प्रस्तुत पोस्ट Lord Krishna Guru Maharishi Garg Biography in Hindi महामुनि महर्षि गर्ग के जन्मोत्सव पर विशेष रूप से तैयार की गयी है. उम्मीद ही नहीं, पूर्ण विश्वास है यह विशेष आलेख आपको पसंद आएगा.
महर्षि गर्गाचार्य ऋषि ज्योतिष शास्त्र के प्रधान ज्ञाता एवं भगवान श्री कृष्ण के कुलगुरु

हमारे देश भारत को ऋषियों मुनियों का देश कहा जाता है। इन्हीं महान ऋषियों की देन व उनकी शिक्षा के कारण महान भारत देश विश्व गुरु रहा है। भारत की दिव्य भूमि कई महान ऋषियों, मुनियों व गुरुओं की तपोभूमि व कर्म भूमि रही है। ऐसे ही महान महान ऋषि थे महामुनि गर्ग या गर्गाचार्य जी जो ज्योतिष शास्त्र के महान आचार्य व गणितज्ञ थे।
अखिल ब्रह्मांड से लेकर सूक्ष्म पिण्ड पर्यन्त ज्योतिष महाविज्ञान का क्षेत्र है। अनादि काल से शाश्वत चली आ रही इस महा विज्ञान गणित भी शाश्वत सत्य है। संसार की समस्त विद्याएँ इसमें समाई हुई है। जिन भारतीय दिव्य ऋषियों ने वेद ज्ञान अपने तपोबल से प्राप्त किया जिसमें महर्षि गर्ग का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के प्रधान प्रवर्तक भगवान गर्गाचार्य जी रहे है जो अठारह ज्योतिष शास्त्र वैदिक प्रवर्तकों जैसे ब्रह्मा, गर्ग, पराशर, कश्यप, सूर्य, मरीचि, मनु, वशिष्ठ, अत्रि, नारद, अंगिरा, लोमश, पोलिश, च्यवन , भृगु, शौनक, व्यास, एवं यवन आदि गुरु परम्परा में प्रमुख रहें हैं। ऐसा महर्षि ने अपने शास्त्र होरा में लिखा हैं-
” वेदेभ्य समुद्धृत्य ब्रह्मा प्रोवाच विस्तृतम् । गर्गस्तमा मिदं प्राह: मया तस्माद्यथा: तथा ।। “
अर्थात् भगवान ब्रह्मा जी ने वेद से निकाल कर नैत्र रूप वेदांग ज्योतिष शास्त्र को सर्व प्रथम महर्षि गर्गाचार्य ऋषि को प्रदान किया । ज्योतिष शास्त्र में महर्षि गर्ग ने महाग्रन्थ श्री गर्ग होरा की रचना की थी जो ज्योतिष का महान शास्त्र है। इस प्रकार महर्षि गर्गाचार्य अठारह वेदांग ज्योतिष शास्त्र के प्रवर्तकों में गुरु सिद्ध हुए। भगवान गर्गाचार्य जी न केवल ज्योतिष शास्त्र के आचार्य थे, वरन् चार वेद, अठारह पुराण, एक सौ आठ उपनिषद सहित षट् दर्शन के पारगड्त महान आचार्य रहे है।
महर्षि महामुनि गर्ग ऋषि षट् वेदांग के भी पूर्णत: आचार्य थे। यह 88 हजार ऋषियों मे एकदम से सभी सद्गुण एक साथ केवल ” महर्षि गर्गाचार्य जी” में होने के से वे सर्व ब्रह्मर्षियों में वे भगवान ” गुरु ” कहलाये। वे ही महर्षि गर्गाचार्य ऋषि द्वारिकाधाम के राजा भगवान वासुदेव श्री कृष्ण के राजगुरु पद से सुशोभित हुए। इसी वजह से महर्षि महामुनि गर्गाचार्य ऋषि के वंशज “गुरु ब्राह्माण” कहलाते हैं।
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गर्ग ब्राह्मण का आज भी ज्योतिष शास्त्र का ज्ञान रखते जो इनकी पारम्परिक विद्या देन हैं। महर्षि महामुनि गर्ग ऋषि के वंश जन्म लेने वाले प्रखर ज्योतिर्विद ज्योतिषाचार्य व महायज्ञाचार्य पण्डित मोहनलाल जी गर्ग जोधपुर राजस्थान से जगद्गुरु भगवान गर्गाचार्य पंचाग पीठम् से ” श्री गर्ग पंञ्चांगम् ” का पिछले कई वर्षों से संपादन करते आ रहे हैं जो महर्षि गर्ग को समर्पित है।
महर्षि महामुनि गर्ग ऋषि भगवान श्री कृष्ण के कुल यदुवंशी के राजगुरु थे। इन्होंने ने भगवान श्री कृष्ण का नामकरण संस्कार व भविष्य वर्णन कर विभिन्न लीलाओं का आगम भविष्यवाणी की थी। इन्होंने नंद परिवार वासुदेव पर कंस का संकट आने पर स्वयं नंदबाबा के महल जाकर भविष्य वर्णन बताया था। इन्होंने श्री कृष्ण के जीवन पर आधारित संस्कृत में “गर्ग संहिता” नामक ग्रन्थ लिखा था जो सर्व लोकप्रिय है।
