Pray Lord Shiva on MahaShivratri in Hindi / महाशिवरात्रि महापर्व
कर्पूरगौरं करुणावतारं, संसार सारम् भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे, भवं भवानीसहितं नमामि ॥

Lord Shiva, Parvati Mata and Lord Ganesha
महाशिवरात्रि हिन्दुओं का महापर्व है. लोग इस दिन सदाशिव भोले की विशेष पूजा अर्चना करते हैं. आइए, जानते हैं महाशिवरात्रि महापर्व के महात्म्य से संबंधित कथा :
महाशिवरात्रि महात्म्य कथा :
एक बार मैया पार्वती और भगवान भोलेनाथ कैलाश पर विराजमान थे. माता पार्वती ने भगवान शंकर से पूछा – ‘हे महादेव! अगर मृत्यु लोक के प्राणी आपकी सहज कृपा प्राप्त करना चाहें तो उसके लिए पूजन का सबसे सरल तरीका क्या होना चाहिए?’
जबाब में भगवान शंकर ने माता पार्वती को शिवरात्रि’ की यह कथा सुनाई – ‘एक गाँव में एक शिकारी रहता था। वह अपने कुटुम्ब का लालन पालन पशुओं की हत्या करके करता था. एक बार उसे कुछ रुपयों की जरुरत पड़ी. उसने एक साहूकार से ऋण लिया, परन्तु समय पर उसका ऋण न चुका सका। साहूकार के आदमी उसे पकड़कर ले गए और एक शिवमठ में बंद कर दिया. संयोगवश उसी दिन महाशिवरात्रि थी.
वहां हो रही शिव संबंधी धार्मिक बातें शिकारी भी ध्यानपूर्वक सुनता रहा। चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी। शाम को साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और ऋण जल्द से जल्द चुकाने को कहा. शिकारी शीघ्र सारा ऋण लौटा देने का वचन देकर बंधन से छूट गया.
रोज की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन पूरे दिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था. शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल के पेड़ के पास पड़ाव बनाने लगा. बेल के पेड़ के नीचे एक शिवलिंग था जो बेल के पत्तों से ढँका था. शिकारी उसे देख न सका.
पड़ाव बनाते समय बेल के पेड़ के पत्ते और टहनियाँ टूटकर संयोग से शिवलिंग पर गिरीं. इस प्रकार पूरे दिन भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत और पूजन दोनों हो गया.
एक पहर रात बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची. शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची, मृगी बोली – ‘मैं गर्भिणी हूँ और शीघ्र ही प्रसव करूँगी. तुम एक साथ दो जीवों की हत्या क्यों करना चाहते हो? मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार डालना.’ शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में चली गई.
कुछ समय बाद एक और मृगी उधर से निकली. शिकारी शिकार देख प्रसन्न हो गया. समीप आने पर उसने धनुष पर बाण चढ़ाया. तब उसे देख मृगी ने विनम्रतापूर्वक निवेदन किया- ‘हे शिकारी! मैं थोड़ी देर पहले ही ऋतु से निवृत्त हुई हूँ. कामातुर विरहिणी हूँ. अपने प्रिय की खोज में भटक रही हूँ. मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही तुम्हारे पास वापस आ जाऊँगी.’
शिकारी ने उसे भी जाने दिया. दो बार शिकार को खोकर वह चिंता में पड़ गया. रात् का अंतिम पहर बीत रहा था. तभी एक और मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली. शिकारी के लिए यह अनोखा अवसर था. उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगाई, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली – ‘हे शिकारी! मैं इन बच्चों को पिता के पास छोड़कर लौट आऊँगी। इस समय मुझे मत मारो.’
शिकारी बोला, ‘मैं ऐसा मूर्ख नहीं कि सामने आए शिकार को छोड़ दूँ. पहले भी मैं दो बार अपना शिकार खो चुका हूँ. मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे.’
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जबाब में मृगी ने फिर कहा – ‘जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ. मेरा विश्वास करो. मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौट आऊगी.’
मृगी की बातें सुनकर शिकारी को उस पर दया गई. उसने उसे भी जाने दिया. शिकार के अभाव में बेल के पेड़ पर बैठा शिकारी बेल पत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था. भोर होने पर एक हष्ट-पुष्ट मृग को उसी रास्ते पर आते देखा. शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह ज़रूर करेगा.
शिकारी को धनुष वाण लिए देखकर मृग विनीत स्वर में बोला -’ हे शिकारी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों तथा छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में देर न करो, ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े. मैं उन मृगियों का पति हूँ. यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान दे दो, मैं उनसे मिलकर तुम्हारे लौट आऊँगा.’
इतना सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-क्रम घूम गया। उसने मृग को सारी कथा सुना दी. तब मृग ने कहा – ‘मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरे मरने से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी. अतः जिस प्रकार तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर जाने दिया है, उसी प्रकार मुझे भी जाने दो. मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ.’
