क्या आप वास्तु शास्त्र में विश्वास करते हैं?
जब हम वास्तु शास्त्र पर बात करते हैं तो कुछ लोग इसके औचित्य पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हैं. उनका दलील यह होता है कि जब समूची पृथ्वी एक है तो अलग अलग भूमि खंड में गुण अथवा दोष कैसे हो सकता है?
एक विख्यात वास्तुविद से जब यह प्रश्न पूछा गया तो उन्होंने इसके पक्ष में कई बातें बताईं.
1. मनुष्य की उत्पत्ति कैसे होती है? स्त्री-पुरुष के अंडाणु और शुक्राणु के मिलन से एक नए प्राणी का जन्म होता है. लेकिन उस माता पिता के अंश से उत्पन्न बच्चे का स्वाभाव और रूप रंग उनसे अलग होता है यानि उसकी एक अपनी पहचान और अस्तित्व होती है.
2. आपने कलम द्वारा तैयार वृक्ष जरुर देखा होगा, जब वह पौधा बड़ा होकर वृक्ष का रूप लेता है तो उसका एक पृथक अस्तित्व होता है, उसी तरह से पृथ्वी का एक भूखंड होते हुए भी उस भूखंड का अपना पृथक अस्तित्व होता है.
3. एक ही पेड़ पर बहुत सारे फल या फुल लगते हैं. उन सबके आकार, स्वरुप, स्वाद अथवा सुन्दरता एक जैसे नहीं होते हैं, हरेक में कुछ न कुछ अंतर अवश्य होता है. इसी प्रकार एक ही पृथ्वी का टुकड़ा होते हुए भी हरेक भूखंड का अलग अस्तित्व होता है.
4. अमीबा एक एककोशीय जीव है. एक नए अमीबा का निर्माण द्विखण्डन द्वारा होता है और इस प्रकार नए अमीबा का अपना अलग अस्तित्व होता है, उसी प्रकार एक स्वंतंत्र भुख्नद अपने अलग अस्तित्व का निर्माण करते हैं.
5. पृथ्वी पर जितने भी भूखंड हैं उनपर अलग अलग कार्य होते रहे हैं. कही पर भगवान का मंदिर है तो कही पर शमशान, कही पर बुचड खाना है तो कही पर जेल, कही पर सज्जनों का निवास तो कही पर बुरे लोगों का वास. इस सबका एक जैसा गुण तो नहीं होता है, इसलिए भूमि पर हो रहे कार्य से भी भूखंड प्रभावित होता है.
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6. यदि हम फसल की बात करें तो जो भारत में फसल उगाये जाते हैं वह ऑस्ट्रेलिया में नहीं उगते. कुछ ऐसी छेजें है जो भारत में नहीं होती लेकिन अन्य देशों में होती हैं. यह साबित करता है कि भूमि की गुणवत्ता अलग जरुर होती है. कही काली मिट्टी है तो कही लाल, कही उर्वर भूमि है तो कही रेगिस्तान. यह अंतर भूमि को एक दूसरे से अलग करता है.
7. महाभारत में एक कथा है. महाभारत के युद्ध के लिये कृष्ण और अर्जुन भूमि खोजते खोजते कुरुक्षेत्र पहुंचे. उन्होने देखा कि किसान पिता पुत्र खेत को सींच रहे थे. एक जगह पर घेरा टूटने से पानी बह गया. बहाव रुक नहीं पा रहा था तो पिता ने अपने पुत्र को ही कुदाल /फावड़ा से काटकर उस जगह पर डाल दिया और ऊपर से मिट्टी डालकर पानी के बहाव को रोक दिया. श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा – ‘ अर्जुन! यह क्रूर, दयाहीन, हिंसक तथा रिश्तों को ना मानने वाली भूमि है, युद्ध के लिये यही उपयुक्त जगह है.’
इस प्रकार हम पाते हैं कि वास्तु की अवधारणा बिलकुल सत्य है और प्रत्येक भूखंड का अस्तित्व, गुणावगुण पृथक हैं अतः पूर्ण विचार करने के पश्चात ही घर का निर्माण करना शुभ – स्मृधि कारक होता है.
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