Children Book World Hindi Prerak Story किताबों की अनोखी दुनिया
राघव प्रीत पब्लिक स्कूल का छात्र था. उसे पढने- लिखने के साथ ही साथ खेलने-कूदने में भी बहुत मजा आता था. वह अपने घर में सबका लाडला था. स्कूल में टीचर उसे बहुत प्यार करते थे.
एक दिन राघव दोपहर में स्कूल से लौटकरआया और अपना बैग मेज पर रखा. मेज पर किताबों का नया बंडल रखा था. यह क्या फिर किताबें.
उसने जोर से बोला – “माँ ! आप लोग बाजार गए थे क्या ?”
“हां, तुम्हारे पिताजी का चश्मा ठीक करना था. बगल में किताब की दुकान थी. वहाँ मजेदार कहानियों की किताबें मिल गई. पढोगे तो तुम्हें बहुत मजा आएगा अकबर – बीरबल, मुल्ला नसरूद्दीन, तेनालीराम, गोनू झा की कहानियाँ” – एक साथ इतना कुछ कहते हुए माँ राघव के पास आ खडी हुई.
“और मेरा वाकी – टाकी , रोबोट, किडी लैपटाप, गेम की सी डी कुछ भी नहीं लाई.” – राघव ने पूछा.
“वहाँ आस -पास कोई खिलौने की दुकान नहीं थी.” – माँ बोली.
“हां, आपको तो किताबों के सिवा कुछ नही मिलता, मुझे नहीं पढनी किताब.” – राघव अपनी मां से बोला.
“अच्छा चलो हाथ-मुँह धोकर खाना खा लो, तुम्हारे खिलौने भी आ जाएँगे.” – माँ ने कहा.
राघव ने हाथ – मुँह धोया कपड़े बदले. खाना खाया. टी.वी. खोलकर कार्टून नेटवर्क देखने लगा. तभी फोन की घंटी बजी. माँ बात करने लगी कार्टून में ‘जाल और कबूतर’ कहानी पर नाटक चल रहा था. राघव को देखने में मजा आने लगा.
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बहेलिए ने दाने डाले, उस पर जाल फैला दिया. कबूतर के सरदार के मना करने पर भी कबूतर न मने. दाना खाने के लालच में जमीन पर उतरे और जाल में फँस गए .तब सरदार के कहने पर कबूतरों का झुंड जाल को एक साथ लेकर उड़ने लगा….!
और तभी बिजली चली गई. टी.वी.बंद हो गया.
“यह बिजली अभी क्यों चली गई. कम से कम नाटक तो पूरा हो गया होता. पता नहीं कबूतर जाल से निकल पाए या नहीं?” – राघव बुदबुदाया.
राघव ने माँ की ओर देखा. वे अभी भी फोन पर बात कर रहीं थीं. उसे पडोस के इरफ़ान चाचा की याद आई. इरफ़ान चाचा की किराने की दुकान थी. वे राघव को बहुत किस्से – कहानियाँ सुनते थे. उसने माँ से कहा – माँ, मैं इरफ़ान चाचा के पास जा रहा हूँ बस अभी आया.
वह इरफ़ान चाचा के पास आया.
इरफ़ान चाचा, आपको कबूतर वाली कहानी आती है – उसने पूछा.
‘मुझे तो बहुत – सी कहानियाँ आती हैं. अभी कबूतर और जाल वाली एक कहानी टी.वी. पर भी आ रही थी… !’ वे बोले.
हाँ, हाँ वही नाटक, उसमे आगे क्या हुआ. कबूतर जाल से निकल पाए या नही ?- राघव ने पूछा.
हाँ, वे सब मिलकर चूहे के पास गए. चूहा उनका मित्र था. उसने जाल काट दिया. वे सब जाल से छूट गए, तब उनके सरदार ने कहा – अगर हम एक साथ जाल लेकर न उड़ते तो पकड़े जाते.
एकता में बहुत ताकत होती है – इरफ़ान चाचा बोले
पर चाचा आपको कैसे मालूम कि कहानी में यही हुआ ? – राघव ने कहा.
अरे, पंचतंत्र की किताब में पढ़ा था. इस किताब को तो मैं तुम्हारे ही यहाँ से लाया था – इरफ़ान चाचा ने कहा.
“मेरे यहाँ से !“
“हाँ तुम्हारे यहाँ तो कहानियों की कितनी किताबें हैं — ”
पर चाचा, किताब की कहानी पढने में मजा नहीं आता.वह कोई टी.वी. के नाटक जैसी थोड़े ही होती हैं – राघव ने कहा.
किताबों को पढो फिर उनकी कहानियों को जैसा चाहो मजेदार बना लो. यह तो तुम्हारे ऊपर है. कहानी पर चित्र बनाओ. उसे पढकर किसी को सुनाओ. उस पर नाटक खेलो. टी.वी. कार्यक्रम बनाओ. सिनेमा की कहानी बनाओ या कार्टून चित्र बनाओ. एक कहानी के अनेक रूप होते हैं – इरफ़ान चाचा ने अपनी बात पूरी की.
आपका मतलब है कि किताबों में सब कुछ मिलेगा – राघव बोला.
दूसरे दिन राघव को स्कूल में पता चला कि स्कूल के वार्षिक उत्सव की तैयारी हो रही है. कक्षा में अध्यापक ने पूछा कि बच्चों आप लोग इस उत्सव में क्या करेंगे?
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हमलोग एक कहानी को अनेक रूप में प्रस्तुत करेंगे – राघव ने सबसे पहले कहा उसने अपने सहपाठियों और अध्यापक को अपनी योजना बताई. सबको यह बात पसंद आई.
वार्षिकोत्सव के दिन राघव के निर्देशन में ‘एकता में बल’ कहानी को कई रूप में प्रस्तुत किया गया पहले उसे किताब में पढ़ा गया. फिर उसको कुछ बच्चों ने सुनाया. उसी कहानी को नाटक के रूप में प्रस्तुत किया गया. अंत में उसकी कपैक्ट डिस्क को टी.वी. पर दिखाया गया. कार्यक्रम को सबने सराहा. राघव की कक्षा को प्रथम पुरस्कार मिला.
इस खबर को जानकर उसके घर में सब बहुत खुश हुए . उसके पिताजी ने कहा कि राघव चलो आज बाजार चलकर तुम्हारे लिए किडी लैपटॉप और रोबोट भी ले आएँ.
राघव किताबों की उपयोगिता को समझ गया था वह बोला – और माँ ! वहाँ किताबें भी खरीदेंगे ?
माँ ने कहा – हाँ माँ, किताबें तो जरुर खरीदेंगे.”
वाकई बच्चों में रीडिंग हैबिट डलवानी चाहिए. आज दादी माँ और नानी माँ की किस्से कहानियों का स्थान टी वी और कंप्यूटर ने ले लिया है, लेकिन सच्चाई यह है कि उन सारे कार्यक्रमों का स्रोत किताबें ही हैं.
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pushpendra dwivedi says
very interesting depth ful thoughts
Sabiha Khan says
Sach kaha aapne bachhon me reading habits dalwana bahut zaruri hai, very nice post