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श्री कृष्ण भगवान पर इनके द्वारा रचित “गर्ग संहिता” न केवल ज्योतिष पर आधारित शास्त्र है, बल्कि इसमें भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का भी वर्णन किया गया है। गर्ग संहिता में श्रीकृष्ण चरित्र का विस्तार से निरुपण किया गया है। इस ग्रन्थ में तो यहां तक कहा गया है, कि भगवान श्रीकृष्ण और राधा का विवाह हुआ था।
महर्षि गर्ग मुनि ने ही श्री शंकर का विवाह पार्वती के साथ सम्पन्न करवाया था। यह महाराजा हिमाचल के और पृथ्वी के प्रथम राजा माने जाने वाले पृथु के कुलगुरु व राजगुरु पद से सुशोभित रहे है। ऐसा माना जाता है कि महर्षि महामुनि गर्ग ऋषि आज भी हिमालय की गुफाओं में ध्यानस्थ हैं क्योंकि किसी भी शास्त्र में इनके देहांत का प्रसंग नहीं आता है। प्रतिवर्ष अनवरत महर्षि महामुनि गर्ग ऋषि की भादवा सुदी पंचमी को देशभर में जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
गर्ग संहिता में शरीर के अंग लक्षण के आधार पर ज्योतिष फल विवेचन किया गया हैं। गर्ग संहिता यदुवंशियों के आचार्य गर्ग मुनि की रचना है। यह संहिता मधुर श्रीकृष्णलीला से परिपूर्ण है। इसमें राधाजी की माधुर्य-भाव वाली लीलाओं का वर्णन है। श्रीमद्भगवद्गीता में जो कुछ सूत्ररूप से कहा गया है, गर्ग-संहिता में उसी का बखान किया गया है। अतः यह भागवतोक्त श्रीकृष्णलीला का महाभाष्य है। भगवान श्रीकृष्ण की पूर्णाता के संबंध में गर्ग ऋषि ने कहा है –
यस्मिन सर्वाणि तेजांसि विलीयन्ते स्वतेजसि। त वेदान्त परे साक्षात् परिपूर्णं स्वयम्।।
जबकि श्रीमद्भागवत में इस संबंध में महर्षि व्यास ने मात्र कृष्णस्तु भगवान स्वयम् — इतना ही कहा है।
श्रीकृष्ण की मधुरलीला की रचना हुई दिव्य रस के द्वारा उस रस का रास में प्रकाश हुआ है। श्रीमद्भागवत् में उस रास के केवल एक बार का वर्णन पाँच अध्यायों में किया गया है; जबकि इस गर्ग-संहिता में वृन्दावन में, अश्व खण्ड के प्रभाव सम्मिलन के समय और उसी अश्वमेध खण्ड के दिग्विजय के अनन्तर लौटते समय तीन बार कई अध्यायों में बड़ा सुन्दर वर्णन है। इसके माधुर्य ख्ण्ड में विभिन्न गोपियों के पूर्वजन्मों का बड़ा ही सुन्दर वर्णन है और भी बहुत-सी नयी कथाएँ हैं। यह संहिता भक्तों के लिये परम आदरणीय है; क्योंकि इसमें श्रीमद्भागवत के गूढ़ तत्त्वों का स्प्ष्ट रूप में उल्लेख है।
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महर्षि गर्गाचार्य प्रसिद्ध मन्त्रद्रष्टा ऋषि हैं। ऋग्वेद ६।४७ सूक्तके द्रष्टा भगवान् गर्ग ही हैं। इनका प्रसिद्ध आश्रम कुरुक्षेत्र में देवनदी सरस्वती के तट पर निर्दिष्ट है। ऐसी प्रसिद्धि है कि इन्होंने यहीं ज्ञान प्राप्त किया और ज्योतिषशास्त्र के ग्रन्थों की रचना की। गर्गसंहिता-जैसा परम पवित्र ऐतिहासिक ग्रन्थ महर्षि गर्गाचार्य की ही कृति है। महर्षि गर्ग परम शिवभक्त थे। ये पृथ्वी के प्रथम राजा महाराज पृथु व महादेवी पार्वती के पिताश्री राजा हिमाचल के और भगवान श्री कृष्ण और यदुवंशियोंके गुरु तथा कुलपुरोहित कुलगुरु रहे हैं।
गोत्रकार ऋषियों में आपकी गणना विशिष्ट रूप में होती है। हिमालय के नैनीताल नैनी देवी के उद्गम स्थल से प्रचलित कथा के अनुसार महर्षि गर्ग ने अपने आश्रम गर्गाचंल का उल्लेख है जहां नैनीताल घाटी पर तीन ऋषि अत्रि, अगस्त्य व पुल्हस्त्य ऋषि आए थे पूजा पाठ करने पर उन्हे जल नहीं मिला तो महर्षि गर्ग ऋषि ने अपने तपोबल से मानसरोवर से निकाल वहां झील बनाई आज भी त्री-रिख यानि तीन ऋषि नाम से प्रसिद्ध है।
