आपने दीवार घड़ी या कलाई घड़ी का नाम सुना होगा लेकिन इसके अलावे एक जैविक घड़ी या बायोलॉजिकल घड़ी भी होती है जो हमारे शरीर के अन्दर लगा होता है. इस पोस्ट में हम जानेंगे How to adjust your biological clock?
जब हम एक काम को एक नियत समय पर करने की आदत डाल देते हैं तो यह बायोलॉजिकल घड़ी भी उसी के मुताबिक काम करने लगता है. मान लिया कि आप रोज सुबह 5 बजे जाग जाते हैं तो आपका बायोलॉजिकल क्लॉक आपको 5 बजे जगा देता है. यदि आप डेढ़ बजे लंच करते हैं तो डेढ़ बजते ही आपको भूख लगने लगती है क्योंकि आपका बायोलॉजिकल क्लॉक इसके मुताबिक सेट हो चुका है.
महात्मा गाँधी समय के बड़े पाबंद थे. वे प्रतिदिन सुबह की सैर पर जाते थे. आस पास के लोग यह जान जाते थे कि सुबह के 5 बज गए हैं. यदि हम नियत समय पर काम करने को अपने हैबिट में ले लेते हैं तो हमारा शरीर उस नियत समय के आते ही हमसे वह काम करवाने लगता है न उस वक़्त नींद आती है न ही आलस्य आता है.
इसलिए यह बहुत जरुरी है कि आप अपने महत्वपूर्ण काम का समय निश्चित कर लें :
छात्र अपने पढाई के लिए समय निश्चित कर सकते हैं और उस नियत समय पर पड़ने को अपनी आदत में डाल सकते हैं. एक विद्वान व्यक्ति प्रतिदिन शाम को 7 बजे से १० बजे तक स्वाध्याय करते थे जब उनके पास पढने को कुछ भी नहीं होता था तो वे चुपचाप अपनी स्टडी टेबल पर उस निश्चित समय अवधि तक बैठे रहते थे ताकि बायोलॉजिकल क्लॉक एडजस्ट रहे.
सेल्स के लोग अपने कोल्ड कॉल का समय निश्चित कर सकते हैं और उस समय पर अपने ग्राहक से बात कर सकते हैं.
ऑफिस जानेवाले लोग अपने ऑफिस जाने का वक़्त इस प्रकार से सेट कर सकते हैं कि सही समय पर आराम से ऑफिस पहुँच सकें.
व्यायाम करनेवाले लोग या योग करने वाले लोग अपने योग का समय निश्चित कर सकते हैं जिससे वह सही तरीके से व्यायाम कर सकें.
निश्चित समय पर काम करने के कुछ फायदे हैं ;
काम करने में मजा आने लगता है.
आपके काम करने के दौरान पर्याप्त उर्जा स्तर बना रहता है. हम मानसिक और शारीरिक रूप से उस काम को करने के लिए तैयार होते हैं.
काम करते करते आप उस काम के विशेषज्ञ हो जाते हैं.
समय के साथ ही उस काम को करने के नए तरीके का पता चल जाता है और काम जल्दी हो जाता है.
और ऐसे ही व्यक्ति को प्रकृति भी मदद करने लगती है.आइये हम अपने शरीर के बायोलॉजिकल क्लॉक को अपने काम के हिसाब से सेट करने का प्रयत्न करें. एक बेहतर लाइफ़ के लिए यह बहुत जरुरी हैं.
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