कर्तव्यनिष्ठा की भावना महात्मा गांधी से जुड़ा प्रेरक प्रसंग
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने बापू के विषय में लिखा:
तू चला, लोग कुछ चौंक पड़े,
‘तूफ़ान उठा या आंधी है?’
ईसा की बोली रूह, ‘अरे!
यह तो बेचारा गांधी है!’
और आगे ..
बापू ने राह बना डाली,
चलना चाहे, संसार चले,
डगमग होते हों पाँव अगर
तो पकड़ प्रेम का तार चले!
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यह घटना उस समय की है, जब महात्मा गांधी यरवदा जेल में थे. उन दिनों यरवदा जेल में ही उनका ऑपरेशन हुआ था. ऑपरेशन होने के बाद वे शरीर से बेहद कमजोर हो गए थे. यहाँ तक कि उनको चलने फिरने में भी कठिनाई हो रही थी. वे पैरों में चप्पल की बजाय खडाऊं पहनते थे. वे जेल भी खडाऊं पहनकर ही गए थे. कई महीने उपयोग करने के कारण उनका खडाऊं टूट गया था. जेल प्रशासन की ओर से उन्हें एक नया खडाऊं दिया गया था, लेकिन वह खडाऊं बहुत वजनी था यानि भारी था. एक तो ऑपरेशन की वजह से कमजोर पड़ा शरीर और ऊपर से वजनी खडाऊं. इसे पहनकर चलने में गांधीजी को बहुत तकलीफ होती थी. कुछ दिनों बाद वे अपने आश्रम आ गए.
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एक रात की बात है. गांधीजी वही भारी वाला खडाऊं पहन कर चल रहे थे. इसको पहनकर चलने में उनको कुछ ज्यादा कष्ट हो रहा था. आश्रम में रह रहे सहयोगियों को उनकी यह तकलीफ नहीं देखी गयी. उसने चुपके से जेल से मिली उस भारी खडाऊं को वहां से हटाकर उसकी जगह एक हल्की खडाऊं की जोड़ी रख दी.
सुबह होने पर गांधीजी जब खडाऊं पहनने के लिये खड़े हुए तो उन्होंने अपने खडाऊं को इधर उधर ढूंढा. जब वह कहीं नहीं मिले तब उनकी नजर उस नए खडाऊं के जोड़ी पर पडी तो उसे नहीं पहनी और बोले – “अरे, मेरी खडाऊं तो रात तक यहीं पर थीं. पता नहीं कौन अपनी नयी खडाऊं यहाँ छोड़ कर चला गया है.” तभी एक आश्रमवासी उनके पास आया और बोला – “बापू! यह नयी खडाऊं की जोड़ी मैं आपके लिये ही लाया हूँ. आपको वह भारी खडाऊं पहनने में तकलीफ होती थी. मुझसे यह देखा नहीं गया, इसलिए मैंने ही उसे हटाकर इस नयी जोड़ी को वहां रख दिया था.”
इस पर गांधीजी बोले –“आश्रम के चारों तरफ रुपयों की बरसात हो रही है. इसलिए तो तुम्हें नयी जोड़ी खडाऊं लाने की सूझी. क्या तुम्हें यह पता है कि जो लोग रूपये भेजते हैं उनको यह विश्वास है कि उनके पाई पाई का यहाँ सदुपयोग हो रहा है? लेकिन यहाँ तो उनके साथ विश्वासघात हो रहा है.”
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यह सुनकर वह आश्रमवासी लज्जित हो गया. उसे अपनी गलती का एहसास हो गया. उसने कसम खाई कि आगे से वह बापू के आदेश का पालन करते हुए आश्रम के पाई पाई का सदुपयोग करेगा.
आज लोग सार्वजनिक जीवन में यदि इस सिद्दांत का पालन करें तो पता नहीं कितने जरूरतमंद लोगों का कल्याण हो जाए. आपको यह प्रेरक प्रसंग पढने के लिये धन्यवाद!
manvendra Singh says
very nice post
Rajeev Moothedath says
Gandhiji was one of a kind! Thanks for sharing!