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इसी तरह वर्तमान झारखंड राज्य के बोकारो जिला में कसनार नामक जगह पर उनका आश्रम था जो द्वापर युग में महामुनि महर्षि गर्ग ऋषि की यपोस्थली रहा है जहां उन्होंने एक सत्रह एकड़ में सरोवर तालाब कलौंदीबांध बनाया था आज भी मौजूद है। जिसका पौराणिक महत्व बताते हैं कि कलौंदीबांध तालाब का निर्माण द्वापर युग में महर्षि गर्ग के मार्गदर्शन में हुआ था।
श्रीकृष्ण जब कंस को मारने निकले तो इसी स्थल पर यज्ञ किया था। जल की कमी को देखते हुए उन्होंने यहां तालाब बनवाने का निर्णय लिया। इसका जिम्मा तेलमुंगा के धनी व्यक्ति कलौंदी साव को दिया गया। इन्होंने ग्रामीणों के सहयोग से बड़े तालाब का निर्माण कराया था। उसका नाम कलौंदी बांध तालाब हुआ।
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कालांतर में कंसमार शब्द का अपभ्रंश कसमार बना तथा गर्ग से गरगा नदी हुआ। बताया यह भी जाता है कि बांध में सोने की कलश में चांदी के सिक्के भरकर एक मुर्गे को तालाब में छोड़ा गया था जो बांध के चारों ओर पानी में तैरता था। उस सोने के कलश को छूने की मनाही थी, अगर कोई छूए तो उसे देवता का कोपभाजन होना पड़ता था। निर्माण के सात दिन तक भारी आंधी-पानी से तालाब का मेड टूट गया। यहीं से गरगा नदी का उद्गम स्थल है जो कसमार व जरीडीह प्रखंड के कई गांवों से गुजरती हुई चास व बोकारो होते हुए लगभग 35 किमी की दूरी तय कर पुपुनकी के पास दामोदर नदी में मिल जाती हैं।
इसी प्रकार महर्षि गर्ग ऋषि ज्योतिष शास्त्र के साथ ही कई कुलों के कुल गुरू रहे है अपनी प्रखर तपोबल से सबको मार्गदर्शन दिया। महर्षि गर्गाचार्य ऋषि से भगवान श्री कृष्ण ने शिक्षा ग्रहण करके संपूर्ण प्रजा का पालन किया। आज महामुनि महर्षि गर्ग ऋषि के जन्मोत्सव पर उनकी शिक्षा की बहुत प्रासंगिकता हैं सभी को हार्दिक शुभकामनाओं सहित।
‘महर्षि महामुनि गर्गाचार्य जी को नमन’
जय श्री गर्गाचार्य भगवान्, आप हो जग में ऋषि महान ।
वेद वेदांग ज्योतिष शास्त्र के ज्ञाता, सब शास्त्र गुणगान गाता ।।
महर्षि गर्गाचार्य ऋषि की वंदना गाऊं, आंनद मंगल हर्ष से ध्याऊ।
श्री ब्रह्मा जी के पुत्र कहलाये, श्री कृष्ण के गुरु परम् पद पाये ।।
चार वेद अठारह पुराण, एक सौ आठ उपनिषद षट् दर्शन ज्ञाता।
अठासी हजार ऋषि मुनि के, श्रेष्ठ परम् गुरु पद आपने पाया ।।
श्री कृष्ण के आप परम् गुरू पद पाया, गोकुल मथुरा नगर बसाया।
कंस के कष्ट हद भारी छाया, श्री कृष्ण को दी शिक्षा किया सफाया।।
हिमालय में गर्गाचंल आश्रम बनाया, नैनीताल नगर में आया।
अत्रि अगस्य पुलह ऋषि आए, मानसरोवर ध्यान धरकर जल लाए।।
ऋषि मुनि को स्नान पूजा पाठ कराया,त्रि-ऋषि गर्ग झील बनाया।
द्वापर युग गर्ग आश्रम की शोभा नवखंड, आया कसनार बोकरो झारखंड।।
श्री गर्ग सरोवर कलौंदी बांध हद भारी, चौबीस नगर जल पीये नर-नारी ।
‘ रावत ‘ कर जोड़ नित वंदन गावे, धर ध्यान परम् सुख पावे ।।
आलेख लेखक – परिचय






बेहद उपयोगी एवं अलभ्य सामग्री के प्रकाशन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।बंशीराम गर्ग
Vartaman me Rajasthan rajya k dakshin bhag m Garg brahman rehte h . Ye karm kand , jyotishi , Grah nakshatro ki puja , adi pujan vidhi karate h . Ye h brahman hi parantu ye sarkar ke anusar SC k ate h. To inka brahman hote huye bhi SC m rehne ka kya karan h .