँच-सात लड़कियों का बलात्कारी, घूसखोर, समाज में उपद्रव पैफलाने वाला, सांप्रदायिक दंगे करवाने वाला सपेफदपोश भेड़िया समाज में घूम रहा है और समाज को पतन की ओर ले जा रहा है।
समाज के बड़े-बड़े ठेकेदारों की वृद्धि् एवं भौतिक विकास में अपराध का बहुत बड़ा हाथ है। ऐसे में यदि समाज में शासन व्यवस्था को मजबूत बनाना है, समाज को विविध बुराइयों से दूर करना है तथा समाज के लोगों में अपराध के प्रति डर पैदा करना है तो शासन-व्यवस्था को मजबूती द्वारा नियमों का पालन करते हुए मृत्यु-दंड के कानून को अपनाना होगा। अपराध के मूल में स्वार्थ है तथा मृत्यु-दंड के मूल में स्वार्थ को समाप्त करने की वृत्ति। अतः अपराध की समाप्ति के लिए मृत्यु-दंड आवश्यक ही नहीं जरूरी भी है तभी भारत को प्रगति के पथ पर मूल रूप से मोड़ा जा सकेगा।
Death Sentence Debate in Hindi मृत्यु दंड का विधान (मृत्यु दंड के विपक्ष में)
मानव परिस्थितियों का दास है। जीवन में कई बार ऐसी अवस्थाएँ सामने आती हैं जिनसे मनुष्य गलत मार्ग की ओर बढ़ जाता है। उसके हालात उसे ऐसा करने पर मजबूर करते हैं। ऐसे में एक अपराध उससे होता है और उस अपराध को छिपाने के लिए वह दूसरा अपराध करता है तथा इस प्रकार गलतियों के भंवर में वह फंस जाता है।
अतः वक्त या परिस्थितियाँ उसके कर्म या जीवन का निर्धारण करती हैं। वह दोषी होते हुए भी पूर्ण रूप से गुनाहगार नहीं होता। जीवन की इस सच्चाई को देखते हुए किसी के जीवन को समाप्त करने की सजा उपयुक्त प्रतीत नहीं होती।
The death penalty is discriminatory and does not do anything about crime. -Bobby Scott
मृत्यु-दंड का कानून बहुत पुराना प्राचीन है। मृत्यु-दंड व्यक्ति को समाप्त कर सकता है लेकिन अपराध को नहीं। अपराध की भावना एवं अपराध का स्वरूप अपराधी को मृत्यु-दंड देने के बाद भी बना रहता है। अधिकांश अपराध परिस्थितिवश किये जाते हैं, ऐसे में यदि अपराधी को मृत्यु-दंड दिया जाएगा तो यह उसके साथ इंसाफ की बात नहीं होगी। अपराध को कम करने के लिए और भी सजाएँ हो सकती हैं लेकिन मृत्यु-दंड अपराध की समाप्ति नहीं कर सकता।
मानव-जीवन अमूल्य है। यह बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है। साथ ही मानव-जीवन ईश्वर प्रदत्त है, उसे छीनने का हक़ भी ईश्वर का ही है। ईश्वर की विविध कथाओं के आधर पर हम देखते हैं कि वे प्रत्येक अपराधी को कई बार क्षमा करते थे तथा उसके जीवन को सुधरने का मौका देते थे। कभी डाँटकर तो कभी परिस्थिति दर्शाकर उसे मार्ग पर लाने का प्रयत्न करते थे। सभी ढंग से यदि वह मार्ग पर नहीं आता था तभी अंत में जाकर उसके प्राणों का हरण करते थे। फिर हम तो मानव हैं। हमारा धर्म यही बनता है कि हम अपराधी को एक मौका दें। देश- विदेश की कई संस्थाएं मृत्यु-दंड के विरुद्ध अपनी आवाज बुलंद करती आ रही है. इसलिए अपराधी को मृत्युदंड न देकर कोई अन्य दंड भी दिया जा सकता है.
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अपराधी को सजा अवश्य मिलनी चाहिए लेकिन साथ ही सुधरने का एक मौका भी। इस प्रकार यदि वक्त दिया जाए तो बड़े-से-बड़े अपराधी को मार्ग पर लाया जा सकता है।
मृत्यु-दंड किसी समस्या का हल नहीं। अपराधी के मन में बैठी बुराई ही उसका एवं समाज का सबसे बड़ा शत्रु है। अतः यदि अपराध को समाप्त करना है तथा उसकी सत्ता सर्वदा के लिए मिटानी है तो अपराधी को सुध्रने का मौका एवं वक्त अवश्य दिया जाना चाहिए। कई अपराध वक्त रहते समाप्त हो जाते हैं और उनकी सत्ता समाज से हमेशा के लिए समाप्त हो जाती है। अतः कहा जा सकता है कि अपराध की समाप्ति के लिए मृत्यु-दंड बिल्कुल आवश्यक नहीं।
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