प्रस्तुत पोस्ट Veer TejaJi Biography in Hindi में मैं स्वतंत्र लेखक सूबेदार रावत गर्ग उण्डू आज आपकी सेवा में वीर तेजाजी महाराज का इतिहास, कथा व मेले के बारे मे जुड़ी जानकारी पर केंद्रित विशेष आलेख पेश कर रहा हूं। आशा है कि आपको पंसद आएगा। जाट समुदाय के आराध्य देव की महिमा न्यारी है।
लोकदेवता वीर तेजाजी महाराज समाज सुधारक और महान गौ रक्षक
जाट समुदाय के आराध्य देव वीर तेजाजी की याद में तेजा दशमी पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। उत्तर भारत के अधिकतर राज्यों में तेजादशमी पर्व की धूम रहेगी। तेजा दशमी का पर्व भाद्रपद शुक्ल दशमी तिथि को मनाते हैं।
वीर तेजाजी महाराज लोकदेवता
आमजन में लोकदेवता कुंवर तेजल के बारे में कई लोक कथाएँ व गाथाएं प्रचलित हैं। जाट समुदाय के आराध्य देव तेजाजी महाराज को साँपों के देव के रूप में पूजा जाता है। मान्यता है कि कितना भी जहरीला सांप काट जाए यदि तेजा के नाम की तांती बाँध दी जाए तो वह जहर उतर जाता हैं।
श्री तेजा दशमी का महत्व
लोकदेवता तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खरनाल गांव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ला, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था। तेजाजी के माता-पिता को कोई सन्तान नहीं थी, उन्होंने शिव पार्वती की कठोर तपस्या की, जिसके परिणाम-स्वरूप तेजाजी का उनके घर दिव्य अवतरण हुआ। माना जाता है जब वे दुनिया में आए तो एक भविष्यवावाणी में कहा गया किया- भगवान् ने आपके घर अवतार लिया है। ये अधिक वर्ष तक इस रूप में नहीं रहेगे। बचपन में ही तेजाजी का विवाह पनेर के रायमल जी सोढा के यहाँ कर दिया गया था।
तेजाजी के जन्म के बारे मे कहा है कि —
” जाट वीर धौलिया वंश गांव खरनाल के मांय।
आज दिन सुभस भंसे बस्ती फूलां छाय।।
शुभ दिन चौदस वार गुरु, शुक्ल माघ पहचान।
सहस्र एक सौ तीस में प्रकटे अवतारी ज्ञान।।”
भाद्रपद शुक्ल दशमी तिथि को हुआ निर्वाण
तेजादशमी यानी भाद्रपद शुक्ल दशमी तिथि को ही उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया था। प्रतिवर्ष भाद्रपद शुक्ल 10 (तेजा दशमी) से पूर्णिमा परबतसर पशु मेले का आयोजन इन्हीं की स्मृति में होता है।
वीर तेजाजी महाराज की जीवनी Veer TejaJi Biography in Hindi
लोकदेवता वीर कुंवर तेजाजी जाट समुदाय के आराध्य देव हैं। मुख्य रूप से राजस्थान, हरियाणा गुजरात और मध्यप्रदेश में मुख्य रूप से पूजे जाते हैं। किसान अपनी खुशहाली के लिए खेती में हल जोतते समय तेजाजी महाराज की पूजा करता हैं। तेजाजी अपने वचन के लिए सबसे लोकप्रिय देवता हैं। जिन्होंने सर्प देवता को अपने कहे वचन के अनुसार गायों को छुड़ाकर अपनी जान कुर्बान की थी। इस कारण आज भी सर्पदंश होने पर तेजाजी महाराज की मनौती मांगी जाती हैं। उनकी घोड़ी का नाम लीलण एवं पत्नी का नाम पेमल था।
ज्ञात जानकारी के मुताबिक वीर तेजाजी का जन्म 29 फरवरी 1074 (माघ शुक्ल 14, विक्रम संवत् 1130) को नागौर जिले के खरनाल ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम थिरराज तथा माँ का नाम रामकुंवरी था। लोगों में प्रचलित मान्यता के अनुसार इनका विवाह पनेर ग्रामवासी रायमल जी की पुत्री पेमल से हुआ था। कम उम्र में ही विवाह हो जाने के कारण उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी।
