प्रस्तुत पोस्ट Yajurveda Sacred Quotes in Hindi यजुर्वेद के पवित्र विचार में हम यजुर्वेद में वर्णित कुछ विचारों से अवगत होंगे. जैसा कि आपको पता होगा कि यजुर्वेद हिंदुओं का एक अति महत्वपूर्ण धर्मग्रन्थ है। ऋग्वेद के बाद यजुर्वेद चार वेदों में अपना दूसरा स्थान रखता है। इसमें यज्ञ की विधि से संबंधित मूल प्रक्रिया को गद्य और पद्य में मन्त्र शैली में दिया गया है।
यजुर्वेद का प्रकाश वायु ऋषि के हृदय में हुआ था। यह कर्मकाण्ड प्रधान है। यजुर्वेद कर्मवेद है। पहले ही मंत्र – “सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्मणे”- से श्रेष्ठतम कर्मों को करने का आदेश दिया गया है। अन्त में भी कर्म करने पर बल दिया गया है – “कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छत समाः।”
अर्थात् मनुष्य को चाहिए कि वह इस संसार में सौ वर्ष तक कर्म करते हुए ही जीने की इच्छा करें।
जैसा कि कहा गया है – यजुर्वेद कर्मकाण्ड प्रधान धर्मग्रन्थ है। इसमें धर्मनीति, राजनीति, अर्थनीति, कला-कौशल तथा मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त सभी कर्मों का वर्णन है। इसकी अध्याय संख्या 40 और मंत्र संख्या 1975 है। अधिकांश मंत्र यज्ञ के मंत्र हैं।
यजुर्वेद के पवित्र विचार
1. राजा, प्रजा और सेना जन मनुष्यों से सदा सत्यप्रिय वचन कहें। उनको धन दें। उनसे धन लें, शरीर और आत्मा का बल बढ़ा और शत्रुओं को जीत कर धर्म से प्रजा को नित्य पा लें।
2. इस संसार में ऐश्वर्य पाने के लिए निरंतर उद्यत रहें और आपस में हिलमिल के पृथ्वी आदि पदार्थों से रत्नों को प्राप्त हों।
3. अध्यापक, उपदेशक और राज पुरुषों को चाहिए कि पढ़ाने, शिक्षा, उपदेश और दंड से निरंतर विरोध का विनाश करें।
4. मनुष्यों को चाहिए कि सदैव बलकारी आरोग्यप्रद अन्न का सेवन करें और दूसरों को देखें। मनुष्य तथा पशुओं के सुख और बल को बढ़ावें।
5. दिन हमारे लिए सुखकर हों, रात्रि सुखकर हों।
इसे भी पढ़ें: ब्रह्मा कुमारीज के दिव्य विचार
6. कर्म करते-करते इस संसार में सौ वर्ष जीने की इच्छा रखें।
7. प्राणी को अपने शरीर से किसी को पीड़ित नहीं करना चाहिए।
8. जो धर्मात्मा व सबके उपकार करने वाले मनुष्य हैं, उनको भय कहीं नहीं होता और शत्रुओं से रहित मनुष्य का कोई शत्रु भी नहीं होता।
9. गृहस्थों को उचित है कि वैद्यगण, शूरवीर और यज्ञ को सिद्ध करने वाले मनुष्यों को बुला कर उनकी यथावत् सत्कारपूर्वक सेवा करके उनसे उत्तम-उत्तम विद्या व शिक्षाओं को निरंतर ग्रहण करें।
10. आलस्य को सर्वथा छोड़ कर पुरुषार्थ ही में निरंतर रहकर मूर्खपन को छोड़ कर वेद-विद्या से शुद्ध की हुई वाणी के साथ बरते और परस्पर प्रीति करके एक-दूसरे की सहायता करें।
11. त्रिलोकी के पदार्थों को पुष्ट करने वाले विद्या-क्रियामय यज्ञ का अनुष्ठान करके स्वयं सुखी रहें और अन्य सबको सुखी रखें।
12. किसी मनुष्य को कुटिलगामी सर्पादि दुष्ट जीवों के समान धर्म मार्ग में कुटिल न होना चाहिए, किन्तु सर्वदा सरल भाव से ही रहना चाहिए।
Read More:
- Raskhan Quotes in Hindi भक्तकवि रसखान के अनमोल विचार
- Sri Aurobindo Quotes in Hindi श्री अरविंद के अनमोल विचार
- Raja Ram Mohan Roy Quotes in Hindi राजा राम मोहन राय
- Maharshi Balmiki Quotes in Hindi महर्षि बाल्मीकि के अनमोल वचन
- Patanjali Yoga Quotes in Hindi योगाचार्य पतंजलि उद्धरण
- Ramkrishna Paramhans Quotes for Betterlife
- Krishna Dvaipayana Ved Vyas Quotes in Hindi कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास के अनमोल विचार
- गुरु नानक देव के अनमोल वचन
- Ramana Maharshi Quotes in Hindi महर्षि रमण के श्रेष्ठ विचार
Join the Discussion!