रात्रि जागरण, उपवास और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से शिकारी का क्रूर हृदय निर्मल हो गया था. उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था. धनुष – बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गए. भगवान शिव की कृपा से उसका हिंसक हृदय करुणा से भर गया. वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की आग में जलने लगा.
कुछ देर पश्चात मृग सपरिवार शिकारी के सामने उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभाव देखकर शिकारी को बहुत ग्लानि हुई. वह बिलख बिलख कर रोने लगा. उस मृग परिवार का शिकार न कर शिकारी ने अपने कठोर हृदय से जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल और दयालु बना लिया.
देव लोक से समस्त देवी -देवता गण इस घटना को देख पुष्प की वर्षा करने लगे. शिकारी और मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुए. यह है अनजाने में की गई शिव भक्ति का फल. जो भगवान् भोले नाथ की दिल से पूजा अर्चना करते हैं उनकी समस्त मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
महाशिवरात्रि पूजन विधि
शिवपुराण के अनुसार व्रत करने वाले पुरुष को महाशिवरात्रि के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान-संध्या आदि कर्म करना चाहिए. मस्तक पर भस्म का त्रिपुण्ड्र तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करें. पास के शिवालय में जाकर शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन एवं शिव को नमस्कार करना चाहिए. तत्पश्चात् महाशिवरात्रि व्रत का इस प्रकार संकल्प करना चाहिए –
शिवरात्रिव्रतं ह्यतत् करिष्येऽहं महाफलम्।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते॥
इस व्रत यानि महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प करके दूध से स्नान और `ओम हीं ईशानाय नम:’ का जप करें. द्वितीय प्रहर में दधि स्नान करके `ओम हीं अधोराय नम:’ का जप करें. तृतीय प्रहर में घृत स्नान एवं मंत्र `ओम हीं वामदेवाय नम:’ तथा चतुर्थ प्रहर में मधु स्नान एवं `ओम हीं सद्योजाताय नम:’ मंत्र का जप करें.
महाशिवरात्रि मंत्र और समर्पण
महाशिवरात्रि पूजा विधि के दौरान हर समय ‘ओम नम: शिवाय’ एवं ‘शिवाय नम:’ मंत्र का जप करते रहना चाहिए. ध्यान, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, दूध स्नान, दधि स्नान, घृत स्नान, गंधोदक स्नान, शर्करा स्नान, पंचामृत स्नान, शुद्धोदक स्नान, अभिषेक, वस्त्र, यज्ञोपवीत, उपवस्त्र, बेल पत्र, धूप दीप नैवेद्य, चंदन का लेप, ऋतुफल, तांबूल-पुंगीफल, यथाशक्ति दक्षिणा रख कर ’समर्पयामि’ कहकर पूजा संपन्न करें. कपूर आदि से आरती पूर्ण कर प्रदक्षिणा, पुष्पांजलि, शाष्टांग प्रणाम कर महाशिवरात्रि पूजन कर्म शिवार्पण करें.
इस व्रत को प्राप्त काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यन्त करना चाहिए. रात् के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने से जागरण, पूजा और उपवास तीनों कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है और भगवान शिव की विशेष कृपा और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.
श्री शिव चालीसा
दोहा: श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला । सदा करत संतन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके । कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये । मुण्डमाल तन छार लगाये ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे । छवि को देख नाग मुनि मोहे ॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी । बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी । करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे । सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ । या छवि को कहि जात न काऊ ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा । तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी । देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
तुरत षडानन आप पठायउ । लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई । सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं । सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई । अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला । जरे सुरासुर भये विहाला ॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई । नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा । जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी । कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई । कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर । भये प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनंत अविनाशी । करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै ॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो । यहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो । संकट से मोहि आन उबारो ॥
मातु पिता भ्राता सब कोई । संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु अब संकट भारी ॥
धन निर्धन को देत सदाहीं । जो कोई जांचे वो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी । क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन । मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं । नारद शारद शीश नवावैं ॥
नमो नमो जय नमो शिवाय । सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई । ता पार होत है शम्भु सहाई ॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी । पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई । निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे । ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा । तन नहीं ताके रहे कलेशा ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे । शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे । अन्तवास शिवपुर में पावे ॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी । जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
दोहा : नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥
– इति शिव चालीसा –
– श्री त्रिगुण शिवजी की आरती –
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय…
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय…
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय…
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी ।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी ॥ ॐ जय…
श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय…
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥ ॐ जय…
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥ ॐ जय…
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा ।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा ॥ ॐ जय…
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा ।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ॥ ॐ जय…
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला ।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ॥ ॐ जय…
काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ॥ ॐ जय…
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ॥ ॐ जय…
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Hara Hara Mahadeva. God bless you always. My belated Shivratri wishes.