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इस राज को तेजाजी से छुपाये जाने के पीछे वजह यह थी, कि किसी कारण से थिरराज और पेमल के मामा के बीच झगड़ा हो गया, खून की प्यासी तलवारें चलने से इसमें पेमल के मामा मारे गये थे। इसी वजह से उनको अपने विवाह प्रसंग के बारे में किसी ने नहीं बताया था।
धौलिया कुल में जन्मे तेजाजी खरनाल के शासक थे। उनके पास 24 ग्राम का साम्राज्य था। एक बार खेत में हल जोतते समय उनकी भाभी द्वारा देरी से खाना पहुंचाने पर तेजाजी को गुस्सा आ गया, तथा उन्होंने देरी की वजह जाननी चाही, तो तेजाजी की भाभी उनके वैवाहिक प्रसंग के बारे में बताते हुए ताने भरे स्वर कहे-
इस पर तेजाजी अपनी घोड़ी लीलण पर सवार होकर ससुराल की ओर चल पड़े। वहां पहुँचने पर सास द्वारा उन्हें अनजान में श्राप भरे कड़वे शब्द कहे जाते हैं, इस पर वो क्रोधित होकर वापिस चल देते हैं। पेमल को जब इस बात का पता चलता हैं। वो तेजाजी के पीछे जाती हैं, तथा उन्हें एक रात रुकने के लिए मना देती हैं। तेजाजी ससुराल में रुकने की बजाय लाछा नामक गूजरी के यहाँ रुकते हैं। संयोगवश उसी रात को लाछा की गायें चोर चुरा ले जाते हैं।
दयालु थे तेजा जी महाराज
लाछा गूजरी जब तेजाजी को अपनी गायें छुड़ाने की विनती करती हैं, तो तेजाजी गौ रक्षार्थ खातिर रात को ही चोरों का पीछा करने निकल जाते हैं। राह में उन्हें एक सांप जलता हुआ दिखाई दिया, जलते सांप को देखकर तेजाजी को उस पर दया आ गई तथा भाले के सहारे उसे आग की लपटों से बाहर निकाल दिया। सांप अपने जोड़े से बिछुड़ जाने से अत्यधिक क्रोधित हुआ तथा उसने तेजा जी को डसने की बात कही।
तेजाजी ने नागदेवता की इच्छा को बड़ी विनम्रता से स्वीकार करते हुए, सांप से गायें छुड़ाने के बाद वापिस आने का वचन देते हैं। इस पर नाग उनकी बात मान लेते हैं। तेजाजी चोरों से भयंकर युद्ध करते हैं। इससे उनका सारा शरीर लहुलुहान हो जाता है, मगर सारी गायों को छुड़ाकर वापिस ले आए। इसके बाद अपने वचन का पालन करने के लिए नाग के पास पहुंचते हैं और उसे डसने को कहते हैं। नाग तेजाजी के घायल शरीर को देखकर पूछते हैं, मै कहाँ डंक मारू आपका शरीर तो लहूलुहान हो चुका है।
इस पर तेजाजी अपनी जीभ निकालकर जीभ पर डंक मारने को कहते हैं। इस प्रकार किशनगढ़ के पास सुरसरा में भाद्रपद शुक्ल 10 संवत 1160, तदनुसार 28 अगस्त 1103 के दिन तेजाजी की मृत्यु हो जाती हैं। सांप अपने वचन के अनुसार कुंवर तेजाजी को साँपों के देवता के रूप में पूजे जाने का वरदान देते हैं। आज भी तेजाजी के देवरा व थान पर सर्प दंश वाले व्यक्ति के धागा बाँधा जाता है तथा पुजारी जहर को चूस कर निकाल लेते हैं। वीर तेजाजी महाराज महान गौ भक्त और समाज सुधारक रहे हैं। उनको सादर नमन्।
जय वीर तेजाजी महाराज ।
Post Credit : सूबेदार रावत गर्ग उण्डू, (सहायक उपानिरीक्षक – रक्षा सेवाएं व स्वतंत्र लेखक, रचनाकार, साहित्य प्रेमी), श्री गर्गवास राजबेरा, बाड़मेर, राजस्थान ।
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